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गणेश शंकर विद्यार्थी ने पत्रकारिता में राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा

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मेरठ (विसंकें). क्रांतिकारी एवं पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी ने पत्रकारिता के माध्यम से देश की आजादी के आंदोलन को एक नई दिशा दी. अपनी 41 वर्ष की आयु के कालखण्ड में उन्होंने ऐसे अनेक कार्य किये जो पत्रकारों के लिये सदैव प्रेरणा का कार्य करते रहेंगे.

विश्व संवाद केन्द्र द्वारा आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे आईआईएमटी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र मिश्र ने कहा कि विद्यार्थी जी की पत्रकारिता में राष्ट्रहित सर्वोपरि था. उन्होंने युवा पत्रकारों को अनेक अवसरों पर प्रशिक्षण भी दिया. प्रताप जैसे समाचार पत्र का उन्होंने न केवल सम्पादन किया, बल्कि उसकी संघर्षपूर्ण यात्रा को नया आयाम दिया. वह अपने सम्पादन के दौरान सत्ता, सामन्त, कुरीतियों, उत्पीड़न के विरोध में निरन्तर लेखन करते रहे.

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता एवं राष्ट्रदेव पत्रिका के सम्पादक अजय मित्तल ने कहा कि प्रताप क्रांतिकारियों के लिये एक ऐसा प्लेटफार्म था, जिस पर वह अपनी बात रख सकते थे. देश की आजादी के आंदोलन से जुड़े कई लेख एवं समाचार प्रताप में प्रकाशित होते रहे, जिस कारण इसके कई सम्पादकों को कारावास भोगना पड़ा. स्वयं गणेश शंकर विद्यार्थी अपने देहान्त से 6 दिन पूर्व ही जेल से आए थे. उनकी मृत्यु के विषय में आज तक भी तथ्यों को छिपाया जाता है. उन्होंने पत्रकारिता के दौरान संघर्षशीलता, सत्य परायणता, संवेदनशीलता तथा राष्ट्र सर्वोपरि के सिद्धान्त को न केवल जिया, बल्कि अनेक ऐसे क्रांतिकारियों, पत्रकारों एवं सम्पादकों को इन सिद्धान्तों के प्रति प्रेरित भी किया. विद्यार्थी जी सार्वजनिक संवेदनाओं को प्रकट करने के हमेशा पक्षधर रहे हैं.

गांधी जी और विद्यार्थी जी के सम्बन्धों के विषय पर कहा कि जिस चम्पारण आंदोलन के कारण गांधी जी को पहचान मिली, उसकी पृष्ठभूमि में गणेश शंकर विद्यार्थी की महत्वपूर्ण भूमिका थी. वर्तमान पीढ़ी विद्यार्थी जी की पत्रकारिता के प्रति कर्तव्य परायणता, निष्ठा, तथ्यों के प्रति संवेदनशीलता से प्रेरणा ले और राष्ट्र को सर्वोपरि मानते हुए लेखन करें. संगोष्ठी के संयोजक सुमन्त डोगरा ने कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए कार्यक्रम का संचालन किया.

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