करंट टॉपिक्स

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग का कार्यकाल तीन वर्ष बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार का अभिनंदन – सामाजिक समरसता मंच

Spread the love

नई दिल्ली. सामाजिक समरसता मंच राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग का कार्यकाल तीन वर्ष तक बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार को बधाई देता है और अभिनंदन करता है.

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के कार्यकाल को एक साथ तीन वर्ष तक बढ़ाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है. पूर्व की सरकार आयोग के कार्यकाल को कभी एक साल तो कभी 6 महीने के लिए बढ़ाती थी, जिससे आयोग प्रभावी रूप से कार्य नहीं कर पाता था.

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री ने 02 दिसंबर 2021 को लोकसभा में कहा था कि 43,797 मैनुअल स्कैवेंजर्स की पहचान की गई है, जिसमें से लगभग 42,500 अनुसूचित जाति से हैं. मैनुअल स्कैवेंजर्स को उनके पेशे के कारण अछूतों में अछूत माना जाता है. उनको सभू द्वारा अपमानित किया जाता रहा है.

1993 में राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग का गठन होने के बाद भी उनके संबंधित मुद्दों का समाधान अभी तक नहीं हुआ है. सीवर की स्वच्छता के दौरान कई कीमती जानें चली गईं. हाल ही के कुछ महीनों में काफी मौतें हुई हैं. 23.12.2021 को महाराष्ट्र (सोलापुर) में चार, 16.12.2021 को गुजरात (अहमदाबाद) में तीन, 24.09.2021 को मध्य प्रदेश (सिंगरौली) में तीन, 15.01.2022 को तमिलनाडु (चेन्नई) में एक, तमिलनाडु (कांचीपुरम) में 19.01.2022 को दो.

1993 से 2021 तक आयोग की सक्रिय भूमिका से सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार 671 पीड़ित परिवारों को 10 लाख रुपये का भुगतान किया जा चुका है. यह भुगतान उस पीड़ित परिवार को मिलता है, जिस सफाई कर्मचारी की सीवर में काम करते समय दुर्भाग्यवश मृत्यु हो जाती है.

ठेकेदारी प्रथा होने के कारण कठोर कानून होने के बावजूद भी ठेकेदार कानूनी दाव पेच का लाभ लेकर कानून की पहुंच से बाहर निकल जाता है और पीड़ित परिवार कानूनी लाभ से वंचित रह जाता है. लगभग सभी राज्य सरकारों ने सफाई के कार्य को प्राइवेट ठेकदारों के हाथ में दे दिया है, ठेकेदार कानून और नियम का पालन नहीं करते जिससे सीवर में होने वाली मौतों की संख्या में कमी नहीं आ रही. इसलिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों में समन्वय स्थापित करने वाली संस्था का सशक्त होना अति आवश्यक है और सरकारों को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है.

सफाई कर्मचारियों की कई समस्याएं हैं. निजीकरण के बाद उनकी समस्याओं को लेकर राज्य सरकार सीधे तौर पर कोई जिम्मेदारी नहीं लेती. सभी राज्य सरकारें इन श्रमिकों के बुनियादी मुद्दों की उपेक्षा करने में समान हैं. दिल्ली, उ.प्र., गुजरात और तमिलनाडु में सीवर में सफाई करते हुए अधिक मौतें होती हैं. कोरोना महामारी के समय सफाई कर्मचारियों ने फ्रंटलाइन वर्कर्स के रूप में कार्य किया.

सीवर से होने वाली मौंतों से बचने के लिए राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग को अधिक संवैधानिक अधिकार प्रदान करने चाहिए. सामाजिक समरसता मंच सफाई कर्मचारियों को सामाजिक सम्मान और समानता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है.

श्याम प्रसाद

अखिल भारतीय संयोजक

सामाजिक समरसता मंच

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *