Getting your Trinity Audio player ready...
|
हिन्दुत्व की चेतना, सनातन के चैतन्य को, प्रणाम..!
प्रशांत पोळ
राष्ट्रीय राजमार्ग 44, बेंगलुरु से रीवा और उसके आगे जाने वाला राजमार्ग। इस रास्ते पर, अलग-अलग राज्यों की नंबर प्लेट लगाए हुए हजारों कार, जीप, टेम्पो ट्रॅवलर, बस, ट्रक.. इन सब का महाकाय प्रवाह बना हुआ है। लगभग प्रत्येक वाहन पर भगवा ध्वज है। किसी के झंडे पर श्रीराम का चित्र बना है, तो किसी ने हनुमान जी को पसंद किया है। रास्ते में भगवे झंडे की अनेक छोटी-छोटी दुकानें हैं। जिनके वाहन पर यह नहीं है, वह गाड़ी रोक कर खरीद रहे हैं।
रास्ते के सभी ढाबे, होटल, पेट्रोल पंप, लोगों से भरे पड़े हैं। जहां भी थोड़ा पानी दिखा, पेड़ की छांव देखी, या मंदिर दिखा, दूर से आने वाली गाड़ियां वहीं रुक जाती हैं। गाड़ी के प्रवासी अपनी पथारी पसार के, थोड़ा बहुत विश्राम कर रहे हैं। कुछ नाश्ता / भोजन भी चल रहा है। हजार से ज्यादा किलोमीटर का यह महामार्ग, इन दिनों उत्सवी वातावरण में है। दिन-रात प्रवास करने वाले लोगों में गजब का उत्साह है। इतने लंबे, थका देने वाले प्रवास के बावजूद भी, उन सबके चेहरे पर आनंद है। जाने वालों के चेहरे पर उत्सुकता छलक रही है, तो वापस आने वाले लोगों के चेहरे पर कृतार्थता..!
इन प्रवासियों में सभी भाषाओं के, सभी आयु वर्ग के, सभी आर्थिक स्तर के लोग शामिल हैं। इनमें कोई भेदभाव नहीं है। ट्रक में भरकर जा रहे कर्नाटक के भाविकों से वैसा ही व्यवहार हो रहा है, जैसा इनोवा में चल रहे तेलंगाना के प्रतिष्ठित परिवार से। यह सारे लोग सनातन की अक्षुण्ण यात्रा के प्रवासी हैं। यह सभी, प्रयागराज महाकुम्भ के यात्री हैं।
रास्ते में अनेक स्थानों पर लोगों ने निःशुल्क रहने की व्यवस्था की है। अनेक स्थानों पर भंडारे चल रहे हैं। स्थान – स्थान पर कुम्भ यात्रियों के स्वागत के बैनर लगे हुए हैं। सिवनी से आगे प्रयाग तक, सरकार ने महामार्ग के सभी टोल खोल दिए हैं। अब यह पूरा रास्ता निःशुल्क है। उत्सवी जनता के साथ संवेदनशील सरकार खड़ी है।
हालांकि रास्ता सुगम नहीं है। हजारों – लाखों प्रवासियों के कारण रास्ते पर जाम लगना या रास्ते को कुछ समय के लिए विवशतावश बंद करना, यह आम बात है। केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र से आने वाले सभी भाविकों को इसका पूरा अंदाज है। यह यात्रा कष्टप्रद है, 10-20 किलोमीटर चलना पड़ता है, इन सब की उन्हें जानकारी है। किंतु फिर भी वह सारे आनंदित हैं। प्रमुदित हैं..!
यह अद्भुत है। किसी भी परिपेक्ष में, किसी भी मानक पर, किसी भी कसौटी पर यह शब्दशः अभूतपूर्व है..!
सनातन की ऐसी ताकत इससे पहले कभी नहीं देखी थी। पिछले कुम्भ में भी नहीं। 56 करोड़ से ज्यादा सनातनी, संगम में डुबकी लगा चुके हैं। अर्थात, कुम्भ मेला समाप्त होने में अभी कुछ दिन बाकी हैं, किंतु आधे से ज्यादा देश कुम्भ हो आया है। यूरोप में सबसे ज्यादा जनसंख्या का देश है – जर्मनी। जर्मनी में 8.45 करोड़ लोग रहते हैं। मजेदार बात यह कि पूरे जर्मनी की लोकसंख्या से भी ज्यादा सनातनी श्रद्धालुओं ने मात्र एक दिन में प्रयाग महाकुम्भ में, गंगा जी में स्नान किया है।
विश्व चकित है। अचरज भरी नजरों से भारत को देख रहा है। सनातन की प्रस्फुटित होती शक्ति को देखकर भौचक हैं। वे अब भारत को और अच्छे से समझने का प्रयास कर रहे हैं। इस वर्ष भारत में विदेशी पर्यटक तो रिकॉर्ड संख्या में आएंगे ही, किंतु विश्व के विभिन्न विश्वविद्यालयों में चल रहे ‘इंडोलॉजी’ के कोर्स को रिकॉर्ड विद्यार्थी मिलेंगे।
कुम्भ ने भारत के अर्थतंत्र को जबरदस्त गति दी है। कुम्भ की आलोचना करने वालों की समझ में शायद यह बात नहीं आई है। कुम्भ का प्रभाव मात्र प्रयागराज, या काशी या अयोध्या तक ही सीमित नहीं है, प्रयाग को जाने वाले प्रत्येक मार्ग, राजमार्ग, महामार्ग पर लाखों लोगों के जीवन में, इस कुम्भ ने आत्मविश्वास का प्रकाश लाया है। टूरिस्ट एजेंसी वाले, कार / टैक्सी / बस / ट्रक वाले, ड्राइवर, पेट्रोल पंप, ढाबे वाले, छोटी-छोटी वस्तुएं बेचने वाले, होटल चलाने वाले, सब्जी – फल की बिक्री करने वाले, झंडा बेचने वाले, टायर का काम करने वाले.. सभी आनंद में हैं। इनमें से अनेकों ने, पिछले पंद्रह – बीस दिनों में पूरे वर्ष का व्यवसाय कर लिया है। इन्हें मालूम है कि कुम्भ के प्रवासी कहां रुकेंगे और कहां नहीं। इसलिए कुम्भ जाने वाले सभी रास्ते भगवा ध्वज से पटे पड़े हैं। प्रत्येक दुकानदार ने बड़े ही गर्व के साथ अपने प्रतिष्ठान पर भगवा झंडा लहराया है।
इस पूरी ताकत को हिन्दुत्व की (या सनातन की) शक्ति समझना गलत होगा। यह सारे भाविक हैं, श्रद्धालु हैं, आस्थावान हैं। किंतु इनमें से अनेकों को अभी भी हिन्दुत्व या सनातन का अर्थ ठीक से समझा नहीं है।
छत्रपति शिवाजी महाराज को समाप्त करने के लिए महाराष्ट्र में आया हुआ मिर्जा राजा जयसिंह (उसकी शब्दावली में) कट्टर सनातनी था, कट्टर हिन्दू था। प्रतिदिन भगवान एकलिंग जी की पूजा किए बगैर वह जल भी ग्रहण नहीं करता था। हिन्दू संस्कृति के सारे तीज-त्यौहार उत्साह से मनाता था। इसलिए स्वतः को कट्टर हिन्दू कहता था।
किंतु वह किसके लिए काम कर रहा था..? हिन्दुओं को मिटाने पर तुले हुए औरंगजेब के लिए, हिन्दुओं का नरसंहार करने वाले, मंदिरों को नष्ट करने वाले, इस्लामी कट्टरपंथी आलमगीर औरंगजेब के लिए..! वह महाराष्ट्र में किस लिए आया था? तो हिन्दुओं की रक्षा करने वाले, हिन्दू पदपातशाही का स्वप्न साकार करने में लगे शिवाजी महाराज को मिटाने के लिए।
यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम व्यक्तिगत आस्था / श्रद्धा / कर्मकांड को ही सनातन समझ बैठते हैं। इसलिए श्री राम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से हर्षित उत्तर प्रदेश, हिन्दुत्व के विरोधियों को चुनकर देता है। बांग्लादेश के हिन्दू नरसंहार पर हिन्दू खामोश रहता है। सनातन को दी हुई गालियों को चुपचाप सहन कर लेता है।
सनातन का, हिन्दुत्व का सही अर्थ है, संपूर्ण समाज का, राष्ट्र का, समष्टि का कल्याण। इस कल्याण के लिए जो, जो आवश्यक है, वह सब करना, यही सनातन है। इस लोक कल्याण को नष्ट और भ्रष्ट करने वाली ताकत का सामना करना, उसे पराजित करना, यही है सनातन।
मुझे पूरा विश्वास है, इस महाकुम्भ के माध्यम से जागृत हुई यह चेतना, राष्ट्र हित में निश्चित प्रवाहित होगी..!