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Freedom of expression का अर्थ यह नहीं कि जंगली बनकर अपनी सीमा ही लांघ दें

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रोहतक (विसंकें). एक मामले की सुनवाई के दौरान अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय की टिप्पणी अत्यंत महत्वपूर्ण है. जो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अनर्गल शोर करने वालों के लिए नसीहत है.

न्यायालय ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि Freedom of expression यानि अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ यह नहीं कि आप दूसरों के अधिकारों व मान सम्मान को ठेस पहुंचाएं. प्रत्येक नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार प्राप्त है, लेकिन विचारों की अभिव्यक्ति का मतलब यह नहीं कि कोई जंगली बनकर दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाने की सीमा ही लांघ दे.

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी फेसबुक, यू-ट्यूब, ट्विटर अकाउंट पर सेना की एक यूनिट के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री अपलोड करने के आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए की.

सेना के एक कमांडिंग ऑफिसर की पत्नी व सेना की पूर्व महिला अधिकारी ने अंबाला कैंट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई कि साबका सैनिक संघर्ष कमेटी नामक यू-ट्यूब चैनल का एडमिन अपने चैनल पर सेना के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री अपलोड कर रहा है. चैनल ने सेना की एक यूनिट के खिलाफ कुछ वीडियो अपलोड किए, जिसमें कहा गया कि कुछ जवानों को यूनिट के कमांडिंग अधिकारी की पत्नी को सलाम न करने पर सजा दी गई. इस बाबत उसने सेना व अधिकारियों के खिलाफ हेट स्पीच (गलत टिप्पणियां करना) भी दी.

पूर्व महिला सेना अधिकारी ने उच्च न्यायालय में आरोपी की अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए कहा कि उसने सेना में मेजर के पद पर काम किया और उसके पति अभी कमांडिंग आफिसर हैं, लेकिन आरोपी ने उनके खिलाफ दुष्प्रचार किया और सेना के कई महत्वपूर्ण व गोपनीय दस्तावेज अपलोड किए. इससे उनके सम्मान, प्रतिष्ठा और सामाजिक स्थिति को गहरी ठेस लगी है.

जस्टिस एचएस मदान ने कहा कि इस मामले में शिकायतकर्ता सेना की सम्मानित अधिकारी रही हैं और उनके पति अभी देश की सेवा कर रहे हैं. इनको छोड़कर भी किसी आम आदमी की प्रतिष्ठा और सम्मान को ठेस पहुंचाने का किसी को कोई हक नहीं है. ऐसे आरोपों को हलके में नहीं लिया जा सकता. विचारों की अभिव्यक्ति का मतलब यह कतई नहीं कि आप किसी के मान सम्मान को चोट पहुंचाएं.

इस मामले में आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ जरूरी है. इस बात की जांच जरूरी है कि आरोपी सेना की यूनिट व अधिकारियों के खिलाफ यू-ट्यूब चैनल पर वीडियो अपलोड क्यों कर रहा है? इसके पीछे उसका वास्तविक मकसद और उसके साथी कौन हैं? केवल इस आधार पर कि वह जांच में शामिल हो गया है और पुलिस ने उसका मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया है, अग्रिम जमानत का अधिकारी नहीं बनता.

याची ने नफरत भरे भाषणों के माध्यम से सेना के खिलाफ असंतोष और दरार पैदा करने का प्रयास किया. इसके अलावा, उसने आधिकारिक दस्तावेजों और सेना प्रतिष्ठानों की गतिविधियों के प्रतिबंधित वीडियो अपलोड कर देश की सुरक्षा व राष्ट्रीय हितों को नुकसान करने का गंभीर कृत्य किया है. इससे पहले मई में अंबाला जिला अदालत ने भी उसको अंतरिम राहत देने से इन्कार कर दिया था.

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