1990 में इन आंखों ने सिर्फ़ दर्द, खून-खराबा, दुष्कर्म और विस्थापन देखा है, लेकिन अब थोड़ी सी उम्मीद जगी है…
कश्मीरी हिन्दू बंसीलाल भट्ट का कहना (दो साल पहले दिए साक्षात्कार में) है कि 1990 में अपना सब कुछ छोड़कर कश्मीर से भागकर जम्मू में शरण लेनी पड़ी थी.
बंसीलाल कहते हैं – “मैं आज भी कांप उठता हूं, जब भी 1990 के वो दिन याद आते हैं. जब श्रीनगर सहित सभी इलाकों में सरेआम हिन्दुओं का कत्लेआम जारी था, लोग अपना सब कुछ छोड़कर वहां से भागने को मजबूर हुये थे. हालांकि, अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद वापस अपने घर, अपने कश्मीर जाने की एक उम्मीद जगी है.
बंसीलाल उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि चौराहों और मस्जिदों में लाउडस्पीकर लगाकर कहा जाने लगा कि पंडित यहां से चले जाएं, नहीं तो बुरा होगा. नारे लगने लगे कि ‘पंडितो, यहां से भाग जाओ, पर अपनी औरतों को यहीं छोड़ जाओ’, ‘हमें पाकिस्तान चाहिए, पंडितों के बगैर, पर उनकी औरतों के साथ’. इसके बाद जो कत्लेआम शुरू हुआ वो कश्मीरी हिन्दुओं के विस्थापन के बाद ही जाकर रूका. वो कहते हैं कि ये सब होने के बावजूद मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को शर्म नहीं आई. लेकिन, जब 19 जनवरी 1990 के दिन राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा, तो राज्यपाल जगमोहन मल्होत्रा ने सभी हिन्दुओं की बहुत मदद की थी. बंसीलाल ने कहा कि उन्हीं के कारण हम हिन्दुओं को जम्मू में शरण मिली और हमारे बच्चों को दो टाइम का खाना मिला था. वरना हम तो अपना सब कुछ कश्मीर में ही छोड़कर भूखे मरने आ गए थे.
बंसीलाल कहते हैं कि कश्मीर घाटी में सबसे ज्यादा मदद आर्मी वाले लोग ही करते हैं. सेना के जवान ही वहां के लोगों को दवाई, राशन सहित सभी जरूरत के सामान देते हैं.
गौरतलब है कि कश्मीर घाटी से हिन्दुओं के विस्थापन को आज यानि 19 जनवरी, 2023 के दिन 33 साल हो चुके हैं. जनवरी 1990 में घाटी से हिन्दुओं के विस्थापन का सिलसिला शुरू हुआ था. हालांकि, कोई भी कश्मीरी हिन्दू कभी भी अपने इस दर्द को याद नहीं करना चाहता है. लेकिन हर साल 19 जनवरी को निर्वासन दिवस मनाकर पूरी दुनिया को यह याद दिलाना चाहते हैं कि यही वो दिन है, जब उनके घरों को उजाड़ दिया गया था, आग लगा दी गई थी, हजारों लोगों की हत्या हुई थी, बहू-बेटियों-बहनों के साथ इस्लामिक कट्टरपंथियों ने सामूहिक बलात्कार किया था. लेकिन जम्मू-कश्मीर की मौजूदा सरकार ने दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं की थी. जिसका नतीजा यह हुआ कि लाखों की तादाद में हिन्दू घाटी छोड़ने को मजबूर हुये थे.
इनपुट – JKNow