इंदौर रात 8:00 बजे जब मैं अपनी पड़ोसी दिप्ती के साथ थाने पर पहुंची, तो सामने (परिवर्तित नाम) पिंकी के पिता रो रहे थे. उन्हें देखकर मेरी आंखें भर आई जो बार-बार कह रहे थे कि मेरी बेटी को कैसे भी उस शैतान के चंगुल से बचाओ. पिंकी की तरफ देखा तो वह बस शादाब की ही माला रट रही थी. हम सभी को अपना दुश्मन समझ अपशब्द कह रही थी.
वही 35 साल का शादाब जो पिछले साल पिंकी के घर मकान की मरम्मत करने एक कारीगर के रूप में पहुंचा था. बीवी और दो बच्चों के होते हुए भी वह चॉकलेट के बहाने 19 साल की पिंकी को बहलाने लगा और झूठे सपने दिखाकर उसका फायदा उठाने लगा.
थाने में बैठी पिंकी के शरीर पर नीले, हरे, लाल, काले कई डोरे बंधे हुए थे. हम सभी ने बहुत कोशिश की रात 10:00 बजे तक कि वह अपना मुंह खोले, हम सभी से कुछ तो बोले कि बीते 6 महीनों में उसके साथ क्या हुआ..?
प्रेम की आड़ में वासना और धर्म परिवर्तन जैसे षड्यंत्रों की शिकार पिंकी ही नहीं, ऐसी अनेक बच्चियां होती है जो उम्र के इस नाजुक दौर से गुजरते हुए सही और गलत में फर्क नहीं कर पातीं.
रात भर सुधार गृह में एक अच्छी संरक्षिका के साथ रहकर पिंकी के अंतर्मन का द्वंद कुछ शांत हुआ. दूसरे दिन उसे देखा तो वह बहुत शालीनता से पेश आ रही थी. शादाब के बीवी बच्चों से अनजान पिंकी को शादाब की सच्चाई बताई. छल, कपट, वासना की शिकार उस बच्ची के मन की गिरह को खोलने में वक्त तो लगा, परंतु दो-तीन दिन के साक्षात्कार में उसने जो सच बताया, वह रोंगटे खड़े करने वाला था.
घर पर चॉकलेट देने से बात शुरू हुई और धीरे-धीरे शादाब ने उसे एक मोबाइल फोन गिफ्ट किया. अब उसे घर से बाहर मिलने लगा, जब पिंकी ने आने से मना किया तो शादाब ने उसे उसके पिता को मारने की धमकी दी.
अपनी गलतियों का पछतावा करती पिंकी यह बातें किसी से ना कह सकी. पिंकी को जबरन नशे के इंजेक्शन लगने लगे, शादाब ने बहला-फुसलाकर उसे निकाह करने का वादा किया. अनजान पिंकी उसके दलदल में फंसती जा रही थी, नशे की लत उसके दिमाग को सूना करती जा रही थी. पिंकी को भगाकर मंदिर में माला पहना कर शादी की और उसे इंदौर में एक कमरे में रखा. कुछ दिनों बाद ही वह अचानक उसे भोपाल लेकर गया, जहां उसे छोटे से अंधेरे कमरे में अकेले रखा गया. कभी सुबह का खाना मिल जाता, तो कभी शाम का, दोनो टाइम की रोटी भी उसे नहीं दी जा रही थी. भोपाल में सख्त लॉकडाउन होने के कारण शादाब अचानक उसे इंदौर ले आया.
पिता (जनजाति समाज से) अपनी बेटी की तलाश में दर-दर भटक रहा था. पर उसकी हर कोशिश नाकाम थी. जनजाति क्षेत्रों में कार्य करते गोविंद जी और देवेंद्र जी को जब यह जानकारी मिली तो उन्होंने इंदौर से लेकर भोपाल तक बेटी की घर वापसी के लिए जमीन आसमान एक कर दिया. सभी जानकारी अपने माध्यमों से प्राप्त की.
शायद, इस बात की भनक शादाब को पड़ चुकी थी और वह उसे एक कमरे में छोड़कर भाग गया. वहीं से पिंकी को पुलिस के साथ थाने में लेकर आया गया.
बिन मां की बेटी पिंकी अपनी मौसी के साथ अपने घर में सुरक्षित और सतर्क है और 12वीं क्लास का फॉर्म भरने की तैयारी कर रही है. पर, न जाने ऐसी कितनी पिंकी हैं हमारे देश में, जो झूठे प्यार के झांसे में आकर अपनी जिंदगी के सुनहरे समय को कालिख में बदल देती हैं और शादाब जैसे दरिंदों की शिकार हो जाती हैं.
गोविंद जी, देवेन्द्र जी, दिप्ती जी, अर्पिता जी, डॉ. समीक्षा जी, इन सबके सहयोग से ही पुण्य कार्य पूर्ण हो पाया.
ह्रदय से इनका आभार, अभिनंदन.
सुनीता दिक्षित, सेवा भारती मालवा प्रांत