विनोद बंसल
खालसा पंथ के संस्थापक दशमेश गुरु श्री गोविन्द सिंह जी का हमारे देश, धर्म व संस्कृति की रक्षा हेतु योगदान विश्व इतिहास में अनुपम है. उन्होंने मात्र नौ वर्ष की उम्र में गुरु गद्दी संभाली तथा अपनी तीन पीढ़ियों के नौ रक्त संबंधियों को राष्ट्र की बलिवेदी पर बलिदान कर दिया. उन्होंने अपनी निहंग सेना के साथ अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए दो बार युद्ध भी किया था. सम्पूर्ण हिन्दू समाज महान् गुरुओं के ज्ञान, तप और बलिदानी इतिहास का सदैव ऋणी रहेगा.
गुरू नानक देव की कृपा और प्रेरणा तथा गुरु गोविन्द सिंह जी के प्रयास का ही परिणाम है कि जन्मभूमि पर भगवान श्रीराम अब शीघ्र ही अपने भव्य मंदिर में विराजमान होने जा रहे हैं.
हम सब जानते हैं कि अयोध्या स्थित गुरुद्वारा श्री ब्रह्मकुंड साहिब के दर्शन के लिए देश और दुनिया के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं. कहा जाता है कि गुरु नानक देव जी महाराज, नवम् गुरु तेग बहादुर जी महाराज तथा दशमेश गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में ही ध्यान किया था. परम पावन भूमि के इस गुरुद्वारे में रखे एक ग्रंथ के अनुसार मां गुजरीदेवी एवं मामा कृपाल सिंह के साथ पटना से आनंदपुर जाते हुए दशम् गुरु गोविंद सिंह जी ने रामनगरी में ही धूनी रमाई थी. अयोध्या प्रवास के दौरान उन्होंने मां एवं मामा के साथ रामलला का दर्शन भी किया था. गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में गुरु गोविंद सिंह जी के अयोध्या आने की कहानियों से जुड़ी तस्वीरें व खंजर, तीर और दस्तार चक्र जैसी निशानी आज भी भक्तों की श्रद्धा का केंद्र हैं. अयोध्या के चिमटाधारी साधु बाबा वैष्णवदास के आह्वान पर लड़ी उनकी सेना ने मुगल शासक औरंगजेब की शाही सेना को बुरी तरह से परास्त किया था.
गुरु नानक देव जी महाराज भी सन् 1528 से पूर्व अयोध्या आए थे. उस समय सम्राट विक्रमादित्य द्वारा निर्मित भव्य और दिव्य राम मंदिर वहां था. किन्तु लाहौर में जब उन्हें खबर लगी कि औरंगजेब ने मंदिर को तोपों से उड़ा दिया तो उन्होंने अपना दुख व्यक्त करते हुए अपने प्रिय शिष्य मरदाने को कहा था कि मेरा वंशज ही एक दिन उसके लिए लड़ेगा. इतना ही नहीं गुरु तेग बहादुर जी महाराज भी अयोध्या आए थे. उसके बाद ही सन् 1675 में दिल्ली के चांदनी चौक में हिन्दू धर्म की रक्षार्थ अपना शीश कटाया पर धर्म ना छोड़ा. क्रूर जिहादी अत्याचारी मुगल शासक औरंगज़ेब के अनेक प्रलोभनों, धमकियों अत्याचारों व अनाचारों के वीभत्स दृश्य उनकी आंखों के समक्ष थे, किंतु वे टस से मस नहीं हुए. आखिर औरंगज़ेब को स्वयं लालकिले से निकल कर आना पड़ा. तभी कोई दुष्ट उनका सिर धड़ से अलग कर सका. वहीं पर आज गुरुद्वारा शीश गंज बना है.
श्री राम जन्मभूमि मुक्ति व भारत के स्वधर्म की रक्षार्थ सभी बलिदानी गुरुओं को कोटिश: नमन्…