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पूर्व सैनिक सुदेश भट्ट और युवाशक्ति ने मिलकर गाँव तक पहुंचाया मोटर मार्ग

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गांव के युवाओं ने श्रमदान किया, ग्रामीणों ने धनराशि एकत्र करके दी

सूर्यप्रकाश सेमवाल

देहरादून. कोरोना लॉकडाउन के समय से देशभर में न केवल शहरों, महानगरों और विदेश से लौटे प्रवासी कामगार अपितु गांवों में मौजूद युवाशक्ति भी कुछ न कुछ साकारात्मक कार्य कर उदाहरण प्रस्तुत कर रही है. कोरोना के साथ लड़ते हुए जब देश के प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भरता का मन्त्र और लोकल फॉर वोकल होने की बात कही तो गांवों और क्षेत्र की बुनियादी आवश्यकताओं के लिए प्रवास से लौटे और स्थानीय लोग स्वयं ऐसे कार्यों को पूरा करके दिखा रहे हैं जो दशकों से सरकार और जनप्रतिनिधियों के भरोसे लंबित पड़े थे.

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के बूंगा ग्राम पंचायत में आत्मनिर्भर भारत का ऐसा ही अनुकरणीय उदाहरण मिला. जहाँ एक पूर्व सैनिक और क्षेत्र पंचायत प्रतिनिधि ने गाँव के नौजवानों को साथ लेकर श्रमदान द्वारा साढ़े तीन किलोमीटर लम्बी सड़क और इसको जोड़ने वाले पुल का निर्माण किया है. युवाओं के श्रमदान से बनी यह सड़क और पुल दूसरे गांवों के लोगों को प्रेरणा देने के साथ ही शासन-प्रशासन को आईना भी दिखा रही है. सड़क भी रज्जू मार्ग या छह फुटा नहीं, बल्कि पूरा मोटर मार्ग.

ऋषिकेश से सिर्फ 20 किलोमीटर दूर स्थित बीरकाटल गाँव के लिए मोहनचट्टी से आवागमन का कोई साधन नहीं था और फ़ौजी सुदेश भट्ट को यह टीस कचौटती थी. सेना से सेवानिवृत्ति के बाद अन्य ग्रामीणों के साथ जनप्रतिनिधियों तक बरसों-बरस आवेदन, प्रस्ताव सब निरर्थक सिद्ध हुए थे. लेकिन लॉकडाउन के बीच गाँव में मौजूद युवाशक्ति को साथ लेकर सुदेश भट्ट की टीम ने जो किया उसका परिणाम यह है कि आज बीरकाटल गांव में पहली बार गाड़ियों के पहुंचने से ग्रामीणों में अकल्पनीय गौरवपूर्ण खुशी व्याप्त है.

सड़क निर्माण के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते हुए और नेताओं से मुलाकात करने के बावजूद सब जगह से जब केवल आश्वासन ही मिले तो मार्च में लॉकडाउन में सुदेश भट्ट ने गांव के युवाओं और ग्रामीणों के सामने साढ़े तीन किलोमीटर दूर मोहनचट्टी तक सड़क बनाने का प्रस्ताव रखा. कार्य कठिन था, संसाधनों का अभाव था, ग्रामीणों को इसके पूरा हो पाने में आशंका थी. लेकिन सुदेश भट्ट की दृढ़ इच्छा पर सबको विश्वास था, इसलिए सभी सहयोग देने को तत्पर हो गए. गांव के लोगों ने सड़क के लिए अपने खेत दान कर दिए.

17 अप्रैल को कोरोना संकट के बीच सोशल डिस्टेंसिंग और सब सावधानियों और बचाव के साथ सुदेश भट्ट के आह्वान पर गांव की युवाशक्ति सड़क निर्माण के कार्य में जुट गयी और ठीक एक महीने के अंदर 16 मई तक सड़क बनकर तैयार हो गई. गांव वालों ने इस सड़क को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंदन सिंह बिष्ट को समर्पित किया है, जिन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेजों से लोहा लिया था. अब इसके साथ ही सड़क को जोड़ने वाले पुल की भी जरूरत थी क्योंकि नदी पर बना पहले का पुल 2013 की आपदा में बह चुका था. पुल भी छोटा नहीं – 55 फीट लंबा 10 फीट चौड़ा और 19 फीट ऊंचा है. इस बेजोड़ कार्य की चर्चा पूरे जिले और प्रदेश में ही नहीं सोशल मीडिया के माध्यम से देशभर में हो रही है. अब सभी प्रकार के वाहन सीधे गांव तक पहुंच रहे हैं और गांव वाले अपने पूर्व सैनिक सुदेश भट्ट की इस सफल पहल के लिए इन्हें सैल्यूट कर रहे हैं और इनका अभिनन्दन कर रहे हैं. वास्तव में यह आत्मनिर्भर भारत के साथ ‘मेरा गाँव मेरा तीर्थ” संकल्प को सिद्धि तक पहुंचाने का एक प्रामाणिक उदाहरण है जो सबके लिए अनुकरणीय है.

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