देश सेवा के लिए एक मराठी युवक के बंगाली बनने की कहानी. एक मराठी युवक ने 1950 से लगातार लगभग 72 वर्ष बंगाल में बिताए; वह अनजाने क्षेत्र में राष्ट्रीयता, देशभक्ति, भारतीय संस्कृति के अभिन्न अभ्यास में रत हो गया. वह थे 98 वर्षीय केशवराव दत्तात्रेय दीक्षित जी.
अपना पूरा जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को समर्पित करने वाले केशव जी आज 20 सितंबर, 2022 को प्रातः 10:34 बजे इस दुनिया से विदा हो गए. कोलकाता के अपोलो अस्पताल में आखिरी सांस ली. आयुजनित बीमारियों से ग्रसित केशव जी काफी समय से अस्पताल में भर्ती थे. उनके निधन के साथ ही एक ऐतिहासिक युग का अंत हो गया. जिसकी छत्रछाया में पारंपरिक संदेश और अभूतपूर्व स्नेह था. केशव जी को बंगमाता ने अपनी संतान के रूप में गोद लिया था. अस्पताल से उनका पार्थिव शरीर केशव भवन स्थित संघ कार्यालय लाया गया, जहां संघ व अन्य संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी.
केशवराव दीक्षित जी का जन्म 1 अगस्त, 1925 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के पुलगांव गांव में हुआ था. पिता दत्तात्रेय दीक्षित, माता सगुणा देवी और दादा चिंतामणि दीक्षित. हालाँकि, पारिवारिक व्यवसाय पुरोहित्य था, लेकिन उनके पिता परिवार के पहले नौकर थे. दत्तात्रेय एक कपास मिल में काम करते थे. केशव जी पांच भाइयों और चार बहनों के परिवार में दूसरे नंबर के थे.
1939 के दिसंबर महीने में उनका उपनयन संस्कार हुआ था. 1949 में उन्होंने जलगांव के एमजे कॉलेज से मराठी और संस्कृत में स्नातक की डिग्री ली थी. सिर्फ छह वर्ष की आयु में शाखा में जाना शुरू कर दिया था. 1931 में शाखा में उनका प्रवेश हुआ था, जिसके बाद 1939 में संघ शिक्षा प्रथम वर्ष, 1940 में द्वितीय वर्ष और 1941 में तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण लिया था.
वर्ष 1950 में प्रचारक बनने के पश्चात कोलकाता के बड़ा बाजार शाखा में प्रचारक के तौर पर आए थे. उसके बाद 72 साल से पश्चिम बंगाल में राष्ट्र निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाते रहे. मूल रूप से मराठी होने के बावजूद पश्चिम बंगाल में संघ कार्य के प्रचार-प्रसार के लिए वे बंगाल की सभ्यता और संस्कृति में रच बस गए थे. कोलकाता महानगर के प्रचारक के साथ ही प्रांत संपर्क प्रमुख, प्रांत प्रचारक, क्षेत्र बौद्धिक प्रमुख और क्षेत्र प्रचारक जैसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन किया था.