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अंग्रेजों ने 1857 में भी किया था नरसंहार, पंजाब विश्वविद्यालय के अध्ययन में खुलासा, अजनाला गुरुद्वारा में मिले थे 282 नरकंकाल

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चंडीगढ़. स्‍वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेजों द्वारा की गई दरिंदगी और दिल दहला देने वाले नरसंहार के बारे में खुलासा हुआ है. अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग नरसंहार से पहले भी इसी तरह के नरसंहार को अंजाम दिया था, अजनाला में 282 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. अंग्रेजों ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विद्रोह करने वाले 282 भारतीय सैनिकों की हत्‍या कर दी थी. इस नरसंहार का खुलासा अजनाला के गुरुद्वारा में मिले 282 नरकंकालों के विश्‍लेषण में हुआ है.

चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्‍वविद्यालय के अध्‍ययन में खुलासा हुआ है कि पंजाब के अमृतसर जिले के अजनाला में दबे कंकाल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बलिदानियों के हैं. विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजी डिपाटमेंट के डॉ. जेएस सहरावत ने अपनी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया. पहले इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं था, लेकिन डॉ. शेरावत की रिपोर्ट के बाद इसकी वैज्ञानिक पुष्टि भी हो गई. इन कंकालों की पहचान करने में पूरे छह वर्ष का समय लगा है.

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इन बलिदानी सैनिकों के सिर पर वार किया गया था, जिससे उनकी मौत हुई. कंकाल 26वीं मूल बंगाल इन्फेंट्री बटालियन के सैनिकों के हैं. ये सभी पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, अवध (वर्तमान में पूर्वी उत्तर प्रदेश) राज्यों से आए थे. अजनाला के कुएं से मिले 9000 से भी ज्यादा दांतों, खोपड़ियों व अन्य अवशेषों के डीएनए से स्टेबल आइसोटॉप और रेडियो कार्बन डेटिंग विधि से विश्लेषण किया गया.

सहरावत ने बताया कि शोध के दौरान विभिन्न प्रकार तथ्य सामने आए, जिनको एकत्रित करने बाद यह कहा जा सकता है कि से कंकाल 1857 में बलिदान हुए सैनिकों के ही हैं. उस समय मीर कैंट में भी आजादी के लिए विद्रोह हुआ था. इसमें 26वीं मूल बंगाल इन्फेंट्री बटालियन के सैनिकों ने अनेक अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था. इसका बदला लेने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने 282 सैनिकों का कत्ल कर उनके शवों को अजनाला में कलियांवाला खू में डाल कर दफना दिया था. उसके बाद उस कुएं पर एक गुरुद्वारा बना दिया गया था ताकि किसी को इसका पता न चल सके.

पंजाब के तत्कालीन कमिश्नर हेनरी ली कूपर ने 1857 के विद्रोह को दबाने के लिये बागी हुए सिपाहियों को कुचलने के लिये 282 सेनानियों को मारकर या जिंदा ही एक कुएं में दफन करा दिया था. उसने भारतीयों की धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा का अनुचित लाभ उठाते हुए कुएं के ऊपर एक गुरुद्वारा बना डाला ताकि कोई इसका पता न लगा सके. उसकी इस कारगुजारी पर कंपनी सरकार ने उसे वापस इंग्लैंड भेज दिया था, जहां पर 1858 में उसने अपनी पुस्‍तक ‘क्राइसिस इन पंजाब : फ्रॉम 10 मई अनटिल फॉल ऑफ दिल्ली’ में रहस्य को लिखा था. वर्ष 2014 में पहले गुरुद्वारे को नए स्थान पर बनाया गया, जिसके बाद कुएं की खुदाई की गई. खुदाई के दौरान वहां से 282 कंकाल मिले थे. इसके बाद पंजाब सरकार ने इन सभी कंकालों को पंजाब विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजी विभाग को जांच के लिए सौंपा था.

20 वर्ष से अधिक आयु के सैनिकों के थे दांत

सहरावत ने बताया कि कंकालों के दांतों की शोध से सामने आया कि जो सैनिक शहीद हुए थे, उनकी उम्र 20 वर्ष से अधिक थी. किसी अन्य भारतीय विश्वविद्यालय/संस्थान में इतनी बड़ी संख्या में कंकालों पर रिसर्च नहीं हुई.

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