रमेश शर्मा
संपूर्ण जंबू द्वीप की प्राचीन संस्कृति में भील समाज की उपस्थिति मिलती है। राष्ट्र और संस्कृति रक्षा के लिये समर्पित भील समाज का गौरवशाली इतिहास रहा है। इन्हें भगवान शिव की संतान और भगवान सूर्यदेव का उपासक माना जाता है।
भारत केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान तक सीमित नहीं था, अपितु संपूर्ण जंबू द्वीप की सीमाओं तक भारत का विस्तार रहा है। वर्तमान एशिया को हम जंबू द्वीप की सीमा मान सकते हैं। सनातन परंपरा में प्रतिदिन पूजन के समय एक मंत्र बोला जाता है – “जंबू द्वीपे, भरतखंडे आर्यावर्ते…” इससे जंबू द्वीप का भौगोलिक स्वरूप स्पष्ट है। जंबू द्वीप के नाम और रूप ही नहीं संस्कृति और जीवन शैली में यह सारा परिवर्तन केवल ढाई हजार वर्षों में आया। यह अवधि इस्लाम और ईसाई मत आने के बाद से है।
इसके बाद हुए साँस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों से उत्पन्न परिस्थिति के चलते भील समुदाय वनों तक सीमित रह गया। भील समुदाय के प्रमुख देवता “बड़ा देव” हैं। बड़ा शब्द महा शब्द का पर्याय है। इसलिये भील समुदाय में महादेव अर्थात भगवान शिव की उपासना बड़ा देव के रूप में होती है। भील समुदाय को भगवान शिव का पुत्र और भगवान सूर्यदेव का उपासक माना जाता है।
भारतीय पुराणों में सृष्टि निर्माण के बाद धरती पर सामाजिक स्वरूप का जो पहला वर्णन मिलता है, उसमें भील समुदाय ही सबसे प्रमुख है। आज भले हम भील समुदाय को वनवासी कह लें या जनजाति कह लें। लेकिन प्राचीन भारत में भील समुदाय सर्वोन्नत रहा है। वन की बस्तियों से लेकर साम्राज्य प्रमुख तक भील समुदाय से संबंधित महापुरूषों का वर्णन मिलता है। भारत के अनेक भागों में समुदाय का शासन रहा है।
सिंधु घाटी सभ्यता में भील समुदाय की बस्तियों के प्रमाण मिले हैं। भगवान शिव, भगवान सूर्य और नाग पूजा करने के चिन्ह भी मिले है। शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग भील समुदाय से ही संबंधित थे। भील शब्द की उत्पत्ति पर शोधकर्ताओं के अलग-अलग विचार हैं। संस्कृत के भाषा विज्ञान से समझें तो इस शब्द भील में दो अक्षर “भ” और “ल” हैं। यदि “भ” अक्षर को उपसर्ग के रूप में “ल” से जोड़ेंगे तो यह “भल” धातु होती है। इसका एक अर्थ श्रेष्ठता की ओर गतिमान होना है। इसी से भलाई शब्द बनता है। यदि उपसर्ग भ में ईकार लगे तो भील शब्द बनता है। इसका अर्थ है सदैव शक्ति के साथ भलाई की ओर गतिमान रहना।
यदि सैंकड़ों साल से भील समुदाय की जीवन शैली देखें तो यह समाज सदैव सात्विक रहा है और राष्ट्र एवं संस्कृति की रक्षा के लिये सदैव समर्पित। सूर्य का एक नाम “भिल्लस्वामिन” भी है। अर्थात भीलों का स्वामी। प्राचीन काल के जितने नगर हैं जैसे भेलसा (वर्तमान विदिशा), भिलाड़िया, भिलाई, भीलवाड़ा आदि सभी स्थानों पर सूर्य मंदिर होने के चिन्ह भी मिलते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों का मानना है कि प्राचीन संस्कृत साहित्य में भील संज्ञा का प्रयोग धनुष बाण के कुशल सैनिकों और शिकारियों के लिये हुआ है। धनुष-बाण के ऐसे कुशल योद्धा अथवा शिकारी को “बिल्ल” कहा गया है, इसी से शब्द भील बना।”
भील समुदाय पर विभिन्न विद्वानों ने शोध किया है। सबने अपनी राय भी अलग-अलग दी है। इनमें कर्नल जेम्स टॉड ने भीलों को ‘वन पुत्र’ कहा है। एक अन्य लेखक ने अपनी पुस्तक ‘वाइल्ड ट्राइब्स ऑफ़ इंडिया’ में भीलों का मूलनिवास मारवाड़ बताया है। डॉ. डी. एन. मजूमदार ने अपनी पुस्तक ‘रेसेज एंड कल्चरल ऑफ़ इंडिया’ में भील जनजाति का सम्बन्ध प्राचीन ‘नेग्रिटो’ प्रजाति से बताया है। जी. एस. थॉमसन ने 1895 ई. में भीली भाषा की व्याकरण की रचना की। जिसमें इन्होंने समुदाय की भाषा को गुजराती से सम्बंधित बताया है। प्रसिद्ध इतिहासकार टॉलमी ने भीलों को फिलाइट कहा है। भील समुदाय एक विस्तृत समाज है। इसमें निषाद, शबर, किरात, पुलिंद, यक्ष, नाग और कोल आदि वर्ग आते हैं।
इतिहासकारों का मानना है कि भील समुदाय सबसे प्राचीन समाज है और उन्होंने समय के साथ अपने राज्य भी स्थापित कर लिये थे। भील समुदाय मिश्र से लेकर लंका तक समस्त भूभाग में फैला हुआ था। प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता भील समुदाय के विकसित और सामर्थ्यवान होने का प्रमाण है। भारतीय वांग्मय में जहाँ तक दृष्टि जाती है, वहाँ भील समुदाय का उल्लेख मिलता है। वैदिक काल में भी और रामायण काल में भी। पुराण प्रसिद्ध राजा विश्वासु भी भील समाज से थे। इनका राज्य नीलगिरी के पर्वतीय क्षेत्र में था। हिमालय क्षेत्र में राजा शम्बर हुये। ये भील समुदाय के उपवर्ग किरात समाज से थे। इन्होंने आर्य सम्राट दिवोदास के विरुद्ध चालीस वर्षों तक युद्ध किया था।
महाभारत काल में भी भील समुदाय के शौर्य की अनगिनत गाथाएँ हैं। दुर्योधन को बंदी बनाने वाले भील समाज के वीर ही थे, महारथी कर्ण भील समाज के गुस्से को देखकर ही भाग गये थे। महाभारत युद्ध में दोनों ओर से युद्ध करने वाले भील समुदाय के योद्धाओं का उल्लेख मिलता है। इसी समाज में महर्षि वाल्मीकी, माता शबरी, केवट, निषाद, एकलव्य जैसे कालजयी नाम मिलते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में एक कहावत प्रचलित है – “संसार में केवल साढ़े तीन राजा प्रसिद्ध हैं। पहला राजा इन्द्र, दूसरा राजा ययाति, तीसरा राजा भील राजा और फिर हमारा बिंद आधा यानि दूल्हा राजा।
मध्यकाल से लेकर अंग्रेजीकाल तक के इतिहास में पूंजा भील, दुदा भील, बावले भील जैसे योद्धाओं की एक लंबी श्रृंखला है। मेवाड़ राज्य की स्थापना और उसे सशक्त बनाने में भील समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। चित्तौड़ पर हुये हर आक्रमण का उत्तर देने में मेवाड़ के महाराणाओं को भील जाति का निरन्तर सहयोग रहा है। महाराणा प्रताप अकबर के विरुद्ध भीलों के सहयोग से निरन्तर संघर्ष कर अकबर को परेशान करते रहे। मेवाड़ के महाराणा इसी जनजाति के सहयोग से मुगलों का वर्षों तक सफलतापूर्वक सामना करते रहे।
प्रताप की सेना में भीलू राणा और कई अन्य योद्धा थे। यही कारण है कि भील जाति की सेवाओं के सम्मान स्वरुप मेवाड़ के राज चिह्न में एक और राजपूत तथा दूसरी ओर भीलू राणा अंकित है। आज भी हिमालय परिक्षेत्र में भील महापुरुषों के चिन्ह और स्मारक मिलते हैं। थारू जनजाति के लोगों का दावा है कि मातृपक्ष से राजपूत उत्पत्ति के हैं और पितृ-पक्ष से भील हैं। दक्षिण भारत में भीलों को विल्लवर और बिल्लवा कहा गया, यही भील तमिलनाडु और केरल के प्रारंभिक निवासी रहे। दक्षिण भारत में चेरा वंश की नींव रखी।
गुरुनानक देव के प्रसंग में कोड़ा भील का जिक्र हुआ है, उन्होंने लिखा कि भगवान जगन्नाथ पुरी से लेकर, तिरुवंतपुरम तक के तटवर्तीय क्षेत्र में भीलों का शासन रहा है। आज भी जगन्नाथ रथ यात्रा में भील समाज के प्रमुख की सहभागिता होती है।
मध्यकाल में भी भील समुदाय से संबंधित शासकों की एक लंबी श्रृंखला रही है। बारहवीं शताब्दी के आसपास भारत के अधिकांश हिस्सों पर भील समुदाय से संबंधित अनेक राजाओं का उल्लेख मिलता है। छठी शताब्दी में एक शक्तिशाली भील राजा का पराक्रम देखने को मिलता है, जहां मालवा के भील राजा हाथी पर सवार होकर विंध्य क्षेत्र से होकर युद्ध करने जाते हैं। मौर्यकाल में पश्चिम और मध्य भारत में भील समुदाय के 4 नाग राजा, 7 गर्धभिल भील राजा और 13 पुष्प मित्र राजाओं की स्वतंत्र सत्ता रही है।
इतिहास में एक अन्य शक्तिशाली भील राजा मांडलिक का उल्लेख मिलता है। राजा मांडलिक ने ही गुहिल वंश अथवा मेवाड़ के प्रथम संस्थापक राजा गुहादित्य को संरक्षण दिया। गुहादित्य राजा मांडलिक के राजमहल में रहता और भील बालकों के साथ घुड़सवारी करता, राजा मांडलिक ने गुहादित्य को कुछ जमीन और जंगल दिए। भीलों की सहायता से ही गुहादित्य एक विशाल साम्राज्य के शासक बने।
मध्यप्रदेश में मालवा पर भील समुदाय से संबंधित राजाओं का शासन रहा है। आगर मालवा, झाबुआ, ओंकारेश्वर, अलीराजपुर, ताल, सीतामऊ , उज्जैन, राजगढ़, महिदपुर, रामपुरा भनपुरा, चंदवासा, और विदिशा आदि क्षेत्र में भील समुदाय के शासकों का ही राज्य रहा। इंदौर राज्य में तो एक सैन्य मुख्यालय का नाम ही भील पल्टन था। इसका नाम अब पुलिस प्रशिक्षण विद्यालय हो गया है। मथलेश्वर् में भील सेना का केन्द्र रहा है। महाराष्ट्र में भी पन्द्रहवीं शताब्दी तक अनेक भील शासकों का उल्लेख मिलता है, इनमें खानदेश, बुलथाना आदि हैं। जहाँ अन्य शासक थे वहां सेनापति के रूप में भील समुदाय से संबंधित सेना नायकों का उल्लेख मिलता है।