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रक्षा मंत्रालय ने भारतीय वायुसेना के लिए 56 सी-295 एमडब्ल्यू परिवहन विमान के अधिग्रहण के लिए एयरबस डिफेंस एंड स्पेस, स्पेन के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर किए

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नई दिल्ली. रक्षा मंत्रालय ने भारतीय वायु सेना के लिए 56 सी-295एमडब्ल्यू परिवहन विमान के अधिग्रहण के लिए मैसर्स एयरबस डिफेंस एंड स्पेस, स्पेन के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए. रक्षा मंत्रालय ने मैसर्स एयरबस डिफेंस एंड स्पेस के साथ ऑफसेट अनुबंध पर भी हस्ताक्षर किए हैं, जिसके माध्यम से मैसर्स एयरबस भारतीय ऑफसेट भागीदारों से योग्य उत्पादों और सेवाओं की सीधी खरीद के माध्यम से अपने ऑफसेट दायित्वों का निर्वहन करेगा. इन अनुबंधों पर इस महीने की शुरुआत में कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की कमेटी द्वारा दी गई मंजूरी के बाद हस्ताक्षर किए गए थे.

सी-295एमडब्ल्यू को शामिल करना भारतीय वायु सेना के परिवहन बेड़े के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा. यह समकालीन तकनीक के साथ 5-10 टन क्षमता का परिवहन विमान है जो भारतीय वायुसेना के पुराने परिवहन विमान की जगह लेगा. विमान आधी तैयार की गई एयर स्ट्रिप्स से संचालन करने में सक्षम है और इसमें तेज़ प्रतिक्रिया और सैनिकों तथा कार्गो के पैरा ड्रॉपिंग के लिए एक रियर रैंप दरवाजा है. विमान विशेष रूप से उत्तरी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह में भारतीय वायुसेना की सामरिक एयरलिफ्ट क्षमता को बढ़ावा देगा.

यह परियोजना सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ को बढ़ावा देगी जो भारतीय निजी क्षेत्र को प्रौद्योगिकी गहन और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी विमानन उद्योग में प्रवेश करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है. 56 में से 40 विमान भारत में टाटा कंसोर्टियम द्वारा निर्मित किए जाएंगे. अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के 10 साल के भीतर सभी डिलीवरी पूरी कर ली जाएंगी. सभी 56 विमानों को स्वदेशी इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट के साथ स्थापित किया जाएगा. डिलीवरी के पूरा होने के बाद भारत में निर्मित बाद के विमानों को उन देशों को निर्यात किया जा सकता है, जिन्हें भारत सरकार द्वारा मंजूरी दी गई है. यह परियोजना भारत में एयरोस्पेस संबंधी पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देगी. जिसमें देश भर में फैले कई एमएसएमई उद्योग विमान के कुछ हिस्सों के निर्माण में शामिल होंगे. इस में हैंगर, भवन, एप्रन और टैक्सीवे के रूप में विशेष बुनियादी ढांचे का विकास भी शामिल होगा. यह कार्यक्रम स्वदेशी क्षमताओं को मजबूत करने और ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने के लिए सरकार की एक अनूठी पहल है.

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