प्रयागराज. एक याचिका पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सख्त टिप्पणी की. न्यायालय ने कहा कि राज्य को पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेलिंग जैसी असामाजिक गतिविधियों में लिप्त पाए जाने वाले पत्रकारों के लाइसेंस रद्द कर देने चाहिए.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने भारतीय दंड संहिता और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के विभिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज मामले में एक पत्रकार और एक समाचार पत्र वितरक के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की.
राज्य सरकार की ओर से यह तथ्य रखे जाने के बाद कि उत्तर प्रदेश में लोगों के खिलाफ समाचार पत्रों में लेख छापने और समाज में उनकी छवि खराब करने की आड़ में ब्लैकमेल करने वाला एक गिरोह सक्रिय है, न्यायालय ने आरोपियों को राहत देने से इनकार कर दिया.
रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने कहा – “मामला बहुत गंभीर है और राज्य मशीनरी को इसका संज्ञान लेना चाहिए और ऐसे पत्रकारों का लाइसेंस रद्द करना चाहिए, यदि वे अपने लाइसेंस की आड़ में इस तरह की असामाजिक गतिविधियों में संलिप्त पाए जाते हैं. राज्य सरकार के पास ऐसी मशीनरी है जो मामले के सही पाए जाने पर इस तरह की गतिविधियों को रोकने में सक्षम है”.
वर्तमान मामले में, अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने प्रस्तुत किया कि उन्हें झूठा फंसाया गया है और आरोप पत्र भी उचित जांच के बिना दायर किया गया था.
हालांकि, राज्य ने तर्क दिया कि प्रथम दृष्टया अपराध बनता है और पत्रकार उच्च न्यायालय के समक्ष सूचना विभाग द्वारा जारी लाइसेंस प्रस्तुत करने में विफल रहा है.
तथ्यों व तर्कों पर विचार कर, न्यायालय ने कहा कि मामले में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है क्योंकि प्रथम दृष्टया अपराध बनता है.