लोकेन्द्र सिंह
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दरवाजे किसी के लिए बंद नहीं है। कोई भी संघ में आ सकता है। संघ के लिए कोई विरोधी नहीं है। संघ सभी को अपने मंच पर बुलाता है। संघ अपने कार्यक्रमों में इतर विचार के व्यक्ति, सामाजिक कार्यकर्ता या विद्वान व्यक्ति को आमंत्रित करता है तो उन लोगों को आश्चर्य होता है, जो संघ को एक ‘क्लोज्ड डोर ऑर्गेनाइजेशन’ समझते हैं। जो संघ को समझते हैं, उन्हें यह सब सहज ही लगता है। इसलिए पाँच जून को नागपुर में आयोजित ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-2’ के समापन समारोह में जब मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के जनजाति वर्ग के कद्दावर नेता अरविंद नेताम को आमंत्रित किया गया, तो संघ को जानने वालों को यह सहज ही लगा। लेकिन संघ के प्रति संकीर्ण सोच रखने वाले न केवल हैरान थे, अपितु वितंडावाद भी खड़ा करने का प्रयास किया। हालांकि, उनके वितंडावाद की हवा स्वयं अरविंद नेताम ने ही यह कहकर निकाल दी कि “वनवासी समाज की समस्याओं और चुनौतियों को संघ कार्यक्रम के माध्यम से रखने का सुअवसर मुझे मिला है। मैं संघ के कार्यक्रम में शामिल होने जा रहा हूँ”। उन्होंने संघ के संबंध में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी यह भी की कि “इस संगठन में चिंतन-मंथन की गहरी परंपरा है। भविष्य में जनजातीय समाज के सामने जो चुनौतियां आने वाली हैं, उसमें आदिवासी समाज को जो संभालने वाले और मदद करने वाले लोग/संगठन हैं, उनमें हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मानते हैं”। जनजातीय नेता अरविंद नेताम इंदिरा गांधी और पीवी नरसिम्हा राव सरकार में मंत्री रहे हैं।
संघ के कार्यक्रमों में महात्मा गांधी, डॉ. भीमराव आंबेडकर और जय प्रकाश नारायण से लेकर इंदिरा गांधी, डॉ. प्रणब मुखर्जी तक शामिल हो चुके हैं। संघ ने कभी किसी से परहेज नहीं किया। संघ अपनी स्थापना के समय से ही सभी प्रकार के मत रखने वाले विद्वानों से मिलता रहा है और उन्हें अपने कार्यक्रमों में आमंत्रित करता रहा है। संघ संवाद को महत्व देता है। वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत कहते हैं कि “अगर हम विचारों को एक किला बनाकर उसके अंदर अपने आपको बंद कर लेंगे, तो यह व्यावहारिक नहीं होगा”।
संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार प्रतिष्ठित राजनेता थे। कांग्रेस, समाजवादी एवं कम्युनिस्ट नेताओं के साथ उनका गहरा परिचय था। संघ का दर्शन कराने के लिए डॉक्टर साहब लगातार विभिन्न विचारों के विद्वान व्यक्तियों एवं सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं से मिलते थे और उन्हें संघ में आमंत्रित करते थे। वे उस समय की चुनौतियों के संबंध में सबसे विचार-विमर्श करके समाधान के मार्ग तक पहुँचने का प्रयास करते थे। ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र’ मेंसुनील आंबेकर लिखते हैं – “किसी विषय पर विभिन्न मत हो सकते हैं, किंतु जब हम समाज के प्रत्येक वर्ग से मिलते हैं, संवाद करते हैं, तो अवश्य ही समाधान निकलता है”।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1930 के दशक से ही समाज जीवन में सक्रिय लोगों को अपने कार्यक्रमों में बुलाता रहा है। एक और महत्वपूर्ण बात है यह कि संघ को विश्वास है कि जब तक कोई संघ से दूर है, तब तक ही वह संघ का विरोधी हो सकता है। लेकिन जैसे ही वह संघ के निकट आता है और संघ को जानने-समझने लगता है, तब वह संघ का विरोधी हो ही नहीं सकता। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो इस बात को सिद्ध करते हैं। भारत के पूर्व उप-राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन और लोकनायक जयप्रकाश नारायण भी संघ के आमंत्रण पर आ चुके हैं। लोकनायक जयप्रकाश नारायण सम्मानित समाजवादी नेता थे। प्रारंभ में संघ को लेकर उनके विचार आलोचनात्मक थे। लेकिन जब उन्होंने संघ को नजदीक से देखा तो उनके विचार पूरी तरह बदल गए। उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि “यदि आरएसएस फासीवादी संगठन है तो जेपी भी फासीवादी है”। प्रख्यात समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया और संघ के पदाधिकारियों के साथ मित्रतापूर्ण संवाद रहा है। आचार्य विनोबा भावे ने कहा – “मैं संघ का विधिवत सदस्य नहीं हूँ, फिर भी स्वभाव से, परिकल्पना से मैं स्वयंसेवक हूँ”। परम पावन दलाई लामा संघ के अनेक कार्यक्रमों में शामिल होते रहे हैं, उनका भी कहना है कि “मैं संघ का समर्थक हूँ। अनुशासन, देशभक्ति और समाज सेवा के लिए यह संगठन जाना जाता है”। वर्ष 1977 में आंध्रप्रदेश में आए चक्रवात के समय स्वयंसेवकों के सेवा कार्यों को देखकर वहां के सर्वोदयी नेता प्रभाकर राव ने तो संघ को नया नाम दे दिया था। उनके अनुसार – “आरएसएस अर्थात् रेडी फॉर सेल्फलेस सर्विस”।
संघ के कार्यक्रम में जब भी अन्य विचार का व्यक्ति आया है, तो स्वयं को अधिक प्रगतिशील एवं लोकतांत्रिक बताने वाले लोगों ने ही आमंत्रित महानुभावों को रोकने के लिए भरसक प्रयास किए हैं। जब उनके सब प्रयत्न विफल हो जाते हैं, तब ये लोग आमंत्रित महानुभावों की छवि पर हमला करने लगते हैं। उन्हें ‘छिपा हुआ संघी’ घोषित कर देते हैं। स्मरण रहे, वर्ष 2018 में नागपुर के रेशीमबाग में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग-तृतीय वर्ष के समापन समारोह में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के शामिल होने पर कितना हो-हल्ला मचाया गया था। प्रणब दा को रोकने के लिए पत्र लिखे गए, आह्वान किए गए। पर, प्रणब दा समारोह में शामिल हुए, और अपना उद्बोधन भी दिया। प्रणब दा आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार के घर (संग्रहालय) भी गए, वहाँ उन्होंने विजिटर बुक में लिखा – “मैं आज भारत माँ के महान सपूत डॉ. केबी हेडगेवार के प्रति सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित करने आया हूँ”।
रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के नेता और दलित नेता दादासाहेब रामकृष्ण सूर्यभान गवई तथा कम्युनिस्ट विचारों वाले जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर भी संघ के कार्यक्रमों में आ चुके हैं। मीनाक्षीपुरम में हिन्दुओं द्वारा धर्म परिवर्तन कर इस्लाम स्वीकार किए जाने की घटना के बाद श्री गवई ने स्वयं संघ के कार्यक्रम में आने की इच्छा व्यक्त की थी और अपने विचार रखे थे। केरल की पहली कम्युनिस्ट सरकार में मंत्री रहे जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने स्थानीय विरोधों के बावजूद तत्कालीन सरसंघचालक से संपर्क किया और बाद में पत्रकारों के सामने अपने विचार रखे थे।
अभी हाल के वर्षों में देखें तो, नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, डीआरडीओ के पूर्व डायरेक्टर जनरल विजय सारस्वत, एचसीएल के प्रमुख शिव नाडर, नेपाल के पूर्व सैन्य प्रमुख रुकमंगुड कटवाल जैसे व्यक्तित्व विजयादशमी उत्सव में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हो चुके हैं। इसके अलावा देशभर में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में समाज जीवन के प्रतिष्ठित लोगों को संघ आमंत्रित करता है।
जनरल करिअप्पा ने की थी संघ कार्य की प्रशंसा
वर्ष 1959 में पूर्व जनरल फील्ड मार्शल करियप्पा मंगलोर में संघ की एक शाखा के कार्यक्रम में गए थे। वहाँ उन्होंने कहा था कि संघ कार्य मुझे अपने हृदय से प्रिय कार्यों में से एक है। अगर कोई मुस्लिम इस्लाम की प्रशंसा कर सकता है, तो संघ के हिन्दुत्व का अभिमान रखने में गलत क्या है? प्रिय युवा मित्रों, आप किसी भी गलत प्रचार से हतोत्साहित न होते हुए कार्य करो। डॉ. हेडगेवार ने आपके सामने एक स्वार्थरहित कार्य का पवित्र आदर्श रखा है। उसी पर आगे बढ़ो। भारत को आज आप जैसे सेवाभावी कार्यकर्ताओं की ही आवश्यकता है।
संघ के कार्यक्रम में इंदिरा गांधी
वर्ष 1963 में स्वामी विवेकानंद जन्मशती के अवसर पर कन्याकुमारी में ‘विवेकानंद शिला स्मारक’ निर्माण के समय भी संघ ने सभी राजनीतिक दलों के प्रमुख राजनेताओं एवं सामाजिक संगठनों के प्रमुख व्यक्तियों को आमंत्रित किया था। स्मारक निर्माण के समर्थन में विभिन्न राजनीतिक दलों के 323 सांसदों के हस्ताक्षर एकनाथ रानाडे जी ने प्राप्त किये थे। वर्ष 1970 में शिला स्मारक का उद्घाटन राष्ट्रपति वीवी गिरी जी ने किया था, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ‘विवेकानंद शिला स्मारक (विवेकानंद रॉक मेमोरियल)’ के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुईं थीं।