जयपुर. घुमन्तू समुदाय ने अभाव में भी राष्ट्र निर्माण के कार्य में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. ऐसे में समाज के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि अपनी योग्यता, क्षमता से बढ़कर उनके उत्थान का प्रयास करें.
प्रांत प्रचारक डॉ. शैलेन्द्र राजस्थान विश्वविद्यालय में घुमन्तू समुदाय पर आयोजित संगोष्ठी में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने युवा वर्ग से आह्वान किया कि अकादमिक विमर्श के साथ ही प्रत्यक्ष रूप से अभावग्रस्त समुदाय के जीवन में युवा भागीदारी करने की कोशिश करें. जिससे समाज उनके जीवन अनुभव एवं चुनौतियों से प्रत्यक्ष रूप से परिचित हो सके. तभी समाज में अपेक्षित बदलाव आएगा.
मुख्यधारा की तलाश में घुमन्तू समुदाय विषय पर डिपार्टमेंट ऑफ लाइफ लॉंग लर्निंग व घुमन्तू जाति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन प्रथम सत्र में प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. राजेश व्यास ने बताया कि बंजारा समुदाय कला-संस्कृति के विरल संवाहक हैं. बहुत से स्तरों पर आज भी आधुनिक गीत संगीत और चित्रकला का बड़ा भाग घुमन्तू जातियों की ही देन है. कला-संस्कृति के रूप में जो अनूठी सौगात उन्होंने हमें दी है, उसे संजोने की आवश्यकता है. बंजारा समुदाय के कला अवदान को विमर्श में लाये जाने की आवश्यकता है. गुजरात से आये बंजारा समुदाय के विशेषज्ञ के.जी. बंजारा ने कहा कि वोल्गा से लेकर गंगा तक सबको बंजारा समुदाय ने नमक खिलाया है, बंजारा एक प्रतिष्ठित व्यापारिक समुदाय रहा है.
संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य अतिथि डॉ. ओमप्रकाश बैरवा निदेशक एवं संयुक्त सचिव, आयोजना विभाग, आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय रहे.