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दिल्ली किसान आंदोलन – पूछेगा देश, आखिर क्यों?

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  • ट्रैक्टर परेड के नाम पर गदर
  • तिरंगे का अपमान – राष्ट्रीय शर्म
  • गणतंत्र पर गदर – अक्षम्य अपराध
  1. 26 जनवरी, 2021 को ट्रैक्टर रैली के लिए अड़ियल रूख अपनाया गया, आखिर क्यों?
  2. बार-बार दिल्ली पुलिस द्वारा नकारने पर भी ट्रेक्टर परेड की अनुमति या धमकी का प्रयास, आखिर क्यों?
  3. दुश्मन देशों को आनन्द देने वाली हरकतों का बार-बार प्रयास किया जाता है, आखिर कब तक?
  4. कृषि कानूनों की आड़ में गणतंत्र का विरोध, बहुत कुछ मुखौटे हटा गया, परन्तु आगे क्या?
  5. नेतृत्व विहीन भीड़ एकत्र कर दिल्ली विजय, लाल किला फतह, तिरंगे का अपमान अब और आगे क्या?
  1. कौन लोग हैं जो चाहते है कि किसान का खून बहे, गोली चले, लाठियां चलें, फिर गिद्ध भोज हों, निजी एवं सार्वजनिक सम्पत्तियां नष्ट की जाएं, विश्व के सामने भारत की छवि धूमिल की गई, महिला पुलिस पर जानवरों की तरह प्रहार हुए, इनके पीछे कौन है?
  1. हल वाले हाथों में भाले-बरछियां पकड़ाई गई, तलवारें लहराई गई. आखिर किसके विरोध में?
  2. इस अक्षम्य अपराध के लिए उत्तरदायी पापियों को माफी मांगने पर क्षमादान दे दिया जाए, क्यों?
  3. गत दो माह से नित्य षड्यंत्र के बावजूद, तथाकथित किसान नेताओं को ये लोग दिखाई नहीं दे रहे थे. आखिर क्यों?
  1. जवानों को किसानों के बच्चे बतलाने वालों द्वारा उन बच्चों पर ही ट्रैक्टर चढ़ाने, कुचलने का कुकृत्य किया जा रहा था, आखिर अब तो किसान नेता स्वीकार कर लें कि उनके पीछे कोई राष्ट्रद्रोही तत्व है, अब भी नहीं स्वीकार करेंगे तो फिर कब?
  2. दिल्ली पुलिस द्वारा बार-बार पाकिस्तानी ट्विटर हेंडल (308) ज्ञात होने पर सावधानी की चेतावनी देने के बावजूद किसान नेताओं के दम्भपूर्ण वक्तव्य आते रहे, परन्तु अब?
  3. भोले-भाले किसानों के कंधों पर पांव रखकर अपना कद बढ़ाने/एजेंडा लागू करने की खूब हो गई नेतागिरी, क्या देशभर के किसान से अब भी चाहिए सहयोग/सहानुभूति?
  4. प्रश्न तो खड़े होंगे और सफाई भी दी जाएगी, क्या किसान के नाम पर लगे धब्बे को धोया जा सकेगा? अन्नदाता को आतंकी के बराबर बैठा दिया, आखिर कारण तो होगा, क्यों?
  5. भारतीय किसान संघ, जून 2020 से ही कहता आया है कि इन कानूनों को संशोधित करें और न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानून बने, परन्तु हम ऐसे नेतृत्व विहीन, हिंसक आंदोलन से दूर रहते हैं. इस आंदोलन का नेतृत्व जिस प्रकार मांगें बदलता गया और कानून वापसी पर आकर अड़ गए, तब स्पष्ट हो गया था कि हारे हुए राजनैतिक विपक्ष की हताशा, किसान नेताओं के ब्रेनवाश और प्रसिद्धि के लोभ में नेता बनने के लालच में किसान से गद्दारी होने लगी है, तब कभी मीठी भाषा में और कभी कड़वी भाषा में सावधान करने का प्रयास भी भारतीय किसान संघ द्वारा किया गया. परंतु धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगा कि यह तथाकथित नेतृत्व कुछ ओर ही परिणाम चाहता है, समाधान नहीं. वार्ता के रास्ते बंद कर दिए, सर्वोच्च न्यायालय की कमेटी का बहिष्कार किया. फिर ट्रैक्टर परेड और आगे संसद मार्ग पर मार्च एवं संसद के घेराव की घोषणा, आखिर क्यों?
  6. इन सभी इवेंन्टस से पता चलता है कि गरीब किसानों का हित इनकी योजना में नहीं है, इनकी दृष्टि तो आगामी चुनाव पर दिखाई देती है. परन्तु विश्वासघात किसान के साथ क्यों?
  7. खुली चेतावनी दी जाने लगी, धमकियां दी गईं, किसान को जैसे आतंकी के रूप में प्रस्तुत कर सभी सीमाएं लांघी गई. लेकिन ट्रैक्टर परेड का परिणाम देखकर और भी अधिक आश्चर्य हुआ कि योजनाबद्ध आए, दण्डे-रॉड़-तलवारों के साथ पुलिस की गाड़ियों के शीशे तोड़ने, पत्थर एवं डंडे फेंककर मारना, आक्रमक तेवर अख्तियार किया गया, आखिर क्यों? जबकि पुलिस ने संयम से कार्य लिया. परन्तु अब उन सभी का मुखौटा उतर गया, जो पीछे से रिमोट से सारा खेल खेल रहे थे. जवाब तो किसान नेताओं से पूछेंगे, आखिर क्यों?

भारतीय किसान संघ, दिल्ली पुलिस के धैर्य एवं संयम के लिए साधुवाद देता है, परन्तु सरकार एवं इंटेलिजेंस एजेंसीज की कमजोरी कहें या आंदोलन को लम्बा खींचने की मजबूरी, देशवासियों की समझ में नहीं आयी, इसलिए अराजक तत्वों को हिंसक खेल खेलने की छूट की निन्दा भी करता है. इस अपराध में लिप्त तथाकथित नेताओं के अतीत की भी जांच हो, ताकि दोबारा देश के किसानों के साथ खिलवाड़ करने का कोई दुस्साहस नहीं कर सके.

इन किसान नेताओं ने सरकार के साथ केवल वार्ता का अभिनय किया, निगाहें तो 2024 तक बैठकर लोकसभा चुनावों पर थी. सरकार का डेढ़-दो वर्षों के लिए कानून स्थागित करने और बैठकर समाधान पर चर्चा का प्रस्ताव भी इन्होंने ठुकरा दिया, जो दुर्भाग्यपूर्ण था. अब हम केन्द्र सरकार से आग्रह करते हैं कि हमारी पुरानी मांग पर पुनः विचार करें और कृषि कानूनों में समुचित सुधार, न्यूनतम समर्थन मूल्य बाबत कानून एवं अन्य लंबित समस्याओं पर सार्थक समाधान हेतु सरकारी पक्षकार, किसान प्रतिनिधि, कृषि अर्थशास्त्री, वैज्ञानिक एवं तज्ञ तटस्थ लोगों की सक्षम समिति गठित की जाए ताकि किसान भी देश के साथ आत्मनिर्भर भारत का भागीदार बन सके.

‘‘देश के हम भंडार भरेंगे, लेकिन कीमत पूरी लेंगे’’

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