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शिक्षा बचाओ आंदोलन – शिक्षा में परिवर्तन का शंखनाद

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अतुल कोठारी

02 जुलाई, वर्ष 2004 की बात है. सुबह से ही देश के कोने-कोने से मूर्धन्य शिक्षाविदों, शिक्षा क्षेत्र में कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं एवं राष्ट्रीय स्तर के शैक्षिक संगठनों के प्रमुखों का दिल्ली में आना प्रारंभ हो गया. उस समय देशभर से नब्बे शिक्षाविदों ने मिलकर तत्कालीन भारत सरकार द्वारा असंवैधानिक ढंग से पाठ्यक्रम में छेड़छाड़ करके जो बदलाव लाने का षड्यंत्र किया गया था, उस पर सामूहिक रूप से गंभीर चिंतन किया, जिसकी परिणति “शिक्षा बचाओ आन्दोलन” के रूप में हुई.

एन.सी.ई.आर.टी से प्रारंभ करके नेशनल ओपन स्कूल, इग्नू, आई.सी.एस.सी बोर्ड सहित दिल्ली विश्वविद्यालय एवं कई राज्यों के पाठ्यक्रम में शामिल विकृत एवं भ्रामक तथ्यों के विरूद्ध “शिक्षा बचाओ आन्दोलन” ने कार्य प्रारंभ किया और देखते ही देखते इतिहास और सामाजिक विज्ञान की पुस्तकों में हमारी संस्कृति, परंपरा, भाषा और महापुरुषों के संदर्भ में जो विसंगतियां थीं, उसके विरूद्ध एक देशव्यापी आंदोलन का वातावरण तैयार हो गया. इस आंदोलन द्वारा जिला न्यायालयों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक 11 जनहित याचिकाएं दायर की गईं और सभी का परिणाम आंदोलन के पक्ष में आया. कई बातें बिना न्यायालय के दरवाजा खटखटाए ही स्वीकृत हो गईं. इसके परिणामस्वरूप शैक्षिक पाठ्यक्रम आम समाज के विमर्श का विषय बना. एक प्रकार से “शिक्षा बचाओ आन्दोलन” स्वतंत्र भारत के इतिहास में शिक्षा क्षेत्र का सफलतम आंदोलन रहा.

“शिक्षा बचाओ आन्दोलन” की सफलता के बाद जब ऐसा अनुभव किया गया कि मात्र शैक्षिक विकृतियों एवं विसंगतियों को दूर करने से शिक्षा में स्थायी और आधारभूत परिवर्तन नहीं होगा, इसे दृष्टि में रखते हुए आंदोलन को स्थायी और मूर्त स्वरूप देने का निर्णय लिया गया, जिसके परिणामस्वरूप 17 मई 2007 को नई दिल्ली में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का गठन किया गया. आरंभ में, पूरे देशभर से, शिक्षाविदों एवं शिक्षा संस्थानों के प्रमुखों के साथ विमर्श कर शिक्षा में आधारभूत परिवर्तन हेतु सुझाव प्राप्त किए गए. इसके उपरांत यह तय किया गया कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का लक्ष्य- शिक्षा को एक नया विकल्प प्रदान करना है. इसके लिए शुरु में आधारभूत छह विषयों पर और बाद में क्रमशः 12 विषयों एवं 3 आयामों पर कार्य प्रारंभ किया गया, जो इस प्रकार हैं-

  1. चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास
  2. मूल्य आधारित शिक्षा
  3. मातृभाषा/भारतीय भाषा में शिक्षा
  4. वैदिक गणित
  5. पर्यावरण शिक्षा
  6. शिक्षा की स्वायत्तता
  7. प्रबंधन शिक्षा की भारतीय दृष्टि
  8. इतिहास शिक्षा की भारतीय दृष्टि
  9. तकनीकी शिक्षा
  10. शिक्षक-शिक्षा
  11. प्रतियोगी परीक्षाएं
  12. शोध कार्य

आयाम – 1. भारतीय भाषा मंच, 2. भारतीय भाषा अभियान, 3. शिक्षा स्वास्थ्य न्यास

इनमें से अधिकांश आधारभूत विषयों पर पाठ्यक्रम तैयार किए गए एवं कुछ शैक्षिक संस्थानों को चिन्हित करते हुए, वहां पर इन पाठ्यक्रमों को व्यवहार में लाया गया. जिन शैक्षिक संस्थानों ने गंभीरतापूर्वक इसे लागू किया, वहां आश्चर्यजनक एवं आनन्ददायक परिणाम देखने को मिले.

उदाहरणस्वरूप – कई शैक्षिक संस्थानों में बिना शिक्षक के ही परीक्षाएं आयोजित की गईं और एक भी छात्र ने नकल करने का प्रयास नहीं किया, भला इससे बड़ा नैतिक मूल्य क्या हो सकता है! इस प्रकार के सैकड़ों की संख्या में सफल प्रयोगों की एक सुदीर्घ श्रृंखला  है.

हमारे देश की शिक्षा की सबसे कमजोर कड़ी है, अंग्रेजी माध्यम का बढ़ता वर्चस्व. शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो, यह एक वैज्ञानिक दृष्टि है, जिसके प्रति न्यास प्रतिबद्ध है. न्यास का अंग्रेजी सहित किसी भी भाषा विशेष से विरोध नहीं है, परंतु दुनिया भर के भाषा वैज्ञानिक एवं विद्वानों का मानना है कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होनी चाहिए.

इसी विषय को केन्द्र में रखकर भारतीय भाषा मंच एवं भारतीय भाषा अभियान के कार्य को प्रारंभ किया गया. भारतीय भाषा मंच का कार्य भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु कार्यरत विद्वानों एवं संस्थाओं को एक मंच पर लाकर व्यापक जन-जागरण का कार्य करना है, जबकि भारतीय भाषा अभियान न्यायालयों का कार्य भारतीय भाषाओं में हो, इस दिशा में कार्यरत है.

वर्तमान में कोरोना महामारी का देश की शिक्षा पर व्यापक दुष्प्रभाव हुआ है. यह एक व्यापक चुनौती है. इसका समाधान करने के साथ-साथ इसको अवसर में भी बदला जा सकता है.

इस हेतु न्यास ने एक प्रारूप तैयार करके देश के अनेकों विश्वविद्यालयों में वेबिनार एवं कार्यशालाओं का आयोजन करके उनके क्रियान्वयन की दिशा में ठोस कदम उठाए जाए, इसके लिए प्रयासरत है. हमारा मानना है कि आज की आवश्यकता के अनुसार स्वास्थ्य शिक्षा, योग शिक्षा आदि के नए पाठ्यक्रम अनिवार्य रूप से लागू करने होंगे. इसी प्रकार न्यास ने ऑनलाइन शिक्षा पर जागरूकता लाने एवं प्रशिक्षण हेतु राष्ट्रीय से लेकर राज्यों के स्तर तक वेबिनार्स का आयोजन किया है.

उपर्युक्त सारे प्रयासों की दिशा में न्यास द्वारा विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं के साथ मिलकर देश भर में हजारों की संख्या में संगोष्ठियां, परिचर्चाएं एवं कार्यशालाओं का आयोजन किया. इसके परिणामस्वरूप देश भर में व्यापक जन-जागरण के साथ-साथ शिक्षा क्षेत्र में आधारभूत परिवर्तन हेतु वातावरण बनना प्रारंभ हुआ, इसको व्यवहारिक धरातल पर स्थापित करने हेतु ‘ज्ञानोत्सव’ का प्रारंभ किया है.

विगत दो वर्षों से राष्ट्रीय से लेकर राज्य एवं जिला स्तर पर ज्ञानोत्सव के आयोजन की श्रृंखला प्रारंभ की गई है. शिक्षा में नवाचार (इनोवेशन) करने वाली शैक्षिक संस्थानों की प्रदर्शनी का आयोजन करने के साथ-साथ शैक्षिक संस्थाओं के प्रमुखों, शिक्षाविदों, शिक्षा क्षेत्र के अधिकारियों को इसमें सम्मिलित किया जाता है और सभी मिलकर देश की शिक्षा में परिवर्तन हेतु अपनी प्रतिबद्धताओं को दोहराते हैं. वास्तव में शिक्षा में मूलभूत बदलाव के लिए जो सैद्धांतिक विमर्श ज्ञानोत्सव में होता है, उन्हीं को व्यवहारिक धरातल पर उतारने का काम देश के कई शिक्षा संस्थान कर रहे हैं, वही कार्य देशव्यापी बने. ज्ञानोत्सव के आयोजन के पीछे का मूल विचार यही है.

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा देशभर के विभिन्न शैक्षिक संस्थानों के माध्यम से किए प्रयोगों एवं हजारों शैक्षिक चिन्तन के कार्यक्रमों के माध्यम से आये सुझावों के आधार पर “देश की शिक्षा में नए विकल्प” हेतु एक प्रारूप तैयार करके इस पर देशव्यापी विमर्श के माध्यम से सुझाव लिये जा रहे हैं. उचित और व्यवहारिक सुझावों का प्रारूप में समावेशन करके एक बड़ी पुस्तक तैयार करने की योजना है, जो देश की शिक्षा में परिवर्तन हेतु दीप-स्तंभ का कार्य करेगी.

हमारा मानना है देश कि शिक्षा में आधारभूत परिवर्तन हेतु सरकारों की भूमिका अवश्य है. सरकार देश की संस्कृति, प्रकृति एवं प्रगति के अनुरूप शिक्षा नीति का निर्धारण करे, संसाधन उपलब्ध कराए तथा शिक्षा क्षेत्र में हो रहे अच्छे कार्यों को सहयोग एवं समर्थन करे. परंतु, जमीनी बदलाव करने का प्रमुख दायित्व शिक्षा जगत के लोगों का है. जब तक देश के प्रत्येक विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय इत्यादि में परिवर्तन की प्रक्रिया प्रारंभ नहीं होगी, तब तक देश की शिक्षा में वास्तविक परिवर्तन संभव नहीं है. इसी प्रकार शिक्षा, समाज एवं सरकार की प्राथमिकता का विषय बने तभी दोनों के संयुक्त प्रयास द्वारा व्यवस्था में परिवर्तन हो सकता है.

आज हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि वर्ष 2004 में शिक्षा बचाओ आन्दोलन के नाम से जो यात्रा शुरु हुई, वह शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के माध्यम से देश में शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन का एक जन-आन्दोलन खड़ा करने की दिशा में सृजनात्मक रुप से प्रयासरत है. आइए, हम सब मिलकर इसको सफल एवं सार्थक बनाने में अपना योगदान दें.

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