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संकट काल में चरखा बना सहारा, 500 परिवारों के रोजगार का आधार

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प्रयागराज. कोरोना संकट के दौर में अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई है. संकट काल में चरखा मददगार बना हुआ है. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की हंडिया तहसील में 500 से ज्यादा परिवारों को चरखे से रोजगार मिला हुआ है. परिवार छह से दस हजार रुपये प्रतिमाह कमा रहे हैं. तहसील के डिघौटा गांव में योगेंद्र पटेल का पूरा परिवार चरखा चला रहा है. पांच भाइयों के परिवार में आठ चरखे हैं. उनके परिवार की महिलाएं और बेटियां वंदना, सुशीला, रामदुलारी, रेखा, सोमवारी चरखा चलाकर परिवार का खर्च उठा रही हैं. परिवार में कोई भी सरकारी या प्राइवेट नौकरी नहीं करता है. खेती और चरखा ही रोजगार का साधन है. इसी से बच्चों की पढ़ाई से लेकर परिवार का पूरा खर्च चलता है. गांव में ऐसे 25 परिवार चरखे पर निर्भर हैं. इनके अलावा रेहठो, कोरीपुर, मोहिउद्दीनपुर, आलानगरी, अनुआ, भेलखा, गोरिगो, चनेथू, लीलापुर, मियांपुर, राचनपुर, बछेड़ी, कटहरा आदि गांवों में 300 से अधिक चरखे चल रहे हैं. इनके माध्यम से 500 परिवारों की रोजी-रोटी चल रही है.

लाल बहादुर शास्त्री स्मारक ग्रामोद्योग संस्थान कच्चा माल मुहैया करवाता है. धागा तैयार होने पर 220 रुपये किलो में खरीद लेता है. अब आठ और 12 तकले वाले एनएमसी यानि न्यू मॉडल चरखे पर काम होता है. आठ तकले वाला हाथ से, जबकि 12 तकले वाला सौर सिस्टम से चलता है. जिला खादी ग्रामोद्योग अधिकारी राम औतार यादव ने बताया कि आठ और 12 तकले के चरखे आने से डिमांड बढ़ गई. कोरोना काल में तो इनकी मांग तेजी से बढ़ी है. खादी की भी डिमांड बढ़ी है. आने वाले दिनों में इससे कई और लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है.

मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में जौरा नामक स्थान है, जहां महात्मा गांधी की तस्वीर के सामने 654 दस्युओं ने बंदूकें छोड़ आत्म समर्पण किया था. उसी जगह बना गांधी सेवा आश्रम अब स्वावलंबन की मिसाल बन चुका है. इसमें कई पूर्व दस्यु बागवानी, खाद बनाने से लेकर अन्य काम कर रहे हैं. इतना ही नहीं, यह आश्रम 1160 से ज्यादा परिवारों को तीन दशक से रोजगार मुहैया करवा रहा है.

गांधीवादी विचारक डॉ. एसएन सुब्बाराव ने पहले चंबल के खूंखार दस्युओं को आत्मसमर्पण के लिए मनाया, फिर सरकार को राजी किया. इसके बाद 14 अप्रैल 1972 को महात्मा गांधी की तस्वीर के समक्ष समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण की उपस्थिति में 654 दस्युओं ने आत्मसमर्पण किया. दस्युओं को सुरक्षा का विश्वास दिलाने के लिए प्रभावती देवी ने उस समय के सबसे खूंखार दस्यु मोहर सिंह व माधौसिंह को राखी बांध भाई बनाया था. पहले दस्युओं के स्वजनों को यहां लाया गया. सजा पूरी कर आत्मसर्मिपत दस्यु भी यहां आ गए. अब 1160 परिवारों की आजीविका की धुरी यह आश्रम है. अपने जमाने के खूंखार दस्यु माधौसिंह, हरिविलास गिरोह के सबसे भरोसेमंद सदस्य बहादुर सिंह कुशवाह, ऐसे पूर्व दस्यु अब यहां सेवा कर सादगी से जीवन जी रहे हैं.

 

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