नरेंद्र सहगल
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हरियाणा के पूर्व प्रान्त संघचालक हम सबके मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत दर्शन लाल जैन अपने जीवन के 93 वर्ष पूरे कर बैकुंठ धाम के लिए प्रस्थान कर गए. दर्शन लाल जी के जीवन में एक आदर्श स्वयंसेवक, आदर्श प्रचारक, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, कुशल संगठक और एक सैद्धांतिक योद्धा के एक साथ दर्शन हो जाते थे.
हरियाणा की औद्योगिक नगरी जगाधरी में जन्मे दर्शन लाल जी बाल्यकाल से ही देशभक्ति एवं समाजसेवा के संस्कारों से ओत-प्रोत थे. सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेकर उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य निर्धारित कर लिया था. संघ के स्वयंसेवक बने और अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात अपना जीवन संघ प्रचारक के रूप में समर्पित कर दिया. वे कुछ समय तक प्रचारक के रूप में दायित्व निभाने के पश्चात सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय हो गए.
दर्शनलाल जी को राजनीति में तनिक भी रूचि नहीं थी. वे राजनीतिक महत्वकांक्षा से कोसों दूर रहकर सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, एवं साहित्यिक गतिविधियों के माध्यम से ही राष्ट्र की सेवा करते रहे. 1948 में जब संघ पर प्रतिबन्ध लगा था, वे प्रतिकार करते हुए जेल के कष्टों को झेलते रहे. इसी प्रकार 1975 को आपातकाल के समय में भी वे कारावास में रहे, परन्तु अपने ध्येय से विचलित नहीं हुए.
दिल्ली से छपने वाले स्टेटसमैन और चंडीगढ़ से छपने वाले ट्रिब्यून सामाचार पत्रों में जब संघ को महात्मा गांधी की हत्या में घेरा, तब दर्शन लाल जी ने कानून के दायरे में रहकर इन पत्रों के संपादकों और पत्रकारों को चुनौती दी. फलस्वरूप इस तरह के संपादकों, लेखकों, और आरोपियों को लिखित क्षमा मांगनी पड़ी.
स्व. दर्शनलाल जी जैन अनेक सामाजिक संस्थानों का ना केवल संरक्षण एवं मार्गदर्शन करते थे, अपितु इनके लिए यथासंभव आर्थिक सहायता भी करते रहते थे. वनवासी कल्याण आश्रम, भारत विकास परिषद्, अधिवक्ता परिषद् इत्यादि संस्थाओं में वर्षों पर्यन्त सेवा करते रहे इनके संरक्षक के नाते. इसी तरह सेवा भारती, विद्या भारती, हिन्दू शिक्षा समिति जैसी शैक्षणिक संस्थाओं को भी दर्शनलाल जी का संरक्षण प्राप्त था.
दर्शनलाल जी जैन द्वारा संपन्न सभी प्रकार के सामजिक कार्यों में सरस्वती शोध के कार्य को वास्तव में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा. सनातन काल में भारत भूमि पर अवतरित हुई पवित्र सरस्वती नदी कालांतर में लुप्त हो गयी. इस भूमिगत पवित्र प्रवाह को ढूंढने के लिए दर्शन लाल जी और उनके सहयोगियों ने वर्षों निरंतर परिश्रम किया और अंत में सफलता प्राप्त की.
दर्शनलाल जी को समाज सेवा एवं राष्ट्र समर्पित जीवन के लिए 2019 में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया गया. वे किसी भी प्रशंसा और सम्मान को स्वीकार नहीं करना चाहते थे, लेकिन भारत सरकार के आग्रह को उन्होंने ठुकराया नहीं और आदर पूर्वक पुरस्कार को स्वीकार किया.
मैं, दर्शन लाल जी के संपर्क में सन् 1970 में तब आया, जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् हरियाणा का संगठन मंत्री था और वहीं कुरुक्षेत्र से प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्र तरुण दीप का मुख्य संपादक था.
विद्यार्थी परिषद् की गतिविधियों एवं इस पत्रिका के संचालन के लिए हमें किसी भी प्रकार के सहयोग की या आर्थिक मदद की आवश्यकता हुई तो उन्होंने तुरंत पूरा करने की व्यवस्था कर दी.
स्व. दर्शन लाल जी एक कर्मयोगी की तरह समाजसेवा और समाज के विभिन्न कार्यों में व्यस्त रहे. जीवन के अंतिम दिनों में भी राष्ट्रीय विचार के लेखकों एवं पत्रकारों का उत्साहवर्धन करते रहे और क्रांतिकारियों के जीवन से सम्बंधित अनेक पुस्तकें उन्होंने स्वयं लिखीं और लिखवाईं. जिसने भी उनसे मदद मांगी वो कभी खाली हाथ नहीं लौटा.
संघ परिवार के एक अनुभवी संरक्षक एवं मार्गदर्शक के जाने से सभी दुखी हैं. परन्तु विधाता के विधान को स्वीकार करने के सिवा और कोई चारा भी तो नहीं है. दर्शन लाल जी का ध्येयनिष्ठ जीवन आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा. उनके स्नेह व्यवहार एवं सुगम कार्य पद्धति को हम कभी भूल नहीं सकते, उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि.