ग्वालियर. राष्ट्रीय स्वसंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि अपनी कला, संस्कृति, इतिहास व संगीत को सहेजने और विरासत को संजोने में मुख्य भूमिका समाज की रहती है. अगर समाज इस दिशा में जागरुक हो और उसमें मजबूत इच्छा शक्ति हो तो सरकारें भी उस पर गंभीरता से विचार करती हैं. सरसंघचालक शहर के प्रमुख संगीत साधकों के साथ चर्चा के दौरान बोल रहे थे.
मुलाकात के दौरान संगीत के क्षेत्र की प्रमुख हस्तियों से आह्वान किया कि वह भारतीय संगीत की समृद्ध विरासत को संजोकर तो रखें ही, साथ ही इसको नई पीढ़ी तक पहुंचाने का भी काम करें. उन्होंने कहा कि यह काम बेहद जरुरी है और बड़े संगीत साधक इसमें प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं.
सरसंघचालक जी ने सभी संगीत साधकों को घोष की सीडी और पेन ड्राइव भेंट करते हुए बताया कि पहले संघ का घोष पाश्चात्य संगीत की धुनों पर आधरित था, लेकिन बाद में घोषवादक स्वयंसेवकों ने भारतीय संगीत के जानकारों के साथ मिलकर शास्त्रीय संगीत पर आधारित रागों से जुड़ी रचनाएं तैयारी कीं, अब उन्हें ही बजाया जाता है. चर्चा के दौरान राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो साहित्य कुमार नाहर, पंडित सुनील पावगी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जुड़े गायक जयंत खोत, बांसुरीवादक संतोष संत, श्रीराम उमड़ेकर, साधना गोरे, वीणा जोशी, संजय धवले, अभिजीत सुखदाणे आदि सहित अनेक संगीत साधक उपस्थित रहे.
संगीत पर संवाद
सुझाव – सरकार की ओर से संगीत को प्राथमिक स्तर से ही शिक्षा में अनिवार्य किया जाना चाहिए.
जवाब – अगर आप लोग समाज में इस तरह की जागृति पैदा करेंगे तो निश्चित ही इस पर काम भी हो सकेगा.
सुझाव – बच्चों को स्कूलों में शिक्षा के साथ-साथ भारतीय कला, संस्कृति और इतिहास की जानकारी दी जानी चाहिए.
जवाब – आप स्कूलों में जाएं, शिक्षकों, प्राचार्यों और संचालकों से मिलें और अपनी बात रखें. ऐसा करिए परिणाम आने लगेंगे.