भारती पत्रिका के विशेषांक व वेबसाइट लोकार्पण कार्यक्रम
जयपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता व संस्कृत के प्रचारक रहे स्व. दादाभाई गिरिराज शास्त्री के जन्मशताब्दी समारोह के समापन अवसर पर एक सितम्बर को भारतीय संस्कृत प्रचार संस्थान द्वारा भारती संस्कृत पत्रिका का विशेषांक विमोचन व वेबसाइट लोकार्पण कार्यक्रम सम्पन्न हुआ. इस अवसर पर भारती पत्रिका के विशेषांक का, पाथेय कण पाक्षिक पत्रिका के अंक का विमोचन एवं भारतीय संस्कृत प्रचार संस्थान की वेबसाइट का लोकार्पण भी हुआ.
अनंत चतुर्दशी पर रेवासा पीठाधीश्वर डॉ. राघवाचार्य वेदांती के सान्निध्य में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए अखिल भारतीय बौद्धिक शिक्षण प्रमुख स्वांत रंजन ने कहा कि श्रीमद्भगवत गीता में जिस निस्पृह व स्थिर प्रज्ञ की परिभाषा दी गई है, ऐसे ही स्थिर प्रज्ञ देव तुल्य पुरूष थे दादाभाई गिरिराज शास्त्री, उनके लिए संघ कार्य पूजा के समान था.
तत्कालीन सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने देवदुर्लभ कार्यकर्ताओं की टीम की बात कही थी तो दादाभाई भी ऐसे ही देवदुर्लभ कार्यकर्ता थे. बाबा साहब आप्टे ने उन्हें संस्कृत पत्रिका शुरू करने की प्रेरणा दी, इस पर दादाभाई ने वर्ष 1950 में जयपुर से भारती पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया, जो अल्प समय में ही देशव्यापी हुई. उन्होंने समाज जीवन के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य करते हुए राम मंदिर सहित कई जन आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
जन्मशताब्दी समारोह के विशिष्ट अतिथि संघ के वरिष्ठ प्रचारक कैलाशचंद्र ने कहा कि शिव की पूजा करते हुए स्वयं शिव बन जाना ही सच्ची पूजा है. वे संघ व संस्कृत के माध्यम से देश सेवा करते-करते जीवनभर राष्ट्र को समर्पित रहे. भारतीय आश्रम व्यवस्था के अनुसार उन्होंने गृहस्थाश्रम को चरितार्थ किया. उनका जीवन सेवा, सुमिरन तथा कर्म पर आधारित था. वे प्रतिदिन तीन बातें नित्य व्यायाम, स्वाध्याय व हरिस्मरण का आग्रह करते थे. दादाभाई देव पूजा से अधिक राष्ट्र पूजा को महत्व देते थे, प्रवास के दौरान भी उनका यह क्रम कभी नहीं टूटा तथा कई बार पूजा कार्य बीच में छोड़कर संघ कार्य में जुट जाते थे. दादाभाई का जीवन भी स्वयंसेवकों के लिए अनुकरणीय है. कार्यक्रम का संचालन डॉ. स्नेहलता शर्मा ने किया.
भारत माता को पुन: जगन्माता का स्थान प्राप्त कराएंगे
भारती के प्रबंध सम्पादक सुदामा शर्मा ने बताया कि दादाभाई का जन्म अनन्त चतुर्दशी सन् 1919 में भरतपुर जिले के कामां कस्बे में हुआ था. 1942 में संघ का स्वयंसेवक बनने के बाद वे सीकर व झुंझुनु के जिला प्रचारक, जयपुर के नगर कार्यवाह व 1953 से 1992 तक राजस्थान के प्रांत कार्यवाह सहित विभिन्न दायित्वों पर रहे. सेवा भारती के क्षेत्र संगठन मंत्री मूलचंद सोनी ने बताया कि वे प्रतिदिन सूर्यनमस्कार करने के आग्रह के साथ देव पूजा के तुलना में राष्ट्र पूजा को प्राथमिकता देते थे. गोसेवा हस्ताक्षर अभियान, स्वामी विवेकानंद व महर्षि अरविंद जन्मशती व श्रीराम जन्मभूमि आदि जन अभियानों में दादाभाई की सक्रिय भूमिका रही. 1990 की कारसेवा के दौरान वे 15 दिनों तक जेल में रहे.
दादाभाई कहते थे कि अपना यह संकल्प है कि भारत माता को पुन: जगन्माता का स्थान प्राप्त करवाएंगे. एक प्रकार से यह विकल्प रहित संकल्प है, इस संकल्प प्राप्ति हेतु दादाभाई ने अखंड, प्रचंड, पुरुषार्थ किया और अपने तपोपूत जीवन से स्वयंसेवकों को पुरुषार्थ करने की प्रेरणा दी. उन्होंने शंकराचार्यों सहित प्रमुख संतों व जनप्रतिनिधियों को जोड़कर भारती के कार्य को आगे बढ़ाया. उनके प्रयासों से भारती संस्कृत जयपुर से निकलने वाली राष्ट्रीय स्तर की मासिक पत्रिका बनी. उनके करपात्री महाराज, पुरी शंकराचार्य नरेन्द्रदेव तीर्थ महाराज, श्रृंगेरीपीठ, कांचीपीठ, द्वारिकापीठ व ज्योतिषपीठ के शंकराचार्यों समेत पूर्व राज्यपाल डॉ. सम्पूर्णानंद, सुंदरसिंह भण्डारी से घनिष्ठ सम्बंध रहे. संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्रीगुरूजी, बाला साहब देवरस, रज्जू भैया, कुप.सी. सुदर्शन, एकनाथ रानाडे, माधवराव मूले का भी उन पर अपार स्नेह रहा.