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अभावों से भरा जीवन, सिग्नल स्कूल, और फिर यूरेका फॉर्ब्स में अच्छी नौकरी – मोहन काले के परिश्रम की कहानी

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मुंबई (विसंकें). मोहन काले, लगभग छह साल पहले दरिद्रता के कारण माता-पिता, भाई-बहनों को छोड़कर घर से भाग आया. दो वक्त की रोटी के लिए सिग्नल पर माला बेचना शुरू किया. एक अवसर मिला तो परिश्रम से भावी जीवन की कहानी लिख डाली. आज वह सिग्नल स्कूल से होते हुए यूरेका फॉर्ब्स में अच्छी नौकरी हासिल कर चुका है.

रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य एवं शिक्षा यह सभी हमारी प्राथमिक आवश्यकता है. समाज में ऐसे अनेक घटक हैं, जिनके लिए पहली तीन आवश्यकताएं पूरी कर पाना कठिन होता है. मोहन काले भी इन्हीं में से था, पर उसने परिश्रम से भविष्य को बदला.

एक सामाजिक संस्था के कार्यकर्ताओं को ठाणे के सिग्नल पर कुछ बच्चे घूमते हुए दिखे, सिग्नल पर दिनभर भीख मांगना तथा जो मिले वही खा लेना इन बच्चों की दिनचर्या थी. इन बच्चों को शिक्षा की धारा में लाने के लिए स्कूल तक लाना आसान नहीं था. इसलिए संस्था के कार्यकर्ताओं ने ठाणे महापालिका के साथ एक प्रयोग किया. तथा लगभग पांच-छह साल पहले सिग्नल पर फ्लाई ओवर के नीचे एक कंटेनर में सिग्नल स्कूल शुरू किया. सिग्नल स्कूल का समय भी बच्चों की उपलब्धता अनुसार निश्चित किया गया था, जिससे कोई बच्चा शिक्षा से वंचित ना रहे.

मोहन काले उस्मानाबाद में परिवार के साथ रहता था. दरिद्रता से तंग आकर 2013-14 में माता-पिता, भाईयों को छोड़कर घर से भाग आया तथा ठाणे के तीन हाथ नाका के सिग्नल पर रहने लगा व फूलों की माला बेचने लगा. फिर, कुछ समय के पश्चात मोहन के दो भाई और माता-पिता भी आकर सिग्नल पर रहने लगे. परिस्थिति के कारण मोहन की पढ़ाई छूट गई थी. माला बेचते हुए संस्था के कार्यकर्ताओं से संपर्क हुआ तो मोहन ने सिग्नल स्कूल में जाना शुरू किया. मोहन काले इस सिग्नल स्कूल से दसवीं कक्षा उत्तीर्ण करने वाला पहला विद्यार्थी बना. मोहन काले ने दसवीं कक्षा 72 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण की.

मोहन काले की सफलता पर ठाणे के आयुक्त संजीव जायसवाल ने भी सहयोग का हाथ बढ़ाया, मोहन काले को इंजीनियरिंग डिप्लोमा इंस्टीट्यूट में प्रवेश मिल गया.

प्रवेस के बाद मोहन को अंग्रेजी बोलने में कठिनाइ आ रही थी. डिप्लोमा में प्रवेश लेकर कहीं गलती तो नहीं की? अंग्रेजी नहीं आती तो इंटरव्यू कैसे होगा? नौकरी कैसे मिलेगी? मन में ये सवाल कौंधने लगे. मोहने परिश्रम से इन पर भी विजय प्राप्त की. अंग्रेजी बोलना सीखी, कैम्पस इंटरव्यू दिए और नामी कंपनी यूरेका फ़ॉर्ब्स में चयन भी हो गया.

मोहन अभी बाल स्नेहालय वसतिगृह में रह रहा है. अपना घर लेने तथा नौकरी के साथ ही मास्टर्स करने की तैयारी कर रहा है. मोहन काले की कहानी हर बच्चे के लिए प्रेरणादायी है. मोहन काले ने फिनिक्स पक्षी के समान ही राख से उठकर उड़ान भरी है.

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