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समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देना देश की संस्कृत्ति को बर्बाद करना होगा

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भोपाल. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने को लेकर चल रही सुनवाई के बीच देशभर में चिंता व विरोध भी बढ़ता जा रहा है. मध्यप्रदेश के इंदौर, उज्जैन, भोपाल, विदिशा, मंदसौर, धार सहित अन्य जिलों में सामाजिक संगठनों ने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन प्रेषित कर इसे देश की संस्कृति के विरुद्ध बताया है. संगठन व आम-जनमानस समलैंगिक विवाह को मान्यता न देने की मांग कर रहा है.

इंदौर में छात्र संगठन, महिला संगठन, एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के खिलाफ आवाज बुलंद की. महिला संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन दिया. महिलाओं का कहना था कि समलैंगिक विवाह भारतीय विवाह संस्कार पर अंतरराष्ट्रीय आघात है. यही बात धार में दिए ज्ञापन में महिला संगठन की ओर से कही गई.

उज्जैन में महिला संगठनों की कार्यकर्ताओं ने कहा कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से सांस्कृतिक मूल्यों का हनन होगा. साथ ही कहा कि कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद को है, न्यायालय इस मामले में हस्तक्षेप न करे. संसद का काम संसद को ही करने दें.

मंदसौर के संजय गांधी उद्यान महिलाओं ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के प्रयास का विरोध किया. उन्होंने देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सीजेआई के नाम एक ज्ञापन जिला कलेक्टर दिलीप कुमार यादव को सौंपा. ज्ञापन में कहा गया कि “भारत विभिन्न धर्मों, जातियों, उप जातियों का देश है. इसमें सदियों से केवल जैविक पुरूष और जैविक महिला के बीच शादी को मान्यता दी गई है. विवाह की संस्था न केवल दो विषम लैगिंकों (Heterosexual Genders) का मिलन है, बल्कि मानव जाति की उन्नति भी है”.

भोपाल में संस्कृति बचाओ मंच की महिलाओं ने कलेक्ट्रेट में एवं 300 से अधिक छात्रों ने एमपी नगर चौराहे पर समलैंगिक विवाह को मान्यता न देने की मांग की. विदिशा जिले एवं उसके अंतर्गत आने वाली तहसीलों में भी स्थानीय सामाजिक संगठनों ने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपकर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता न देने की मांग की.

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