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तियानमेन चौक नरसंहार, तिब्बत, ताइवान पर चर्चा से चीन बौखला जाता है – नितिन गोखले

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चीन : एक वैश्विक खतरा (तियानमेन चौक नरसंहार से लेकर कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में) विषय पर द नैरेटिव द्वारा आयोजित सात दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार के छठे दिन 9 जून को “गलवान और भारत-चीन सैन्य परिस्थितियों के बाद का प्रभाव” विषय पर वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं रणनीतिक मामलों के विश्लेषक नितिन गोखले जी ने व्याख्यान दिया.

उन्होंने कहा कि गलवान घटना पर बात करने से पहले हमें थोड़ा पीछे जाना आवश्यक होगा, जिससे हमें समझने में सरलता होगी. उन्होंने बताया कि वर्ष 2013 में भी 22 दिन तक चीन के करीबन 100 सैनिकों ने भारत में घुसपैठ की थी और 22 दिनों तक टेंट लगाकर बैठे थे. इसके बाद सितंबर 2014 में चुनुर क्षेत्र में ऐसी ही एक घुसपैठ चीनी सेना द्वारा की गई थी. उस वर्ष घुसपैठ की खास बात यह थी कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग उस वक्त भारतीय दौरे पर थे और वह चाहते थे कि भारत के संबंध चीन के साथ अच्छे हों, उन्होंने दिखावे के तौर पर लोगों के सामने यह बात कही थी. भारत के साथ अपनी दोस्ती गहरी करने के लिए कई सारी बातें कही थीं, मगर उसी समय चीनी सेना द्वारा भारत में घुसपैठ की गई. उस घुसपैठ के दौरान चीनी सेना ने करीबन अपने 1000 सैनिकों को सीमा पर खड़ा कर दिया था और उसके जवाब में भारत ने 3000 सैनिकों को रातों-रात सीमा पर तैनात कर दिया था. इस घुसपैठ की चर्चा दिल्ली में भी हुई.

उन्होंने आगे बताया कि इसके बाद सन् 2017 में डोकलाम हुआ. यह विवाद 74 दिन तक चलता रहा. इसका सामना भारत ने फिर एक बार पूरी ताकत से किया. भारतीय सेना ने भूटान की धरती पर जाकर चीनी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था. जिस प्रकार 2013 से 2017 तक भारतीय सेना ने चीनी सेना को घुसपैठ करने के बाद वापस खदेड़ा. उससे चीन ने किसी भी प्रकार का कोई पाठ नहीं सीखा, तभी इन्होंने लद्दाख में घुसपैठ करने का प्रयास किया.

उन्होंने कहा कि चीन ने गलवान घाटी में घुसपैठ करने का जो प्रयास किया, वह उसकी सबसे बड़ी हार है. उन्हें ऐसा लगता था कि काफी बड़ी संख्या में चीनी सेना को खड़ा करने पर भारत तनाव में आ जाएगा और तनाव में आने के बाद अपनी सैन्य गतिविधियों में रुकावट ले आएगा. चीन ने कोरोना वायरस का भी पूरा फायदा उठाना चाहा था. चीन ये अंदाजा लगाने में असफल रहा कि भारत उनके किसी भी गतिविधि का डटकर मुकाबला करेगा.

उन्होंने बताया कि चीन ने भारत की तय सीमा पर घुसपैठ करते हुए अंदर आकर टेंट लगा लिए. चीनी टेंट को हटाने के लिए बातचीत हुई और उसमें यह तय हुआ कि दोनों तरफ से सैनिक पीछे हट जाएंगे. आमना सामना किसी भी प्रकार का नहीं रहेगा. दो दिन तक देखने के बाद कर्नल संतोष बाबू को यह कहा गया कि आप जा कर देखिए क्या उन्होंने वहां से टेंट हटाया? वह पीछे हट गए हैं? या नहीं आप जाकर बातचीत कीजिए. इसके बाद कर्नल बाबू वहां पर गए और उनकी वहां पर बातचीत होती रही. वहां जाने के बाद उनके लिए सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक यह था कि वहां जितने भी सैनिक और चीनी सेना के अफसर थे, वह सब बदले हुए थे. उन्हें वहां सभी नए चेहरे दिखे. उनके साथ उनकी बातचीत होने लगी और यह सभी नए अफसर और सैनिक हद से ज्यादा आक्रामक थे.

घटनाक्रम के बारे में बताया कि चीनी सेना ने उस दौरान कर्नल बाबू के साथ आक्रामक रवैया अपनाया. उनके इस आक्रामक रवैया का अंदाजा कर्नल बाबू और भारतीय सेना के सैनिकों ने बिल्कुल भी नहीं लगाया था. जैसे ही कर्नल बाबू ने टेंट को हटाने की बात की और कहा कि अगर आप नहीं हटाएंगे तो हमें जबरदस्ती हटाना पड़ेगा, तब वहां पर मारपीट शुरू हो गई.

कर्नल संतोष बाबू और उनके लोगों पर पीछे से वार किया गया. जिस प्रकार का व्यवहार कर्नल बाबू के साथ हुआ, उस व्यवहार को सैनिकों द्वारा बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था. कर्नल बाबू के साथ गए चार-पांच सैनिकों ने मारपीट का विरोध किया, मगर चीनी सैनिकों की संख्या ज्यादा होने के कारण इन सबके साथ मारपीट की और उन्हें बंधक बनाकर भी रखा. इस मारपीट को जब भारतीय सेना ने देखा तो वहां उपस्थित सभी सैनिक घटनास्थल पर आ गए…क्योंकि उस क्षेत्र में अंधेरा होने लगा था और अंधेरे के बाद काफी ठंड होने लगती है, उसी अंधेरे में चीनी सेना के सैनिकों से लड़ते हुए हमारे 20 सैनिक देश के लिए बलिदान हो गए. दो-तीन दिनों बाद हमें पता चला कि हमारे जवानों ने 45 चीनी सैनिकों को मार गिराया था. मगर चीन ने नहीं माना.

नितिन गोखले ने बताया कि 1962 के युद्ध में चीन के 962 सैनिक मारे गए थे, उन मारे गए सैनिकों की मौत को 1994 में चीन ने स्वीकारा था. चीन की हमेशा से यह नीति रही है कि उनके सेना के सैनिकों का मरना बलिदान नहीं होता है. चीन की वामपंथी सरकार यह कभी नहीं चाहती कि चीन की आम जनता को यह पता चले कि उनकी सेना के सैनिक अन्य देशों से शिकस्त पाकर मारे गए हैं.

आने वाले समय में हमारे लिए सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी चीन है. जिन इलाकों में चीन की नजर है, इसमें प्रमुख रूप से भारत की सीमाएं हैं. ये भारत से युद्ध नहीं करना चाहता है, बल्कि हमेशा भारत पर दबाव बनाने का प्रयास करता है. चीन हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है.

ताइवान-तिब्बत के मसले पर एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि चीन की तीन दुखती रग हैं. पहला तियानमेन चौक नरसंहार, दूसरा तिब्बत और तीसरा ताइवान. इन तीनों मामलों पर चीन से जब कोई बात करने का प्रयास किया जाता है तो वह बौखला जाता है.

 

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