नांदेड़ की सत्र अदालत ने 2006 बम विस्फोट के एक मामले में सभी नौ आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया. अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि यह घटना ‘बम विस्फोट’ थी. मामले में 12 आरोपियों में से दो की विस्फोट में मौत हो गई थी, जबकि एक की मामले की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी. जिला एवं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सी.वी. मराठे ने शनिवार को शेष आरोपियों को बरी कर दिया. विश्व हिन्दू परिषद ने न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया.
चार एवं पांच अप्रैल, 2006 की मध्य रात्रि को नांदेड़ शहर में लक्ष्मण राजकोंडवार के घर पर विस्फोट हुआ था. जांचकर्ताओं ने दावा किया कि राजकोंडवार के बेटे नरेश राजकोंडवार और हिमांशु पानसे की कथित तौर पर विस्फोटक उपकरण तैयार करते समय मौत हो गई थी. मामले की जांच शुरू में महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) द्वारा की गई थी और बाद में इसे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित कर दिया गया था.
अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि यह घटना एक ‘बम विस्फोट’ थी, ना कि गैस सिलेंडर या किसी अन्य ज्वलनशील वस्तु का विस्फोट.
न्यायालय का निर्णय आने के पश्चात विश्व हिन्दू परिषद के प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा कि नांदेड़ ब्लास्ट मामले में हिन्दुओं को आतंकवादी साबित करने के कांग्रेसी दिवास्वप्न की आज पोल खुल गई. नांदेड़ कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले में आरोपियों को कोर्ट ने किया बरी कर दिया है. कांग्रेस सरकार ने मालेगांव के बाद नांदेड़ में हुए धमाके में हिन्दू आतंकवाद शब्द को राजनीति में लाकर एक नई परिभाषा गढ़ी थी.
न्यायालय द्वारा यह माना जाना कि आरोपियों के खिलाफ ATS और CID के पास कोई ठोस सबूत नहीं था. मालेगांव मामले में कांग्रेस और ATS की पहले ही पोल खुल चुकी है. अब नांदेड़ कोर्ट ने सभी आरोपियों को मुक्त कर, हिन्दू द्रोही कुकर्मों के लिए कांग्रेस के गाल पर करारा तमाचा जड़ा है. कम से कम अब तो कांग्रेसी शीर्ष नेतृत्व को हिन्दू समाज से क्षमा मांगनी ही चाहिए.