बीजापुर (छत्तीसगढ़) में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में 26 नक्सली आतंकियों के मारे जाने के बाद घटनास्थल से एक पत्र मिला है। यह पत्र नक्सल आतंकी मोटू ने एक अन्य नक्सल आतंकी कमांडर मनकी को लिखा है। पत्र गोंडी बोली में लिखा गया है, जो बड़ा ही दिलचस्प है। आज तक नक्सली जिन स्थानों पर खुलेआम घूमते थे, अब उन्हें वहां डर लगने लगा है।
माओवादी आतंकी जिन गांवों में तथाकथित ‘माओवादी सरकार’ चलाते थे, अब वहां उनके छिपने के लिए भी जगह नहीं है। जिन क्षेत्रों के ग्रामीणों पर माओवादी हथियारों के दम पर भय का दबाव बनाते थे, अब उन सभी जगहों से माओवादी भाग रहे हैं। इसीलिए यह पत्र दिलचस्प है।
दो पन्नों के इस पत्र में माओवादी आतंकी मोटू का कहना है कि नक्सलियों के लिए अब सुरक्षित तरीके से कहीं भी ठहर पाना मुश्किल हो चला है। जिन स्थानों में हाल ही में मुठभेड़ हुई है, उन्हें भी माओवादियों ने अपने लिए असुरक्षित बताया है।
नक्सल आतंकी मोटू ने पत्र में बोडका, गमपुर, डोडीतुमनार और तोड़का जैसे क्षेत्र के जंगल को भी असुरक्षित बताया है। पत्र में नक्सल आतंकी का कहना है कि फोर्स के बढ़ते दबाव के कारण सभी साथी नक्सली दहशत में जी रहे हैं।
नक्सलियों के पत्र से यह तो स्पष्ट हो रहा है कि सुरक्षा बल अपने प्रयास में सफल हो रहे हैं, जिसके चलते अब नक्सलियों को जंगलों से भागना पड़ रहा है। इस पत्र ने इस बात की भी पुष्टि की है कि बीजापुर के अंदरूनी जंगल नक्सलियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह थे, जहां अब सुरक्षा बल पहुँच चुके हैं।
26 मार्च, 2025 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हार्डकोर कम्युनिस्ट समूहों द्वारा एक कार्यक्रम किया गया, जिसके पोस्टर में ‘बस्तर के ग्रामीणों की फ़ोटो’ लगाकर दावा किया गया कि बस्तर में पिछले 14 महीने में 400 से अधिक लोगों को मारा गया है। कार्यक्रम का मुद्दा भी यही रहा कि किसी तरह बस्तर में सुरक्षा बलों की कार्रवाई को रोका जाए। सुरक्षा बलों के कैंप को रोका जाए और नक्सलियों के एनकाउंटर को बंद किया जाए।
आंध्र प्रदेश की कुछ संस्थाओं ने भी मांग की है कि ‘ऑपरेशन कगार’ को रोका जाए। ‘आदिवासी हक्कुला संगीभव वेदिका’, ‘विरासम’, आंध्रप्रदेश सिविल लिबर्टीज कमेटी’ जैसी संस्थाओं ने नक्सल उन्मूलन के लिए चलाए जा रहे ऑपरेशन को रोकने की मांग की है।
विचार करने का विषय है कि नक्सली खुद कह रहे हैं कि सुरक्षा बलों के ऑपरेशन के कारण उनका किसी भी जगह छिपना कठिन हो गया है। उनके सुरक्षित ठिकाने अब असुरक्षित हो गए हैं। पुलिस कैम्प के कारण माओवादी प्रभाव के क्षेत्रों में अब उनकी पकड़ खत्म हो गई है।