गुवाहाटी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक गौरी शंकर चक्रवर्ती का बुधवार सुबह 6.30 बजे नई दिल्ली स्थित एमडी सिटी अस्पताल में निधन हो गया. वे 72 वर्ष के थे. पिछले कुछ समय से लाइलाज बीमारी कैंसर से पीड़ित थे. हालांकि, असाध्य बीमारी पर काबू पाकर, मृत्यु पर्यंत तक संघ की जिम्मेदारी का पूरी तरह से पालन करते रहे. वे पिछले साल अगस्त महीने में डिब्रूगढ़ गए थे, जहां कोरोना संक्रमित हुए थे. लेकिन, अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर उन्होंने कोरोना पर भी जीत हासिल की थी और समाज के लिए काम करना शुरू कर दिया था.
सभी के चहेते गौरी दा के रूप में विख्यात गौरी शंकर जी के आकस्मिक निधन से संघ और उससे जुड़े संगठनों व स्वयंसेवकों में शोक व्याप्त है. उनकी मृत्यु पर मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने दुःख व्यक्त किया है. गौरी दा के पार्थिव देह को गुरुवार को उनके गृह जिला कछार मुख्यालय शहर सिलचर ले जाया जाएगा. उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक निवास जलालपुर में होगा.
जलालपुर के लोकप्रिय चिकित्सक डॉ. खगेंद्र चंद्र चक्रवर्ती (दिवंगत) की गौरी दा चौथी संतान थे. उनका जन्म 30 नवम्बर, 1950 को हुआ था. उनके बड़े भाई शिवशंकर चक्रवर्ती भी एक प्रचारक के साथ ही प्रसिद्ध चिकित्सक थे. जनजाती समाज को आजीवन चिकित्सा सेवाएं प्रदान करते रहे.
संघ प्रचारक गौरीशंकर चक्रवर्ती, प्रतिभाशाली और बुद्धिमान व्यक्ति थे. उनका बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से गहरा नाता था. अपने स्कूल जीवन से नियमित शाखा में शामिल होते रहे. माध्यमिक परीक्षा में उन्होंने असम की मेरिट सूची में तीसरा स्थान प्राप्त किया था. बाद में वे गुवाहाटी आ गए और कॉटन कॉलेज में भौतिकी शाखा में दाखिला लिया और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए. आगे की पढ़ाई के लिए वे दिल्ली पहुंचे. गौरी शंकर ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से भौतिकी में मास्टर डिग्री प्राप्त की.
उन्हें 2013 में कैंसर होने की जानकारी मिली थी. लेकिन, वे इस लाइलाज बीमारी से उबर गए. उसके बाद 2017 में रीढ़ की हड्डी में कुछ समस्याएं हुईं. उन्होंने दिल्ली के एक अस्पताल में स्पाइनल सर्जरी करवाई और ठीक हो गए. फरवरी में दिल्ली के एमडी सिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. लेकिन डॉक्टरों के सभी प्रयास विफल होने के बाद, आज सुबह हर किसी के दिल अजीज गौरी दा ईश्वर के परम धाम चले गए.
उन्होंने अब तक लगभग 50 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद किया था. तथा 25 से अधिक असमिया और अंग्रेजी भाषा में पुस्तकों की रचना की. 2013 में कैंसर की बीमारी का इलाज कराते समय उनको कीमो दिया जा रहा था. इस दौरान बेड पर रहते हुए भी उन्होंने दंतोपंत ठेंगड़ी की हिंदी में लिखी कार्यकर्ता नामक पुस्तक का असमिया में अनुवाद किया. हाल ही में उन्होंने आधुनिक भारतर खनिकर डॉ. हेडगेवार (आधुनिक भारत के शिल्पकार डॉ. हेडगेवार) का अनुवाद किया था. यह पुस्तक छपकर आ गयी है, अभी इसका विमोचन नहीं हुआ है.
गौरी शंकर चक्रवर्ती 1973 में प्रचारक बने. उन्होंने कर्मठता व निष्ठा के साथ पांच वर्षों तक दिल्ली में प्रचारक के रूप में कार्य किया. आपातकाल के बाद उन्हें 1978 में महानगर प्रचारक के रूप में गुवाहाटी भेजा गया. 1983 तक दायित्व का पालन करते रहे. इसी बीच उन्हें वर्ष 1983 में डिब्रूगढ़ में विभाग प्रचारक के रूप में भेजा गया. वे 1983 से 1991 तक डिब्रूगढ़ में रहे. उन्हें 1991 में संभाग प्रचारक के रूप में सिलचर भेजा गया. 1994 में, उन्हें दक्षिण असम प्रांत प्रचारक की जिम्मेदारी दी गई. बाद में 2003 से 2012 तक क्षेत्र शारीरिक प्रमुख रहे. 2012 में उन्हें सह-क्षेत्र (उत्तर-पूर्व) प्रचारक की जिम्मेदारी दी गई. अपनी गंभीर शारीरिक बीमारी के बावजूद, दृढ़ निश्चयी गौरी शंकर ने अपने कर्तव्य की उपेक्षा नहीं की. अपनी शारीरिक बीमारी के कारण, उन्हें सह-क्षेत्र प्रचारक की ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया और उन्हें संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी का आमंत्रित सदस्य बनाया गया.
गौरीशंकर चक्रवर्ती बांसुरी व बिगुल, ड्रम (आनक) बजाने में निपुण थे. वे उच्च कोटि के दंड शिक्षक भी थे. संघ के विभिन्न शिविरों में उन्हें स्वयंसेवकों को दंड का प्रशिक्षण देने की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई थी.