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कलकत्ता – उच्च न्यायालय ने प. बंगाल सरकार से पूछा, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद कार्रवाई में देरी क्यों?

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कोलकाता। उच्च न्यायालय ने सोमवार को पश्चिम बंगाल सरकार और पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (डब्ल्यूबीएसएससी) से सवाल किया कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 25 हजार 752 शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों को रद्द करने के आदेश को लागू करने में इतनी देर क्यों की जा रही है।

उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति देबांग्सु बसाक और न्यायमूर्ति शब्बार रशीदी की पीठ ने अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान की यह टिप्पणी की, याचिका में राज्य सरकार और डब्ल्यूबीएसएससी पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को लागू न करने का आरोप लगाया गया है। न्यायालय ने सरकार और आयोग को निर्देश दिया कि एक दिन के भीतर देरी पर स्पष्टीकरण दें।

याचिका पर अगली सुनवाई 23 अप्रैल को होगी, जिस दिन राज्य सरकार और आयोग को अपना जवाब प्रस्तुत करना होगा।

पिछले वर्ष यही खंडपीठ 2016 की पूरी नियुक्ति सूची को रद्द कर चुकी है, जिसमें 25 हजार 753 शिक्षक और शिक्षणेत्तर पद शामिल थे। उस आदेश को राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। हाल ही में, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखते हुए माना कि नियुक्तियों की पूरी सूची को रद्द करना आवश्यक था, क्योंकि सरकार और आयोग “दागी” और “ईमानदार” उम्मीदवारों के बीच अंतर नहीं कर सके।

इसके बाद उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर की गई, जिसमें यह आरोप लगाया गया कि सरकार और आयोग ने अब तक उन लोगों की नौकरी खत्म करने की प्रक्रिया शुरू नहीं की है, जिन्हें आयोग खुद पहले ही “दागी” घोषित कर चुका है।

सोमवार को सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा कि यदि “दागी” उम्मीदवारों को वेतन मिलता रहा, तो यह और भी गंभीर समस्या खड़ी करेगा। साथ ही, यह भी सवाल उठाया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अब तक उन “दागी” उम्मीदवारों से पूछताछ क्यों नहीं कर रही है। साथ ही, निर्देश दिया कि सीबीआई यह पता लगाए कि किन लोगों को इन पदों के बदले पैसे दिए गए थे। अब बुधवार को सीबीआई के वकील को भी इस मामले में अपना पक्ष न्यायालय के सामने रखना होगा।

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