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विदेशों में भी ‘स्वदेशी’ पर जोर

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अभी चार-पांच दिन पहले रशिया के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कार उत्पादकों की एक बैठक में कहा, “मेरे कुछ मंत्री मुझसे विदेशी कार आयात करने की अनुमति मांगने आए थे. मैंने उन्हें कहा, ‘बिल्कुल नहीं. रशिया में किसी भी सरकारी अधिकारी को विदेशी कार खरीदने की अनुमति नहीं है’.

हमें हमारे घरेलू उत्पाद बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए. घरेलू बनावट की गाड़ियों का प्रयोग करना चाहिए.”

पुतिन के वाक्य थे –  “I said that all officials of the country should drive domestic cars,” Putin said, telling officials they should strive to develop domestic brands, domestic cars, and other domestic products.

पुतिन के इस सार्वजनिक वक्तव्य से रशियन अधिकारियों में अफरातफरी मची हुई है. पिछले दो-तीन दिनों से ये अधिकारी, अपनी-अपनी बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज़ जैसी गाड़ियों के बदले, ‘लाडा’ जैसी रशियन कार खरीदने का सौदा करने में व्यस्त हैं.

हालांकि, पिछले कुछ महीनों से रशिया, घरेलू कार उत्पादन बढ़ाने का प्रयास कर रहा है. इसके परिणाम भी दिख रहे हैं. पिछली छमाही में रशिया में घरेलू कार की खपत अच्छी खासी बढ़ी है. ‘लाडा’ रशिया का पहले क्रमांक का कार ब्रांड है. इसकी बाजार की हिस्सेदारी मात्र २१.६% थी, जो इस छमाही में बढ़कर ३२.६% हो गई है.

रशिया एक खांटी कम्युनिस्ट देश है, जो ‘स्वदेशी’ का पुरजोर पुरस्कार व समर्थन कर रहा है.

मैं अभी फ्रैंकफर्ट में हूँ. फ्रैंकफर्ट, अघोषित रूप से यूरोप की आर्थिक राजधानी है. पूंजीवादियों का गढ़. इस फ्रैंकफर्ट के एक प्रमुख मॉल में एक व्यापक अभियान चला है – Buy Local. प्रत्येक दुकान में इस संदर्भ के पोस्टर्स लगे हैं.

एक खांटी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था भी ‘स्वदेशी’ पर जोर दे रही है.

हमारे भारत में कुछ लोगों ने ‘स्वदेशी’ शब्द का मजाक बनाया था. ‘स्वदेशी’ की भावना की खिल्ली उड़ाई थी. किन्तु आज भारत की जो मजबूत अर्थव्यवस्था बन रही है, उसमें ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘Make in India’ की बड़ी भूमिका है, यह हमें भूलना नहीं है..!

प्रशांत पोळ

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