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मीडिया जगत में बोलता डीप स्टेट का पैसा!

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डॉ. अजय खेमरिया

मीडिया जगत में मुगल सरीखा रसूख रखते थे, जिनके प्राइम शो नैरेटिव सेट किया करते थे। ऐसे तमाम सेलिब्रिटी आज मुख्यधारा की मीडिया से बाहर हैं, लेकिन इनके ऐशो आराम की जिंदगी वैसे ही चल रही है। आखिर कौन सी संजीवनी है जो उन्हें पोषित और पल्लवित कर रही है। इसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा यूएसएड संस्था को बन्द करने के आलोक में देखा जा सकता है।

पिछले कुछ समय से डीप स्टेट, यूएस एड का नाम सुना होगा। आखिर यह यूएस एड है क्या? असल में यूएसएड इसी का एक अघोषित उपक्रम है। अमेरिका हर साल दूसरे देशों को स्वास्थ्य, गरीबी, शिक्षा, पोषण, पर्यावरण, खेती जैसे मद में अपनी ओर से आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाता रहा है। यह विभाग 1962 से काम कर रहा है। बाहर से जिन कामों पर यूएसएड धन देना दिखाता है, असल में वह एक छलावा है। विभाग का काम वामपंथी विचारधारा को आधार बनाकर दुनियाभर की सरकारों को अपने हिसाब से खड़ा करना होता है। यह आर्थिक सहायता सीधे सरकार एवं दुनियाभर के एनजीओ एवं मीडिया संस्थानों को दी जाती है। साल 2025 के लिए यूएसएड का बजट 05 लाख करोड़ का था।

अमेरिकी प्रशासन में डोज के प्रमुख एलन मस्क ने खुलकर यूएस एड के धन के दुरुपयोग और तमाम देशों में अस्थिरता फैलाने के आरोप लगाए। पूर्व अमरीकी विदेश अधिकारी माइक बेंज के अनुसार साल 2024 के लोकसभा चुनाव में यूएस एड के प्रतिनिधियों ने अरबों रुपये भारत में खर्च किए। अकेले जॉर्ज सोरोस ने मोदी को अपदस्थ करने के लिए 2361 करोड़ रुपये खर्च किए। भारत में बांग्लादेश की तरह तख्तापलट संभव नहीं था, इसलिए विपक्षी पार्टियों, पत्रकारों, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर, एनजीओ को पैसा दिया गया।

यूएसएड वैसे तो दर्जन भर सेक्टरो में धन देता है, लेकिन आज हम केवल मीडिया के क्षेत्र को समझते हैं। यूएसएड सीधे फंड देता है “इन्टरन्यूज” नामक एनजीओ को, इसकी स्थापना 1982 में डेविड हॉफमैन ने की थी। इन्टरन्यूज एनजीओ ने भारत में नैरेटिव (आख्यान/कथानक) सेटिंग, मीडिया में खबरों की प्लेसमेंट और फैक्ट चैक के नाम पर बड़ा खेल किया। इन्टरन्यूज भारत सहित दुनिया के 4 हजार मीडिया हाउस को ट्रेनिंग, फैक्ट चैक और तकनीकी सहयोग के नाम पर बेशुमार धन दे रहा है। 2024 में इस काम पर 4100 करोड़ खर्च किये गए।

व्यापक जाल

इन्टरन्यूज ने भारत में अपना काम “डेटा लीड्स” नामक एनजीओ को दे रखा है। इसके संस्थापक सैय्यद नजाकत एवं अपोलो अस्पताल में पदस्थ कश्मीरी डॉक्टर सबा मोहम्मद हैं। नजाकत ग्लोबल इंनवेस्टीगेटिव जनर्लिज्म नेटवर्क (जीआई जेएन) का बोर्ड डायरेक्टर है। जीआईजेन को जॉर्ज सोरोस, यूएसएड, ओक फाउंडेशन पैसा देते हैं। नजाकत न्यू ह्युमेनेटेरियन के फैलो भी हैं, जिसे बिल गेट्स फाउंडेशन, अलजजीरा और द गार्डियन फंड देते हैं। स्पष्ट है कि डेटा लीड्स भारत में इन्टरन्यूज के जरिए विदेशी ताकतों का एक उपक्रम है, जिसका एजेंडा लेफ्ट राजनीति को प्रोत्साहित करना है।

डेटा लीड्स से जुड़ी एक संस्था है ‘फैक्टशाला’। इसका सहयोगी है गूगल न्यूज इनिशिएटिव। फैक्टशाला को चलाने वाले हैं शेखर गुप्ता, ऋतु कपूर, जेएम मैथ्यू, फाये डिसूजा। अकेले फैक्टशाला की रिपोर्ट बताती है, उसके द्वारा भारत में 75000 पत्रकार और सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। शेखर गुप्ता के नेतृत्व वाली इस शाला ने देश में 2500 कार्यशाला 500 शहरों एवं 400 सरकारी गैर सरकारी यूनिवर्सिटी में आयोजित की। यह प्रशिक्षण 253 मास्टर ट्रेनर के माध्यम से 18 भाषाओं में दिया गया।

253 मास्टर ट्रेनर्स में ऑल्ट न्यूज के प्रतीक सिन्हा, मोहम्मद जुबैर, कंचन कौर भी शामिल हैं। जुबैर और प्रतीक को एजेंडा पत्रकारिता के लिए सभी जानते ही हैं, लेकिन कंचन कौर को कम लोग ही जानते हैं। यह आईएफसीएन से संबद्ध हैं, जिसकी स्थापना जॉर्ज सोरोस के एनजीओ ओपन सोसायटी और पॉइंटर द्वारा की गई है।

प्रशांत भूषण का संभावना इंस्टीट्यूट

यूएसएड एवं इन्टरन्यूज के साथ एक और संस्था जुड़ी है, जिसका नाम है संभावना इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी। इसका मुख्यालय कांगड़ा पालमपुर के पास है। फैक्टशाला की तरह ही सोशल मीडिया ट्रेनिंग और खबरों के लिये यह काम करता है। इसके रिसोर्स पर्सन हैं – योगेंद्र यादव, हर्ष मन्दर, मेघा पाटकर, यू ट्यूबर आकाश बनर्जी, प्रतीक सिन्हा, सोनी सोरी (नक्सल समर्थक), रवीश कुमार, नंदनी राय, कविता कृष्णन पोलित ब्यूरो सदस्य सीपीआई, विजयन एम जे (पाकिस्तान इंडिया पीपुल्स फोरम), नित्यानन्द जयराम, आकाश पोयाम, अत्रेयी मजूमदार, विजु कृष्णन, निखिल देव और हिमांशु कुमार।

जी आई जे एन – यह अमेरिकी संस्था है, जिसके साथ 251 मीडिया हाउस जुड़े हुए हैं। यह खोजी पत्रकारिता के नाम पर पत्रकारों को प्रशिक्षण और प्रमोशन का दावा करता है। इसकी भारत से जुड़ी पिछले 8 साल की सभी रिपोर्ट सरकार की मनगढ़ंत खिलाफत से भरी हुई हैं। इसका संबन्ध भारत के एक एनजीओ रिपोर्टर कलेक्टिव से है, जिसे अशोका यूनिवर्सिटी के नितिन सेठी चलाते हैं। केंद्र सरकार ने इसका विदेशी चंदा लाइसेंस कुछ दिन पहले ही निलंबित किया है।

अर्थ जनर्लिज्म नेटवर्क – यह भी एक अमरीकी एनजीओ है जो पर्यावरण पर काम का दावा करता है। इसे उन्हीं सब संगठनों से करोड़ों डॉलर मिलते हैं जो डीप स्टेट से जुड़े हैं। भारत में इसका एजेंडा पत्रकारों को फेलोशिप के नाम पर मदद करना और प्रोपेगेंडा मीडिया आउटलेट को आगे बढ़ाना है। इसकी वेबसाइट पर 86 भारतीय पत्रकारों को फेलोशिप देना बताया गया है। इनकी जांच करने पर पता चलता है कि अधिकतर द वायर, अलजजीरा, स्क्रॉल, गार्डियन, वाशिंगटन पोस्ट जैसे मीडिया आउटलेट पर लेख लिखते हैं। अधिकतर कंटेंट भारत की नीतियों के विरोध में रहता है। अर्थ जनर्लिज्म नेटवर्क को उन्हीं दागी संस्थानों से पैसा मिलता है, जिनका जिक्र लेख में ऊपर किया गया है।

सोरोस फंडेड आईएफ़सीएन संस्था सोशल मिडिया पर फैक्ट चैकिंग का दावा करती है। इसी संस्था ने साल 2018 में ऑल्ट-न्यूज़ को निष्पक्ष फैक्ट-चेकर होने का तमगा प्रदान किया था। फैक्टशाला की वेबसाइट के अनुसार कुछ संस्थाओं के साथ मिलकर बांग्लादेश में भी पत्रकारों और सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर और पत्रकारों को वह ट्रेनिंग दे चुके हैं। फैक्ट चेकर ज़ुबैर को संस्था ने निष्पक्षता का प्रमाणपत्र जारी किया था, जबकि जुबैर पर क्लिप काटकर वीडियो वायरल कर साम्प्रदायिक माहौल खराब करने के केस चल रहे हैं। ऑल्ट न्यूज, जिसे यूएसएड की सहयोगी संस्थाओं और व्यक्तियों द्वारा प्रमोट किया जाता है, उसकी हिन्दू विरोधी मानसिकता किसी से छिपी नही है।

शेखर गुप्ता द प्रिंट पोर्टल चलाते हैं, उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता कांग्रेस-लेफ्ट से घोषित रूप में है। देश के एक बड़े हिंदी अखबार में वह कॉलम लिखते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान करीब 32 हजार ऐसे फर्जी वीडियो बनाए गए जो बयानों को तोड़मरोड़ कर कथानक यानी नैरेटिव बनाने वाले थे।

वीडियो में संविधान बदलने, आरक्षण खत्म करने, एनआरसी लागू करने और चुनाव बन्द करने जैसे मनगढ़ंत कंटेंट थे। अंदाज लगाया जा सकता है कि कितने व्यापक स्तर पर नैरेटिव की इस लड़ाई को यूएस एड और उसकी सहयोगी फ़ौज लड़ रही थी। हम समझ सकते हैं कि विदेशी धन भारत में किस तरह की पत्रकारिता को मदद कर रहा है।

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले डेटा लीड्स ने शक्ति नाम से एक प्रोजेक्ट लॉन्च किया था, जिसका उद्देश्य लोकसभा चुनाव में गलत सूचनाओं को रोकना था। इसके लिए देश में 1700 से ज्यादा पत्रकारों को प्रशिक्षण के नाम पर नैरेटिव युद्ध के लिए तैयार किया गया। 37 अलग अलग ट्रेनिंग कार्यक्रम आयोजित किये गए।

यूएसएड और ओसीसीआरपी

ओसीसीआरपी अमेरिका में खोजी पत्रकारों के संगठन का दावा करता है। इसे यूएसएड से भारी आर्थिक मदद मिलती है। भारत के अनेक पत्रकार इससे जुड़े हुए हैं। इसे सोरोस की ओपन सोसायटी भी फंड करती है। इसने 2023 में गौतम अडानी के विरुद्ध एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसे लेकर राहुल गांधी व अन्य ने लोकसभा में हंगामा किया था। पेगासस जासूसी, कोरोना वायरस के साइड इफेक्ट जैसी शरारतपूर्ण रिपोर्ट भी इसी संगठन ने जारी की थी, जिन्हें लेकर राहुल गांधी ने संसद में जमकर हंगामा किया था।

पुलित्जर नाम की संस्था अपने यहां किसी विषय पर स्टोरी करने वाले को कम से कम 1000 हज़ार डॉलर (लगभग 85000 रुपये) देती है। कई मामलों में यह 8000 से 10000 डॉलर तक होती है। बशर्ते आप हिन्दुत्व और सरकार के खिलाफ लिखते हैं। बरखा दत्त, राणा अय्यूब या फिर रोहिणी सिंह जैसे तमाम पत्रकारों को तो एक स्टोरी के बदले 10 लाख रुपये तक भी दिए जाते हैं। यह स्टोरी क्या होगी, यह संस्था ही तय करती है। अगर आपने कोई स्टोरी आइडिया पुलित्जर, अल जजीरा या फिर वाशिंगटन पोस्ट को भेजा है तो आपके नाम के हिसाब से आपकी स्टोरी को मंजूर किया जाता है। कई मामलों में यह स्टोरी द वायर, कारवां या फिर प्रिंट, स्क्रॉल, क्विंट जैसे पोर्टल में छपती है, जिससे इन संस्थाओं का सीधा संबंध नहीं है, लेकिन दूसरे अखबारों या वेबसाइट्स पर स्टोरी छापने के लिए पैसे यह संस्थाएं देती हैं।

दुनियाभर के देशों में एक नरैटिव तैयार करने के लिए ऐसी करीब 50 से ज्य़ादा संस्थाएं हैं, जो पत्रकारिता और खोज़ी पत्रकारिता के नाम पर फेलोशिप में पैसे बांटती हैं। इनमें कोलंबिया यूनिवर्सिटी से कई फेलोशिप दी जाती हैं। पुलित्ज़र, लोकल इंवेस्टिगेशंस फेलोशिप, रहमान अल फारा फेलोशिप आदि प्रमुख हैं।

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