प्रयागराज. लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी समारोह में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश सोनी जी ने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई कुशल प्रशासक, सफल रणनीतिकार, निष्पक्ष न्याय करने वाली लोक कल्याणकारी राज्य की आदर्श संस्थापिका थीं. नारी सशक्तिकरण की संकल्पना को सच्चे अर्थों में साकार किया. उनकी जीवन गाथा आज भी प्रासंगिक हैं. उससे प्रेरणा लेकर 2047 तक भारत को विश्व गुरु बनाने का संकल्प पूरा किया जा सकता है. सच तो यह है कि उनकी शासन व्यवस्था से आज भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है.
रविवार को एमएनआईटी के एमपी हॉल में आयोजित समारोह में उन्होंने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई का महत्व इन अर्थों में और भी अधिक है कि उन्होंने भारतीय जीवन मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा की. निर्लिप्त भाव से उन्होंने राज्य का संचालन किया. नारी सशक्तिकरण को नयी परिभाषा दी. भारतीय चिंतन में स्त्री और पुरुष दोनों ही समान हैं. ना कोई छोटा, ना कोई बड़ा. पश्चिमी देशों में शेक्सपियर जैसे नाटककारों ने स्त्री की महत्ता को कम किया है, जबकि हमारे यहां दुर्गा सप्तशती से लेकर विभिन्न ग़्रंथों में नारी को शक्ति का प्रतीक बताया गया है.
सुरेश सोनी जी ने कहा कि वर्तमान न्याय व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, कर प्रणाली तथा शासन की संपूर्ण व्यवस्था की सीख अहिल्याबाई की जीवन गाथा से ली जा सकती है. उन्होंने सच्चे अर्थों में लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की. कृषकों को नुकसान की भरपाई की व्यवस्था की थी, लगान कम कर दिया था. कर प्रणाली को लाभ कमाने का साधन नहीं, बल्कि राज्य संचालन का साधन बनाया. वस्त्र उद्योग मजबूत किया. महेश्वर की साड़ी आज भी प्रसिद्ध है. होलकर और सिंधिया दो राज्यों के बीच में जब भूमि को लेकर विवाद हुआ तो उन्हीं को निर्णायक बनाया गया और उन्होंने निष्पक्ष न्याय देते हुए उस विवादित भूमि को गोचर घोषित कर दिया. वह अंग्रेजों के समय में भी गोचर के रूप में ही बरकरार रहा.
वह भविष्य दृष्टा भी थीं. 1790 में एक पत्र लिखकर उन्होंने कहा था कि आने वाले समय में धूर्त अंग्रेज देश के संकट का कारण बनेंगे. वह शेर की तरह नहीं, बल्कि भालू की तरह धोखा देकर यहां के राज्य को हड़प लेंगे..उनकी भविष्यवाणी एकदम सच निकली. इसीलिए उनकी जीवन गाथा का गहराई से अध्ययन करने की जरूरत है. जीवन के हर क्षेत्र में आज उनकी प्रासंगिकता है.
समारोह की विशिष्ट अतिथि एवं लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी समारोह समिति की राष्ट्रीय सचिव कैप्टन मीरा सिद्धार्थ दवे ने कहा कि मैं प्रयाग की धरती को नमन करती हूं क्योंकि इसी धरती ने मुझे कैप्टन बनने का अवसर प्रदान किया. यह चंद्रशेखर आजाद की धरती है, जिनकी ललकार पूरे भारत में गूंजी थी. बड़ी ही विपरीत परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने राज्य का नेतृत्व संभाला था, कुशलता से उन्होंने राज्य का संचालन किया. उन्होंने पहली बार महिला सेना का गठन किया, जिसके डर से उनके राज्य पर आक्रमण करने के लिए सीमा पर आए रघुनाथ राव को वापस लौटने के लिए विवश होना पड़ा.
विशिष्ट अतिथि एवं राष्ट्रीय समिति कार्याध्यक्ष अहिल्याबाई के वंशज उदय राजे होलकर ने प्रयाग की धरती को नमन करते हुए कहा कि अहिल्याबाई परोपकार की प्रतिमूर्ति थी. निष्पक्ष न्याय के लिए तो उनके जैसा कोई दूसरा था ही नहीं. मैं स्वयं इंदौर में रहता हूं और इंदौर उनके निष्पक्ष न्याय का उदाहरण है. उन्होंने पूरे देश में सनातन धर्म की ध्वजा फहराई और सनातन धर्म के आस्था केन्द्रों का पुनरुद्धार किया.
कार्यक्रम अध्यक्ष लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर त्रि-शताब्दी समारोह समिति की अखिल भारतीय अध्यक्ष प्रोफेसर चंद्रकला पाड़िया जी ने कहा कि अहिल्याबाई होलकर की जयंती आत्ममंथन दिवस के रूप में मनाई जानी चाहिए. उन्होंने पश्चिमी सभ्यता को नकारते हुए भारतीय परिपेक्ष्य में नारी सशक्तिकरण के मानदंडों को स्थापित किया. उन्होंने कहा कि स्त्री में आकाश में उड़ने की शक्ति होनी चाहिए, लेकिन शाम तक अपने नीड़ में लौटने की उत्सुकता भी होनी चाहिए. यह हमारी नारी सशक्तिकरण की संकल्पना है. पश्चिम के नारीवाद को नकारते कहा कि यह भारत के लिए उपयुक्त नहीं है. भारतीय संस्कृति में आई विकृतियों को फूलों के पौधे के बीच में जमे घास फूस की तरह उखाड़ने की जरूरत है. पौधा नहीं उखाड़ना है, बल्कि घास फूस उखाड़ा जाना अपेक्षित है.
कार्यक्रम का शुभारम्भ मंचस्थ अतिथियों ने देवी अहिल्याबाई के चित्र और भारत माता की प्रतिमा पर पुष्पार्चन तथा दीप प्रज्ज्वलन कर किया. मंचस्थ अतिथियों का परिचय एवं स्वागत समारोह की संयोजिका डा. कीर्तिका अग्रवाल ने किया. कल्याण मंत्र के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ.