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राम नाम के हीरे मोती – देख नहीं सकता, पर एक ईंट की कीमत तो चुका सकता हूं

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बांदा निवासी राजेश कुमार. दिव्यांग हैं, देख नहीं सकते. घर-घर मांगकर अपना भरण पोषण करते हैं. इन्हें पता लगा कि श्रीराम मन्दिर निर्माण के लिए घर-घर समर्पण संग्रहित किया जा रहा है.

तो राजेश ने भी अपने पास से 100 रुपये की राशि श्रीराम मन्दिर के लिए समर्पित की और कहा – मेरी आंखें नहीं हैं, मैं मन्दिर नहीं देख सकता. लेकिन मैं भगवान श्रीराम जी के मंदिर के लिए एक ईंट की कीमत चुका सकता हूं. मैं प्रभु श्रीराम से यही प्रार्थना करता हूं कि वे मुझे अगले जन्म में आंखें दें ताकि मैं राम जी का भव्य मंदिर देख सकूं.

श्रीराम मंदिर निर्माण से ही राष्ट्र मंदिर बनेगा

 

गंगाराम जी, मूलत: बाराचट्टी बिंदा के निवासी हैं. पिछले कई वर्षों से बोधगया में निवास कर रहे हैं. वृद्धावस्था में जर्जर काया होने के बाद भी अपनी और परिवार की जीविका चलाने हेतु दूसरों के खेतों में परिश्रम कर बमुश्किल 2 वक्त की रोटी कमाते हैं. शरीर साथ नहीं देता, फिर भी कार्य कर रहे हैं.

इनकी प्रभु भक्ति अटूट है. प्रभु भक्ति एवं साधु संतों की सेवा में रुचि रखते हैं. कहीं से अपने लिए जो कुछ भी अर्जित करते हैं, उसमें से एक हिस्सा साधु-संत हेतु जरूर निकाल देते हैं. दीर्घकाल से अभाव में जीवन व्यतीत करने के बावजूद भी उन्होंने प्रभु श्रीराम के मंदिर निर्माण हेतु बचत की और मंदिर निर्माण हेतु 1100 रु. का समर्पण किया.

 

राम जी के मंदिर में एक ईंट मेरी भी लगवाना

बाड़मेर

05 फरवरी, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण निधि समर्पण अभियान समिति के कार्यकर्ता गौशाला शाखा क्षेत्र में संपर्क के लिए निकले थे. कार्यकर्ता भगतों की गली में संपर्क कर रहे थे, इसी दौरान एक भिक्षुक ने आवाज लगाई और टोली से कुछ देने का आग्रह किया…

इस पर टोली के कार्यकर्ताओं ने उत्तर दिया, प्रभु श्रीराम का मंदिर बन रहा है, हम स्वयं उनके लिए मांगने निकले हैं…..आपको क्या दें…आपकी इच्छा हो तो दे दो…

श्रीराम मंदिर के बारे में सुन, हरी नाम के भिक्षु ने अपनी झोली से 25 रु निकाले और कार्यकर्ताओं की तरफ बढ़ा दिए, कार्यकर्ताओं ने 5 रु वापिस कर दस-दस रु के दो कूपन उन्हें दे दिए…..

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