रायपुर, छत्तीसगढ़। केंद्र सरकार ने बस्तर जिले को नक्सल प्रभावित जिलों की सूची से बाहर कर दिया है। बस्तर जिले को कभी लाल आतंक के गढ़ के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब यहां से माओवादियों का तंत्र मिट चुका है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बस्तर जिला को LWE की लिस्ट से हटाकर लेगेसी डिस्ट्रिक्ट की लिस्ट में रखने का निर्णय लिया है।
इस निर्णय के साथ ही बस्तर जिला अब आधिकारिक रूप से नक्सलमुक्त घोषित हो गया है। यह छत्तीसगढ़ राज्य, विशेषकर बस्तर क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जा रही है।
बस्तर के कलेक्टर एस. हरीश ने पुष्टि करते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्णय के बारे में बताया कि इसी के साथ LWE के तहत बस्तर को मिलने वाली आर्थिक सहायता भी बंद हो गई है। नक्सलवाद प्रभावित जिलों को गृह मंत्रालय LWE (लेफ्ट विंग एक्सट्रमिज्म) की श्रेणी में रखता है। 31 मार्च, 2026 तक छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद खत्म करने का केंद्र एवं राज्य सरकार का घोषित लक्ष्य है।
बस्तर संभाग आदिवासी बहुल क्षेत्र है, जो अपनी सांस्कृतिक विविधता, घने जंगलों, खनिज संपदा और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाता है। नक्सलवाद की छाया से धीरे-धीरे मुक्त हो रहा यह क्षेत्र अब विकास और शांति की नई राह पर अग्रसर है।
गृह मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2018 में देशभर में 126 जिले नक्सल प्रभावित थे, जो जुलाई 2021 में घटकर 70 हुए और अप्रैल 2024 तक यह संख्या घटकर मात्र 38 रह गई है। सबसे ज्यादा गंभीर रूप से प्रभावित जिलों की संख्या भी 12 से घटकर 6 रह गई है।
बस्तर न केवल एक जिला है, बल्कि एक संभाग भी है, जिसमें कुल 7 जिले शामिल हैं – बस्तर (मुख्यालय – जगदलपुर), कोंडागांव, दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर और बीजापुर (जो पूर्व में दंतेवाड़ा से अलग हुआ)। हालांकि बस्तर जिला अब LWE सूची से बाहर हो चुका है, लेकिन बस्तर संभाग के अन्य कुछ जिले अब भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शामिल हैं।
सरकारी प्रयासों, सुरक्षा बलों की सक्रियता और पुनर्वास नीतियों के चलते पिछले एक दशक में 8000 से अधिक नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़कर आत्मसमर्पण किया है। जिससे नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है।