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दीनदयाल शोध संस्थान के कार्यकर्ता गांव-गांव बच्चों को पाठ्य सामग्री वितरण कर रहे

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चित्रकूट. कोविड-19 महामारी के कारण जहां शहरी क्षेत्रों के शिक्षकों और छात्रों ने ऑनलाइन माध्यम से दूरस्थ शिक्षा का सहारा लिया है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे शिक्षा से चूक रहे हैं क्योंकि उनके पास ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने का साधन उपलब्ध नहीं है.

स्कूल बंद हैं, ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था की गई है. लेकिन कई जगहों पर बच्चों के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट की सुविधा के अभाव के कारण वे इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. ऑनलाइन शिक्षा की सुविधा शहरी क्षेत्रों के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों तक तो पहुंच रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों से यह अभी भी कोसों दूर है.

दीनदयाल शोध संस्थान के चित्रकूट प्रकल्प के अन्तर्गत आवासीय ट्राइबल विद्यालय, मझगवां में स्थित कृष्णादेवी वनवासी बालिका आवासीय विद्यालय में सतना जिले के लगभग 66 ग्रामों से 120 बालिकाएं आठवीं कक्षा तक अध्ययन करती हैं और चित्रकूट जनपद के गनीवां में संचालित परमानंद आश्रम पद्धति विद्यालय में 100 छात्र-छात्राएं आवासीय रूप में अध्ययन करते आए हैं.

दोनों विद्यालयों के 220 ट्राइबल छात्र-छात्राएं ऑनलाइन कक्षाओं की पहुंच से काफी दूर हैं. इनमें से अधिकांश छात्रों के लिए एंड्राइड फोन और इंटरनेट व बिजली की दिनभर उपलब्धता अभी भी कोसों दूर है.

बच्चों की पढ़ाई में किसी भी प्रकार का अवरोध उत्पन्न ना हो, इसके लिए विद्यालयों का शैक्षणिक स्टाफ गांव-गांव पहुंचकर प्रत्येक बच्चे को पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराकर उनके अध्यापन कार्य में लगा है.

दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन ने विद्यालयों के अध्यापकों के साथ बैठक की. जिसमें अध्यापकों ने बताया था कि ग्रामीण क्षेत्रों के कई ऐसे बच्चे हैं जो स्कूल जाना चाहते हैं. लेकिन उन्हें नहीं पता है कि उनके स्कूल कब खुलेंगे.

तय किया गया कि हम लोग ही स्मार्ट फोन बनकर उनके गांव-घर तक पहुंचेंगे. फिर विद्यालयों के अध्यापकों की टोली बनी, बच्चों की कक्षा बार पाठ्य सामग्री- किताबें, कॉपी, पेंसिल के बंडल बनाए गए और गांव-गांव पहुंचकर बच्चों में वितरित की.

जिन गांवों में बड़ी कक्षाओं के बच्चे और बच्चियां हैं, उनको छोटी कक्षाओं के बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया गया, उनके ग्रुप तैयार कर पढ़ाई का स्थान सुनिश्चित किया गया. विद्यालय के शिक्षक बच्चों के अभिभावकों के माध्यम से निरंतर संपर्क में बने हुए हैं और बीच-बीच में गांव में प्रवास कर गाइडेंस प्रदान करते हुए देखरेख कर रहे हैं.

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