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अमृत महोत्सव –  रावलापानी संघर्ष : स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समाज का योगदान

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रावलापानी संघर्ष दिवस. यह दिवस रावलापानी बलिदान दिवस के नाम से भी जाना जाता है. खान्देश के नंदुरबार जिले में तलोदा तहसील के ‘रावलापानी’ में २ मार्च, १९४३ को ब्रिटिश अधिकारी के आदेश से जनजाति बंधुओं पर गोलियाँ चलाईं गईं. जिसमें १५ लोगों की मौत हुईं और २८ लोग गंभीर रूप से घायल हुए.

इस संघर्ष का कारण ही ऐसा था. मुख्य प्रवाह से हमेशा की तरह दूर रहने वाला जनजाति वर्ग; संत गुलाम महाराज जी की प्रेरणा से संगठित होने लगा. जनजाति वर्ग के युवा व्यसनों से मुक्त होकर, आपसी भेद को भुलाकर सभी लोग एक होने लगे. संत गुलाम महाराज जी ने ‘आप’ पंथ के माध्यम से समाज को संगठित करने की शुरूआत की. ‘आप’ मतलब ‘हम सब’. ‘आप की जय हो’ यह नारा दिया जा रहा था, लेकिन बहुत कम समय में उनका देहांत हो गया, उनके पश्चात यह जिम्मेदारी संत रामनाथ महाराज को सौंपी गईं. रामनाथ महाराज ने गुलाम महाराज जैसा ही कार्य शुरू किया. संगठन के लिए उन्होंने आरती शुरू की. १९३८ में एक आरती कार्यक्रम में १.२५ लाख लोग एकत्रित हुए; ऐसा कहा जाता है. इससे समाज संगठन कितना विशाल था; यह स्पष्ट होता है.

जनाजाति वर्ग का संगठित रूप ब्रिटिश शासन की आँखों में चुभने लगा. जनजाति वर्ग हर वक़्त ब्रिटिश शासन के विरोध में कहीं न कहीं जंग लड़ रहा था. उनके अज्ञान का गलत फायदा उठाकर ब्रिटिश शासन की उन पर दबाव-नीति जारी रही. ब्रिटिश शासन द्वारा जनजाति समाज के विरुद्ध षड्यंत्र भी चलते रहे.

देशभर में ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध आग दहक रही थी. सभी जगह ब्रिटिश शासन के विरोध में आन्दोलन हो रहे थे. ऐसे माहौल में इतनी बड़ी संख्या में जनजाति वर्ग का संगठित होना; ब्रिटिश शासन के लिए अच्छी बात नहीं थी. इस वजह से उन्होंने १९४१ में सामूहिक आरती को बंद करने का प्रयास किया. लेकिन, संत रामनाथ महाराज तथा उनके शिष्यों ने इस आदेश को ख़ारिज़ किया. इसके बाद जावली में बड़े दंगे हुए तथा कईं जगहों पर आग लगा दी गईं. इस वजह से जिला अफसरों ने उन जगहों पर संचार बंदी लगा दी. रामनाथ महाराज सहित तीस शिष्यों के लिए जिला बंदी के आदेश दिए गए.

१९४२ में ‘चले जाव’ आन्दोलन की शुरूआत हुईं. ‘इस आन्दोलन में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध हम भी शामिल होकर अपनी मातृभूमि को स्वतंत्रता दे सकेंगे; तब तक हम पर होने वाले जुल्म एवं अन्याय रुक नहीं सकते’. इसलिए जिलाबंदी का आदेश होने के बावजूद संत रामनाथ महाराज ने अपने शिष्यों को ‘चले जाव आन्दोलन’ में शामिल होने का आदेश दिया. देखते देखते हजारों की संख्या में जनजाति समाज संत रामनाथ महाराज से आकर मिल गए. मोरवड की ओर जाते हुए ब्रिटिश शासकों ने निज़रा नाले में रात के समय इस समुदाय को घेर लिया और गोलियाँ बरसाना शुरू किया. कैप्टन ड्युमन ने बिलकुल भी दया न दिखाते हुए, जो दिखा उसे मिटाने का प्रयत्न किया. इस हिंसा में १५ जनजाति वर्ग के लोग बलिदान हुए तथा २८ लोग घायल हुए. यह अत्याचार इतना निर्दयी था, कि गोलियों के निशान आज भी वहाँ पत्थरों पर दिखाईं देते हैं.

सोया हुआ भारतीय जागा हुआ है, जनाजाति वर्ग संगठित हो रहा है, युवा वर्ग बुरे मार्ग से दूर होकर समाज और देश के बारे में विचार करने लगा है. यह बदलाव अंग्रेजों की आँखों में चुभता था. इसीलिए उन्होंने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का पालन किया.

इसका परिचय जनजाति व गैर जनजाति समाज को हुआ था. उन्होंने ब्रिटिश शासन की चाल सफल होने से रोकने का प्रयास प्रारंभ किया. जनजाति वर्ग ने देश के हर कोने में जहां-जहां उनका अस्तित्व था, वहां-वहां मातृभूमि, स्वधर्म, संस्कृति और समाज को संगठित करने के लिए, देश के विरुद्ध खड़ी शक्तियों के विरोध में आवाज़ उठाईं और उनकी साजिश सफल नहीं होने दी. ऐसे देशभक्त बलिदानियों को शत शत नमन.

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