करंट टॉपिक्स

पर्व संस्कृति का द्वंद्वात्मक बाजारवाद

Spread the love

जयराम शुक्ल

बाजार के ढंग निराले होते हैं. वह हमारी जिंदगी को भी अपने हिसाब से हांकता है. कभी कुछ लोग तय करते थे कि किस त्योहार को कैसे मनाया जाए, अब बाजार तय करता है. शरद ऋतु के स्वागत में श्री कृष्ण गोपियों के साथ रास रचाते थे. श्रीमद्भागवत् महापुराण के रासपंचाध्यायी में महारास का अद्भुत वर्णन है. यही रास अब गरबा डांडिया के रूप में है. गुजरात से चला और ढोकले की तरह समूचे उत्तर भारत में छा गया. यह अब महानगरों की मस्ती का मसला नहीं रहा. कस्बों में भी पहुंच गया. था तो यह आराधना का उत्सव, लेकिन इसमें फिल्मी तड़का लग गया. इसकी चुटिया बाजार के हाथों में है. अंदाज लगा सकते हैं कि बाजार कहाँ तक घुस चुका है. पिछले साल एक महिला विधायक ने सवाल उठाया था कि गरबा में भाग लेने वालों का पुलिस वेरिफिकेशन होना चाहिए क्योंकि ये अब लव जिहाद के ठिकाने बनते जा रहे हैं. गरबा डांडियाँ के आयोजन के लिए इवेंट मैनेजमेंट कंपनियां भी कूद पड़ी हैं. नब्बे फीसदी आयोजन यही कर रही हैं. फिर शहर के कारोबारी प्रायोजक हो गए, अखबार व चैनल मीडिया पार्टनर. कुल मिलाकर अब भगवान कृष्ण और गोपियों का यह पवित्र महारास इवेंट मैनेजरों और कंपनियों की ओर सरक गया. गरबा की पोषाक के लिए भी ब्राडेड कंपनियां कूद पड़ी हैं. अमूमन पूरे देश में अकेले गरबे के आयोजन से ही हजारों करोड़ का कारोबार चलने लगा है, ऐसा ट्रेड एनालिस्ट बताते हैं.

नवदुर्गा तप, व्रत, उपवास और संयम का पर्व माना जाता है. कितने लोग कैसी कठिन साधना करते थे. मेरे गांव में ही एक ऐसे साधक थे जो अपने शरीर में ही जवारा उगाते थे. कुछेक को ऐसे भी जानता हूँ जो नौ दिन सिर्फ नींबू पानी में ही बिताते थे. और भी क़ई कष्टसाध्य तरीके हैं, जिसे भगत लोग अपनाते हैं. पर, इधर भी बाजार ने सेंध मार दी. छोटे रेस्तरां से लेकर फाइव स्टार तक, हर जगह फेस्टिवल स्पेशल फूड. इतने व्यंजन, इतनी वेरायटी कि सहज आदमी का मन ललचा जाए उपवास करने को और इस बीच नाना प्रकार के फलाहारी व्यंजन चखने को.

एक टीवी चैनल ने इस पर भी मजेदार कार्यक्रम चलाया कि इस नवदुर्गा में क्या खाएं. जिस मजेदार तरीके से व्यंजनों का वर्णन किया और खासियत बताई, बैठे-ठाले ही मुँह में पानी आ गया. इंदौर शहर तो इस मामले में लाजवाब है. स्ट्रीट फूड से लेकर पांच सितारा तक हर जगह सजी हैं व्रती व्यंजन की थालियां. एक डाक्टर मित्र ने बताया कि इन दिनों अजीर्ण और ओवरडाइट के भी केस आते हैं. वजन भी कई किलो बढ़ा होता है. सब कुछ वाकई मजेदार है. त्योहार और इसका अजब, गजब रंगरूप.

देवी मां चित्त और प्रवृति की अधिष्ठात्री हैं. नियम और संयम की जितनी दीक्षा इस पर्व में है अन्यत्र नहीं. या देवी सर्व भूतेषु …हर तरह की प्रवृति, मन, चित्त, इंद्रिय..रूपेण संस्थिता.. हैं. यह इन्द्रिय निग्रह का पर्व है. जिसके लिए मन ललचाता है, उस पर संयम रखने का पर्व है. नियम, धरम इसीलिए तय किए गए हैं. हर पर्व के पीछे गूढ़ार्थ है.

मैंने पहले भी कहा, देवी माँ प्रकृति स्वरूपा हैं. उसी का नियमन करती हैं. ब्रह्म और माया का द्वैत है यह सृष्टि. देवी माँ माया स्वरूप हैं. योगमाया का आराधन करके ही मधुकैटभ का नाश संभव हो पाया. मधुकैटभ कौन? विष्णु जी के कानों की मैल से जन्मे राक्षस. हमारे मन, ह्रदय के मैल से भी मधुकैटभ जन्मते हैं. इनका नाश माँ के आराधन से ही होगा. सभी बुराइयां मैल ही तो हैं. इसलिए देवी माँ चित्त और वृत्ति की अधिष्ठात्री हैं. इस अर्थ को समझकर चलना चाहिए.

ऋग्वेद में शक्ति उपासना के सूत्र हैं. ऋग्वेद है क्या .? प्रकृति के अनुपम स्वरूपों का बखान. उसके देवी देवता सभी प्रतीक हैं. जल, वायु, नभ, अग्नि, सूर्य, चंद्र, इंद्र यही सभी तो देव हैं वरुण, पवन, मरुत, अश्विनी कुमार आदि, आदि. इन सब को प्रकृति स्वरूपा माँ जगद्जननी मर्यादित करती हैं.

भौतिक और वैज्ञानिक नजरिए से देखें तो दोनों नवदुर्गा ऋतुओं के संधिपर्व हैं. इस नवदुर्गा में ग्रीष्म का शरद ऋतु में प्रवेश होता है. चैत्र नवदुर्गा में शरद ग्रीष्म ऋतु में प्रवेश करता है. ये दोनों नौ-नौ दिन ऋतुओं का संक्रमण काल है. इसलिए हमारे वैज्ञानिक ऋषि मुनियों ने जप, तप, व्रत की व्यवस्था की है ताकि उनकी संतानों या मनुष्यों की काया निरोगी रहे.

निरोगी काया ही सृष्टि के चक्र को आगे बढ़ा सकती है. इन सब मर्मों को नहीं समझे तो सब कुछ बेकार. हमारी इसी नासमझी का फायदा बाजार की ताकतें उठा रही हैं और हम उसी में मग्न हैं. क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि बाजार का ये चलन हमारे महान त्योहारों को भी इवेंट में बदलने की ओर बढ़ रहा है.

क्या होगा..जब दशहरा, दीवाली और होली को हम इवेंट मनैजरों के जरिए मनाने लगेंगे. हमारी संस्कृति, परंपरा और सनातनी सभ्यता के साथ बाजार के इस द्वंद्व में तय करना होगा कि हम किस तरफ हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *