बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी के भारत अध्ययन केंद्र में हिन्दू धर्म व संस्कृति पर आधारित कोर्स की विधिवत शुरूआत इसी सत्र से हो रही है. आधुनिकता के साथ सनातन प्राचीन परंपरा की थाती संजोए विवि में छात्र वेद, पुराण, ब्राह्मण और श्रमण परंपरा के साथ रामायण, महाभारत, दर्शन, ज्ञान मीमांसा सहित हिन्दू धर्म के वैशिष्ट्य और परंपरा पर आधारित पाठ्यक्रमों में पढ़ाई कर सकेंगे.
इसका प्रारंभ कला संकाय के अंतर्गत भारत अध्ययन केंद्र में किया गया है. कोर्स के तहत भारत सहित विश्व के छात्रों को सनातन हिन्दू धर्म की पुरातन विद्या, परंपरा, युद्ध कौशल और धर्म-विज्ञान, वैदिक परंपरा में पारंगत किया जाएगा. 2 साल के इस कोर्स के लिए 40 सीटें निर्धारित हैं. ऑनलाइन फॉर्म भरने की अंतिम तिथि 07 सितंबर, 2021 है. हिन्दू धर्म और शास्त्रों से संबंधित प्रश्नों पर आधारित प्रवेश परीक्षा 03 अक्तूबर को होगी. प्रॉस्पेक्टस
वर्ष के प्रारंभ में ही बीएचयू, जेएनयू, आईआईटी कानपुर सहित देश भर के विद्वानों ने बैठक कर निर्णय लिया था कि भारत में पहली बार बीएचयू में हिन्दू अध्ययन की शिक्षा दी जाएगी. हिन्दू स्टडीज नामक नए कोर्स को 2021-22 के इसी सत्र से शुरू करने का निर्णय लिया गया है. इसके तहत दो वर्षीय एम ए का कोर्स होगा, जिसका आवेदन प्रक्रिया की शुरुआत के साथ आरम्भ हो चुका है.
विश्वविद्यालय में इसके लिए स्मार्ट क्लास बनाई गई है. इसमें गुरुकुल शिक्षा पद्धति भी दिखेगी और प्राचीन धर्म शास्त्र के व्यावहारिक पहलुओं पर गहन अध्ययन और प्रयोग भी होगा. प्रोफेसर राकेश उपाध्याय ने बताया कि अत्याधुनिक तकनीक के सहारे डिजिटल दुनिया के अन्य देशों के छात्र भी इस कोर्स में दाखिला ले सकेंगे.
भारत अध्ययन केंद्र द्वारा स्नातकोत्तर की उपाधि देने वाले इस कोर्स का पाठ्यक्रम कला संकाय प्रमुख प्रो. विजय बहादुर सिंह की अध्यक्षता में बनारस और देश-विदेश के कई नामी-गिरामी आचार्यों द्वारा तैयार किया गया है, जिस पर कला संकाय प्रमुख की अध्यक्षता वाली बोर्ड ऑफ स्टडीज की बैठक में सर्वसम्मति से मुहर लगा दी गई थी.
भारत में यह पहला अवसर है जब इस कोर्स के तहत सनातन परंपरा, ज्ञान मीमांसा सहित तत्व विज्ञान लेकर सैन्य विज्ञान जैसे प्राचीन हिन्दू शास्त्रों को एकेडमिक स्वरूप प्रदान किया गया है. इस कोर्स के अंतर्गत हिन्दू धर्म के वैशिष्ट्य और परंपरा पर आधारित पाठ्यक्रम की रचना की गई है.
इस कोर्स के संचालन में कला संकाय के ही भारत अध्ययन केंद्र के अलावा दर्शन शास्त्र विभाग हिन्दू धर्म का मर्म, उद्देश्य और रूपरेखा बताएगा. प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति विभाग सनातन काल से महान हिन्दू सम्राटों द्वारा उपयोग किए जाने वाले उपकरणों, हथियारों, स्थापत्य कला और प्राचीन व्यापारिक गतिविधियों को पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सिद्ध करेगा. संस्कृत विभाग श्लोकों के माध्यम से शास्त्रों और ग्रंथों के व्यावहारिक पक्षों को विद्यार्थियों के समक्ष व्यावहारिक रूप में रखेगा.
विशेष रूप से पाठ्यक्रम में निर्णय लेने के दौरान बोर्ड आफ स्टडीज की बैठक में कला संकाय प्रमुख प्रो. विजय बहादुर सिंह की अध्यक्षता में जेएनयू के प्रो. रामनाथ झा, आईआईटी कानपुर के प्रो. नचिकेता तिवारी, प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी, प्रो. ब्रजकिशोर स्वाई (ओडिशा), बीएचयू संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के प्रमुख प्रो. विंध्येश्वरी प्रसाद मिश्र, लोकगायिका प्रो. मालिनी अवस्थी, प्रो. प्रद्युम्न शाह, प्रो. विमलेंद्र कुमार, प्रो. सच्चिदानंद मिश्र, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र वाराणसी के निदेशक प्रो. विजय शंकर शुक्ल, प्रो. राकेश उपाध्याय, प्रो. केशव मिश्र, डॉ. अर्पिता चटर्जी, प्रो. सदा शिव कुमार द्विवेदी समेत कई अन्य प्रमुख आचार्य मौजूद थे, जिन्होंने लंबे विचार-विमर्श के बाद पाठ्यक्रम पर अपनी संस्तुति दी.
प्रोफेसर राकेश उपाध्याय का कहना था, “ज़्यादातर ऐसे विचारधारा के लोग हैं, जिनका एकमात्र उद्देश्य हिन्दू धर्म और सनातन परंपरा से द्रोह के कारण अपने नैरेटिव के लिए हर जगह अनावश्यक डिबेट खड़ा करके उसे ख़ारिज करना है. न कि उसे समझना और उस पर वास्तविक विमर्श करना.”
उन्होंने कुछ इतिहासकारों की तरफ इशारा करते हुए कहा, “कई ऐसे प्राचीन इतिहास के विशेषज्ञ बने हुए हिन्दू धर्म पर व्याख्यान देते फिर रहे हैं. इन्हें खुद मूल ग्रंथों का ज्ञान नहीं है. जो परंपरा से ऋग्वेद पढ़ रहे हैं, उन्हें उसमें गाय काटने का वर्णन नहीं मिलेगा. लेकिन जिन्हें हिन्दू धर्म को सिर्फ बदनाम करना है वह ऐसा कोई भी क्षेपक-प्रक्षेपक के सहारे जो भारत का है, जो इस राष्ट्र का गौरवशाली तत्व है उसे विकृत और दुष्प्रचारित करने में लगे हैं.”