छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के नक्सल प्रभावित गांव केरलापेंदा में 1970 में भव्य राम मंदिर बनाया गया था, लेकिन 2003 में नक्सलियों की चेतावनी के कारण मंदिर को बंद कर दिया गया. अब केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की 74वीं वाहिनी का कैंप लगने के बाद जवानों ने मंदिर के कपाट खोल पूजा शुरू करवा दी है.
Ancient Lord Ram temple reopened in Maoist-affected Bastar after 21 years
The temple was closed since 2003 as Naxals had threatened Kerlapenda villagers in Sukma district to close the temple; but with the efforts of the Central security forces, it has now been reopened pic.twitter.com/DdqG61PN9r
— OTV (@otvnews) April 9, 2024
केरलापेंदा में करीब पांच दशक पहले राम-सीता व लक्ष्मणजी की संगमरमर की मूर्तियों की स्थापना मंदिर बनवाकर की गई थी. लेकिन धीरे-धीरे नक्सलवाद के बढ़ते प्रकोप के कारण 2003 में गांव में स्थित राम मंदिर में पूजा-पाठ बंद करवा दिया गया. इसके बाद कपाट पूरी तरह से बंद कर दिए गए.
दंडकारण्य यानी बस्तर और भगवान श्रीराम का सबंध काफी गहरा है. वनों से आच्छादित यहां ऐसे कई स्थल हैं, जहां श्रीराम के चरण पड़े थे. ग्रामीणों ने बताया कि 1970 में मंदिर की स्थापना बिहारी महाराज द्वारा की गई थी. ग्रामीणों ने सिर पर सीमेंट, पत्थर, बजरी, सरिया लादा और सुकमा से लगभग 80 किलोमीटर दूर पैदल चलकर निर्माण सामग्री पहुंचाई. मंदिर का निर्माण हुआ.
मंदिर स्थापना के बाद पूरा क्षेत्र और पूरा गांव श्रीराम का भक्त बन गया था. कंठी लगभग पूरे गांव के ग्रामीणों ने धारण कर ली थी. सबसे बड़ी बात यह कि कंठी धारण करने के बाद भक्त न ही मांस खा सकता है और न ही मदिरा का सेवन कर सकता है. जिससे क्षेत्र में मांसाहार, मदिरा का सेवन भी बंद हो गया.
आज भी गांव में 95 प्रतिशत लोग मांसाहार, मदिरापान से दूर हैं. गांव वालों ने बताया कि यहां कभी भव्य मेला भी लगता था. साधु-संन्यासी अयोध्या से आते थे. नक्सल प्रकोप बढ़ने व नक्सलियों द्वारा पूजा-पाठ बंद करवा देने से मेला सहित सभी आयोजन पूरी तरह से बंद हो गए. नक्सलियों ने मंदिर को अपवित्र कर ताला लगा दिया था.
नक्सली फरमान के बाद बंद मंदिर के कपाट को सीआरपीएफ जवानों ने खोला, जिससे लोगों में विश्वास पैदा किया जा सके और उन्हें देश की मुख्य धारा में जोड़ा जा सके. कपाट खोलने के बाद अधिकारियों और जवानों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर मंदिर की साफ सफाई करवाई. गांव के पुरुष और महिलाओं ने पूजा अर्चना में भाग लिया.