गुवाहाटी. जनजाति धर्म संस्कृति सुरक्षा मंच के कार्याध्यक्ष बिनोद कुंबंग ने कहा कि एक जाति का मुख्य उपादान होती है उस जाति की अपनी भाषा (लिखित या अलिखित), धर्म, परम्परा और संस्कृति. मूलतः जन्म मृत्यु आदि के समय पालन करने वाली परम्परा, रीति रिवाज इत्यादि द्वारा व्यक्ति कौन सी जाति से है, वो जान सकते हैं. वह डी-लिस्टिंग की मांग को लेकर 26 मार्च को होने वाली विशाल रैली के संबंध में जानकारी देने के लिए आयोजित पत्रकार वार्ता में बोल रहे थे.
उन्होंने कहा कि अपनी मातृ भाषा, धर्मीय विश्वास, परंपरागत रीति रिवाज, अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है और संवैधानिक अधिकार भी है. यह सब अगर हम खो देंगे तो हमारी जाति की अस्तित्व भी एक दिन विलुप्त हो जाएगा. सांप्रतीक समय में विभिन्न प्रकार की आर्थिक प्रलोभन द्वारा जनजातीय लोगों को धर्मांतरित करने की प्रक्रिया चरम अवस्था में पहुंची है. इसके कारण जनजातियों के अस्तित्व और धर्म संस्कृति पर भयंकर संकट आया है. भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है. एक व्यक्ति क्या धर्म पालन करेगा, यह उनकी व्यक्तिगत बात है और मौलिक अधिकार भी अगर कोई स्वेच्छा से दूसरा धर्म ग्रहण करता है तो उसमें बाधा बनना हमारा उद्देश्य नहीं है. परंतु उल्लेखनीय है कि जब एक व्यक्ति अपना धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपनाता है, तब वह व्यक्ति अपने मूल धर्म की रीति रिवाज, परम्परा इत्यादि परिवर्तन करता है और धीरे-धीरे जन्म-मृत्यु, विवाह आदि के दौरान किए गए हर नीति नियम पूजा, पद्धति परित्याग करता है. तब इस प्रकार के लोग किसी भी प्रकार से पूर्व के अपने मूल जाति के सदस्य नहीं रहते, बल्कि ऐसे धर्मांतरित लोग जनजातीय लोगों को बर्बर, असभ्य, शैतान आदि गालियों से पुकारते हैं.
अपनी जाति की सुरक्षा हमें स्वयं करनी पड़ेगी. हम सबको एकत्रित होकर अनैतिक और झूठे प्रलोभन के द्वारा कुछ विशेष विदेशी धर्मों के सुसंगठित और उद्देश्य प्रणोदित धर्मांतरण की इस प्रक्रिया का प्रतिरोध करना ही पड़ेगा. इसमें केवल हमारी जाति की अस्तित्व ही नहीं, देश की सुरक्षा का भी सवाल है.
इस चुनौती से कैसे मुकाबला करें?
यह बिल्कुल सरल है, जैसे की अनुसूचित जाति के मामले में संविधान के आर्टिकल 341 में उल्लेखित है कि एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति किसी विदेशी धर्म में धर्मांतरित होने के पश्चात उनका नाम अनुसूचित जाति के सूची से अपने आप विलुप्त हो जायेगा और उसी के साथ अनुसूचित जाति की हर संवैधानिक सुविधाओं से भी वे वंचित रहेंगे, किंतु जनजातियों के लिए आर्टिकल 342 में इसका उल्लेख नहीं किया गया. संविधान की इस त्रुटि के कारण अनुसूचित जनजाति समाज के लोग धर्मांतरण का पहला और आसान शिकार बन रहें है. सिर्फ यही नहीं धर्मांतरण के बाद भी जनजाति मूल के धर्मांतरित व्यक्ति अवैध तथा अनैतिक प्रकार से दोहरा लाभ (Double Benefit) – ST और Minority का भी लाभ उठाते दिखते है. इस परिस्थिति में, आर्टिकल 342 का संशोधन के जरिए धर्मांतरित जनजाति लोगों के नाम अनुसूचित जनजाति के सूची से हटाने के अलावा और कोई उपाय नहीं रहा. Delisting ही एकमात्र उपाय है.
अनुसूचित जनजाति कौन हैं?
अनुसूचित जनजाति एक औपचारिक मान्यता है जो भारत में ऐतिहासिक रूप से सुविधाओं से वंचित जातियों को प्रदान किया गया है. संविधान की अनुसूचित जनजाति आदेश 1950 के पहला अनुसूची में देश की 22 राज्यों से कुल 744 जातियों को शामिल किया गया और सिर्फ कुछ दिन पहले ही ऐसा और 12 जातियों को अनुसूचित जनजाति के सूची में शामिल किया गया. देश की आजादी के पश्चात अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक, स्वधर्मी परम्परा, रीति-रिवाज तथा भाषा संस्कृति आदि की सुरक्षा और राजनैतिक प्रतिनिधित्व के लिए संरक्षण की नीति निर्धारित की गई.
अनुसूचित जनजाति की मान्यता देना एक संवैधानिक प्रक्रिया है अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल होने के लिए निम्नलिखित विशेषताएं रहना आवश्यक हैं :-
1) भौगोलिक अलगाव
2) विशिष्ट उपभाषा एवं सांस्कृतिक पहचान
3) परंपरागत/प्रथागत विचार व्यवस्था
4) अन्य समाज के लोगों से मिलने-जुलने में दुविधा
5) ऐतिहासिक रूप से सुविधाओं से वंचित तथा आर्थिक पिछड़ेपन और उसी के साथ भूमिपुत्र होना भी आवश्यक है.
भारत के कई उच्च न्यायालयों ने भी हमारे मांग के पक्ष ही राय प्रदान की है:
2023 में संविधान के 2A अनुच्छेद का 342(2) का संशोधनी बिल संसद में लाने के लिए 26 मार्च, 2023 को गुवाहाटी स्थित खानापारा फील्ड में चलो दिसपुर नामक एक विशाल समावेश का आह्वान किया गया है. इसलिए सभी जनजाति भाई बहन, बन्धुओं को अपने जाति, भाषा, धर्म, संस्कृति, परम्परा, रीति-रिवाज आदि की रक्षा के लिए और धर्मांतरित लोगों द्वारा अनैतिक तरीके से डबल बेनिफिट अर्थात ST और Minority का जो आरक्षण का लाभ उठाया जा रहा है, उसका अंत करने के लिए एक साथ अपनी जनजाति पोशाक में आने का विनम्र अनुरोध करते हैं.
- धर्मांतरण बंद करें, जनजाति धर्म संस्कृति की रक्षा करें.
- झूठे लालच देकर सरल जनजातियों को धर्मांतरित करना बंद करें.
- धर्मांतरित जनजाति लोगों के नाम ST सूची से विलुप्त करना निश्चित करें.
- धर्मांतरित जनजाति व्यक्ति ST प्रमाण पत्र के जरिए कोई चुनाव में प्रतिद्वंदिता नहीं कर सकता.
- धर्मांतरित जनजाति व्यक्ति ST प्रमाण पत्र के जरिए कोई सरकारी पद/शिक्षा संस्थान में पद नहीं ले सकता.