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पंजाब में पुनः फूट रही नक्सलवाद की अमरबेल

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हालांकि, वामपंथियों से पंजाब का नाता कोई नई बात नहीं है. साल 1967 के नक्सली आंदोलन के समय भी पंजाब में वामपंथियों की सक्रियता देखने को मिली थी. पंजाब में राज्य सरकार द्वारा नक्सली आंदोलन को बलपूर्वक कुचल दिया गया था. इस दौरान 85 वामपंथी आतंकियों को खत्म किया गया था. इस दौरान आंदोलन के जो कुछ लोग बच गए थे, उन्होंने बाद में ऐक्टिविज्म, जर्नलिज़्म और साहित्यिक क्षेत्रों में प्रमुखता से काम किया. साल 1967 में नक्सली आंदोलन शुरू होने के साथ ही पंजाब पहुंच गया था. हालांकि यह छात्रों और कुछ बुद्धिजीवियों के बीच में ही लोकप्रिय हुआ.

राकेश सैन

25 दिसंबर को बठिंडा में कुछ शरारती तत्वों ने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिन समारोह में जमकर तोड़ फोड़ की. कहने को ये किसान संगठन से जुड़े थे, परंतु कार्यशैली छापामार रही. ऐसा केवल बठिंडा में नहीं, बल्कि जालंधर, चंडीगढ़ और राज्य के कई शहरों में हुआ. राज्य में किसान संगठनों के नाम पर शरारती तत्व 120 से अधिक मोबाइल टावरों को क्षतिग्रस्त कर चुके हैं और एक कंपनी के शोरूमों को कई सप्ताह से घेरे हुए हैं. अब इनकी दृष्टि पतंजलि के बिक्री केंद्रों पर है और कई जगह इन केंद्रों पर प्रदर्शन भी किया जा चुका है.

कहने को यह किसान आंदोलन के नाम पर किया जा रहा है, परंतु सभी जानते हैं कि यह रणनीति नक्सलियों की छापामार नीति है. जिसमें अपने विरोधियों की आवाज को पूरी तरह दबाने व तोडफ़ोड़ का सहारा लिया जाता है. राज्य में किसान आंदोलन के नाम पर नक्सलवाद की पदचाप साफ-साफ सुनने को मिल रही है और जल्द इस पर नकेल न डाली गई तो आने वाले दिन राज्य की कानून व्यवस्था व लोकतांत्रिक प्रणाली को अनेक तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

पंजाब में नक्सलवाद को बीत चुकी समस्या माना जाता रहा है, परंतु किसान आंदोलन के नाम पर बढ़ रही नक्सली गतिविधियां प्रमाण हैं कि नक्सलवाद की अमरबेल पुन: फूटने लगी है. कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसान संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं. इस बीच पंजाब के किसान प्रदर्शनकारियों के आंदोलन में वामपंथी आतंकियों (अल्ट्रा-लेफ्ट ऐक्टिविस्ट्स) की मौजूदगी को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं.

हालांकि, वामपंथियों से पंजाब का नाता कोई नई बात नहीं है. साल 1967 के नक्सली आंदोलन के समय भी पंजाब में वामपंथियों की सक्रियता देखने को मिली थी. पंजाब में राज्य सरकार द्वारा नक्सली आंदोलन को बलपूर्वक कुचल दिया गया था. इस दौरान 85 वामपंथी आतंकियों को खत्म किया गया था. इस दौरान आंदोलन के जो कुछ लोग बच गए थे, उन्होंने बाद में ऐक्टिविज्म, जर्नलिज़्म और साहित्यिक क्षेत्रों में प्रमुखता से काम किया. साल 1967 में नक्सली आंदोलन शुरू होने के साथ ही पंजाब पहुंच गया था. हालांकि यह छात्रों और कुछ बुद्धिजीवियों के बीच में ही लोकप्रिय हुआ. किसी बड़े जननेता ने इसमें हिस्सा नहीं लिया. सीपीआई और सीपीएम के कुछ कैडर इसमें शामिल हुए थे. नक्सलियों द्वारा हिंसा के शुरुआती चरण में ही राज्य सरकार ने उन्हें कुचलने की नीति पर काम करना शुरू कर दिया था. इसके बाद एक दशक तक जमीनी संगठन काफी बढ़ गए, जबकि कोर ग्रुप अभी भी भूमिगत रहा. साल 80 के दशक के शुरुआत में आतंकवाद के उभार के साथ सब कुछ बदल गया. वाम आंदोलन में गिरावट शुरू हुई और बहुत से नक्सलियों ने खालिस्तानी लबादा ओढ़ लिया.

इन चरमपंथी वामपंथियों ने बाद में किसानों के बीच काफी काम किया और अपनी यूनियनों का गठन किया. इस काम में पुराने कार्यकर्ता भी जुड़े. उनके संगठनात्मक कौशल, अनुभव और लगन ने काम कर दिखाया. उन्होंने कर्ज के जाल, किसानों की आत्महत्या और कृषि मुआवजों के मुद्दों पर खूब काम किया. उनका ज्यादातर आधार उन सिक्ख किसानों के बीच में है, जिनका वामपंथी विचारधारा से कोई खास लेना-देना नहीं है. करीब दर्जन भर किसान यूनियन वामपंथियों या चरम वामपंथियों द्वारा संचालित किए जाते हैं. सिक्ख समाज में अलगाववाद, व्यवस्था के प्रति संदेह, भ्रमजाल फैलाने में इन चरम वामपंथी संगठनों का बहुत बड़ा हाथ है. इस काम में उनका साथ कठमुल्ला सिक्ख संगठन व विदेशों में बैठे अलगाववादी तत्व देते रहे हैं. पिछले साल पंजाब में हुई कश्मीरी आतंकियों की गिरफ्तारी बताती है कि राज्य की उक्त सारी गड़बड़ी की दाल में जिहादी सोच विषाक्त छोंक लगा रही है.

पाकिस्तान राज्य में नशे व हथियारों की तस्करी कर समस्या को और विकट बना रहा है.

फिलहाल बात करते हैं नक्सलवाद की विषाक्त अमरबेल की. देश में नक्सल गतिविधियां सिर्फ सेंट्रल और पूर्वी भारत तक ही सीमित नहीं हैं. बल्कि उत्तर भारत में भी इसकी जड़ें तेजी से मजबूत हो रही हैं. इंटेलिजेंस ब्यूरो की यूपीए-2 सरकार के कार्यकाल में आई एक इंटरनल रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में भी नक्सल शक्तियां तेजी से सिर उठा रही हैं. एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रतिबंधित समूह भाकपा (मार्क्सवादी) दल के देश भर में 128 फ्रंटल ऑर्गेनाइजेशन चलाए जा रहे है. ये संगठन पंजाब सहित हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और केरल राज्यों में मौजूद हैं. 2009 में पंजाब से वामपंथी नेता जय प्रकाश दुबे को गिरफ्तार किया गया था. पुलिस का कहना था कि दुबे गिरफ्तारी के समय पंजाब में नक्सलवाद को सक्रिय करने की कोशिश कर रहा था. नक्सली नेता कोबाड गांधी का पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला से गहरा संबंध है और पंजाबी मीडिया का बहुत बड़ा वर्ग नक्सलवादी विष से सना है. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जनवरी 2013 में अपनी चिंतन शिविर रैली में कहा था कि पंजाब के सभी 22 जिलों में नक्सलवाद सक्रिय हो गया है. प्रदेश में चल रहे कथित किसान आंदोलन में आंदोलनकारी जिस तरह अपनी बात पर अड़े और बे सिर-पैर की बातें कर रहे हैं उससे साफ है कि बहुत से किसान नेताओं का खेत और खेती से कोई लेना-देना नहीं. वे केवल किसानों को भड़का कर अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में हैं. प्रदेश की जनता, सरकार व सुरक्षा एजेंसियों को इन खतरों के प्रति सावधान रहना होगा. सीमावर्ती राज्य होने के कारण वैसे भी बड़े उद्योगपति इस राज्य में पूंजीनिवेश को जल्दी से तैयार नहीं होते और अगर नक्सलियों की तोड़फोड़ की हरकतों पर नकेल नहीं डाली गई तो पंजाब औद्योगिक दृष्टि से अत्यंत पिछड़ सकता है. एक तरफ तो राज्य सरकार समय-समय पर पूंजीनिवेश के लिए मेले आयोजित कर उद्योगपतियों को आमंत्रित करती है और अनिवासी भारतीयों को भी निवेश के लिए कहा जाता है, परंतु दूसरी ओर नक्सली गतिविधियां निवेशकर्ताओं को भयभीत कर रही हैं. राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तोड़फोड़ करने वालों को ऐसा नहीं करने की अपील की है, परंतु उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि नक्सलियों का अपील जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर कोई विश्वास नहीं है, उनके साथ सख्ती से ही निपटना होगा.

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