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शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज का देवलोकगमन

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शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को 99 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उन्होंने मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में आखिरी सांस ली. हाल ही में 3 सितंबर को उन्होंने अपना 99वां जन्मदिन मनाया था. वह द्वारका की शारदा पीठ और ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ के शंकराचार्य थे. शंकराचार्य ने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और आजादी के आंदोलन में भी भाग लिया था.

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के पास बद्री आश्रम और द्वारकापीठ की जिम्मेदारी थी. बताया जाता है कि स्वामी स्वरूपानंद पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे. उनका नरसिंहपुर जिले में स्थित झोतेश्वर आश्रम में ही इलाज चल रहा था. आज दोपहर बाद अपने आश्रम में उन्होंने अंतिम सांस ली. स्वरूपानंद के आखिरी समय में आश्रम में रहने वाले उनके शिष्य उनके पास थे.

सोमवार शाम 5 बजे आश्रम में ही उन्हें समाधि दी जाएगी. उनके पार्थिव शरीर को मणिदीप आश्रम से गंगा कुंड स्थल तक पालकी से ले जाया गया है.

स्वाधीनता संग्राम में भाग लेकर शंकराचार्य जेल भी गए थे. श्री राम मंदिर निर्माण के लिए भी उन्होंने लंबी कानून लड़ाई लड़ी थी. उनके निधन पर देश में शोक की लहर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर शोक जताया है. पीएम मोदी ने ट्वीट कर लिखा, ‘द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है. शोक के इस समय में उनके अनुयायियों के प्रति मेरी संवेदनाएं. ओम शांतिः.’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी शंकराचार्य जी के निधन पर शोक व्यक्त किया है. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी व सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने संदेश में कहा – “पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज  का शरीर पूर्ण होने का दुःखद समाचार मिला. श्री द्वारका के शारदा पीठ के शंकराचार्य जी के ब्रह्मलीन होने से धर्म क्षेत्र के तपस्वी एवं परम ज्ञानी आचार्य अब अपने मध्य सशरीर नहीं रहे. समस्त हिन्दू समाज एवं समूचा राष्ट्र उनके मार्गदर्शन से वंचित रहेगा. ईश्वर उन्हें अपने श्री चरणों में अनंत व अखंड वास प्रदान करें.”

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्यप्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था. महज नौ साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी.

इस दौरान उत्तरप्रदेश के काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली. वर्ष 1942 में महज 19 साल की उम्र में क्रांतिकारी साधु के रुप में प्रसिद्ध हुए थे क्योंकि उस समय देश में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई चल रही थी.

स्वामी स्वरूपानंद 1950 में दंडी संन्यासी बनाए गए और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली. 1950 में ज्योतिषपीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे.

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