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आगरा। पुण्यश्लोक रानी अहिल्यादेवी होलकर की त्रिशताब्दी समारोह के अवसर पर सोमवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संपर्क विभाग ने शिवाजी मंडपम में ‘परिवार व्यवस्था का मेरूदंड – भारतीय नारी’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी, पद्मश्री लोकगायिका मालिनी अवस्थी, डॉ. बीआर आम्बेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशु रानी और विभाग संघचालक राजन चौधरी ने रानी अहिल्यादेवी, डॉ. हेडगेवार जी और श्रीगुरू जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
अदम्य साहस, राजधर्म के साथ सनातन धर्म की पुरोधा रानी अहिल्यादेवी कर्तृत्व एवं व्यक्तित्व पर आधारित नाटिका के मंचन से उपस्थित महिलाओं के जनसमूह को प्रेरित किया। सीए संजीव माहेश्वरी ने विषय प्रवर्तन किया।
सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि भारत ने 1100 वर्षों तक आक्रमण झेला, किंतु हमारी संस्कृति को कोई मिटा नहीं सका, यही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है। हमारा देश सातवीं शताब्दी से भयंकर संकट में आ गया था, 11वीं सदी से आतंक का काल आरंभ हो गया, कोई मंदिर, कोई स्थान, माता-बहनें कोई भी सुरक्षित नहीं रहा। शायद ही कोई देश इस प्रकार 1000 से अधिक वर्षों तक अपने देश की संस्कृति पर हमले का सामना कर पाया हो।
उन्होंने शिवाजी महाराज का संदर्भ लेते हुए कहा कि आक्रांताओं के काल में एक छोटे से स्थान से एक बालक खड़ा होता है, जिसका नाम था शिवाजी। बहुत ही बुद्धिमानी से उसने साम्राज्य स्थापित किया। 1674 में हिन्दू पादशाही की स्थापना हुई। 1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई। उन्होंने अल्पकाल में ही जनमानस में गजब की प्रेरणा भर दी। जिसका परिणाम यह रहा कि उनकी मृत्यु के 26 वर्ष बाद तक औरंगजेब उस साम्राज्य लड़ता रहा और अंत में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में ही उसकी मृत्यु हो गयी।
सह सरकार्यवाह जी ने कहा कि इंदौर का होलकर महान हिंदवी स्वराज का एक हिस्सा था, बड़े साम्राज्य को चलाने के लिए कई केंद्र बनाए गए, उन्हीं में से एक था इंदौर। शिवाजी महाराज की भांति ही अहिल्यादेवी होलकर का ध्येय था राष्ट्र के सम्मान एवं गौरव को स्थापित करना। राज्य सैकड़ों हो सकते हैं, किंतु राष्ट्र एक ही है। भारत राज्य नहीं, अपितु एक राष्ट्र है। रानी अहिल्यादेवी को समझ में आया कि राष्ट्र बोध नष्ट हुआ है, स्व की भावना कम हुई है, इसलिए सनातन धर्म का प्रचार और प्रसार अति आवश्यक है। राष्ट्र बोध को पुनः स्थापित करने के लिए उन्होंने अपने निजी कोष से 200 से अधिक स्थानों पर मंदिर, घाट और धार्मिक स्थान आदि का निर्माण कराया। यह राज्य दृष्टि नहीं राष्ट्रीय दृष्टि है। उन्होंने श्रद्धा के स्थानों का पुनः निर्माण किया। भारतीय नारी की प्रेरणा हैं जीजाबाई और इस श्रृंखला की अगली कड़ी थी अहिल्यादेवी होलकर। जो दुख जीजाबाई के मन में था, वही अहिल्यादेवी के मन में था।
उन्होंने आज की नारी के संदर्भ में कहा कि 11वीं शताब्दी के बाद का दौर पतन का रहा। जिस देश में शास्त्रार्थ करने वाली बुद्धिजीवी महिलाएं थीं, उन्हें पर्दे और बाल विवाह जैसी कुरीति में कैद कर दिया। किन्तु आज दौर बदला है, महिलाएं घर संभालते हुए आत्मनिर्भर बन रही हैं। फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं, और घर भी संभाल रही हैं। आज आवश्यकता है कि बेटों को परिवार की जिम्मेदारी बांटने की सीख दें।
हम दो हमारे दो का दृष्टिकोण भारतीय परिवार के लिए खतरा
लोक गायिका पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित मालिनी अवस्थी ने कहा कि आज हमारा भारतीय समाज हम दो हमारे दो के दुर्भाग्यपूर्ण सिद्धांत पर चल रहा है। अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय में हमारे बच्चे कई रिश्तों को खो चुके होंगे। आने वाले बच्चों के पास ना तो मौसी होगी, ना बुआ होगी, ना चाचा होंगे और ना चाची होंगे, ना ताऊ होंगे ना ताई होंगी। इस तरह से हमारा समाज विघटन की ओर जाएगा और परिवार में भी विघटन की दृष्टि दिखाई देगी। परिवार में बच्चों की पहली पाठशाला मां होती है। मां संस्कार के रूप में बच्चों के हृदय में ऐसा बीज बोती है जो आगे चलकर बच्चों के लिए मान सम्मान और स्वाभिमान का परिचायक बनता है।
मालिनी अवस्थी जी ने अपने गीत के माध्यम से नारी शक्ति को एहसास दिलाया कि हमारे देश में नारियों ने स्वाधीनता संग्राम से लेकर हर वह लड़ाई कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी है जो समाज और राष्ट्रहित में थी। उन्होंने ब्रज का लोकगीत रसिया गाते हुए कहा कि प्रीतम चलूं तुम्हारे संग जंग में पकडूँगी तलवार। आजादी की लड़ाई में उस समय की माता बहनों ने विदेशी कपड़े से बनने वाली चुनरी लाने के लिए अपने प्रीतम से मना करते हुए कहा था – मत लइयो चुनरिया हमार ओ बालमा।
आयोजन स्थल परिसर में रानी अहिल्यादेवी होलकर जी की जीवनी पर आधारित शोधपरक प्रदर्शनी भी रखी गई। प्रदर्शनी के बारे में मनीष अग्रवाल रावी और डॉ. अनुराधा ने बताया कि इतिहास की पुस्तकों पर आधारित रानी अहिल्यादेवी होलकर जी के जीवन को प्रदर्शनी के माध्यम से दर्शाया गया। साथ ही उनके प्रेरणात्मक वचनों को भी प्रदर्शनी में रखा गया है।