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हामिद अंसारी और विवाद

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मोहम्मद हामिद अंसारी. भारतीय विदेश सेवा में विभिन्न पदों पर रहते हुए उप राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचे और दस साल उप राष्ट्रपति के पद पर रहते हैं, लेकिन कहते हैं कि मुसलमान असुरक्षित हैं. ईरान में राजदूत रहते हुए उन पर संगीन आरोप हैं कि उन्होंने भारतीय खुफिया एजेंटों की सूचना ईरानी खुफिया एजेंसी को लीक की. बस इतना नहीं. वंदे मातरम् को ये गैर जरूरी मानते हैं. पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के जलसे में उप राष्ट्रपति रहते हुए शोभायमान हो जाते हैं, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में ये जिन्ना के पोस्टर के पैरोकार हैं और हां, ये चाहते हैं कि देश में शरिया अदालतें बैठें. हामिद अंसारी को अब राष्ट्रवाद महामारी नजर आने लगी है, तो अचरज क्या…?

पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने हाल ही में राष्ट्रवाद को लेकर एक बयान दिया. 21 नवंबर को उन्हीं के जैसी सोच वाले कांग्रेसी नेता शशि थरूर की एक किताब का डिजिटल विमोचन हुआ था. इस कार्यक्रम में अंसारी ने अपने दिल की भड़ास निकाली. उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस से पहले ही भारतीय समाज ‘धार्मिक कट्टरता’ और ‘आक्रामक राष्ट्रवाद’ की महामारियों का शिकार हो चुका है. आज देश ऐसे प्रकट और अप्रकट विचारों एवं विचारधाराओं से खतरे में दिख रहा है जो उसको ‘हम और वो’ की काल्पनिक श्रेणी के आधार पर बांटने की कोशिश करती हैं. हामिद अंसारी ने कहा कि चार वर्षों की अल्प अवधि में भारत ने ‘उदार राष्ट्रवाद’ से ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ तक की ऐसी नई राजनीतिक परिकल्पना का सफर तय कर लिया है. जो लोगों के दिमाग में मजबूती से घर कर गई है.

शब्दों के चयन पर ध्यान दें…… सांस्कृतिक राष्ट्रवाद…. जी हां, इससे हामिद अंसारी जैसों को दिक्कत होना लाजिमी है. इसी से दिक्कत पाकिस्तान को है. इसी से दिक्कत कांग्रेस को है. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ही वह अवधारणा है जो अखंड भारत का सपना साकार करने का अकेला रास्ता है.

लेकिन हामिद अंसारी सोच ही अलग है, उनके कारनामों पर गौर करेंगे, तो पाएंगे कि वह असल में मदरसा छाप के अलावा कुछ नहीं है. पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया – दिल्ली दंगे और तमाम ऐसी साजिशों में शामिल एक अलगाववादी संगठन. पीएफआई का जलसा 2017 में हुआ. उप राष्ट्रपति के तौर पर हामिद अंसारी ने इसमें शिरकत की. पीएफआई का असली रूप तब तक सामने आ चुका था. तमाम देश विरोधी गतिविधियों, जिहाद, कन्वर्जन और लव जिहाद के आरोप सामने आ रहे थे. पर अंसारी उसमें गए. जब हंगामा हुआ, तो बोले कि मैं तो वहां सरकारी मेहमान की तरह गया था और पीएफआई की मौजूदगी के बारे में उन्‍हें किसी ने नहीं बताया था. अब बताइये भला. जलसा पीएफआई का और तत्कालीन उप राष्ट्रपति बिना ये जाने कि कहां जा रहे हैं, पहुंच गए.

अंसारी की हिमाकत की लंबी फेहरिस्त है. 21 जून, 2015 को पूरी दुनिया में पहला योग दिवस मनाया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तक राजपथ के कार्यक्रम में शामिल हुए. पर हमेशा की तरह राष्ट्रीय अवसर पर अंसारी नदारद थे. उनके आवास तक पर कोई कार्यक्रम नहीं हुआ. बाद में अंसारी की तरफ से सफाई आई कि उन्हें तो न्योता ही नहीं भेजा गया था. अब भला कोई पूछे कि दुनिया के 190 देशों में और करोड़ों लोगों को क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत तौर पर आमंत्रित किया था. 2015 का गणतंत्र दिवस था. अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा मुख्य अतिथि थे. लेकिन अंसारी ने अपना असली रंग दिखाया. तिरंगे को सैल्यूट नहीं किया. जब सवाल उठा, तो फिर बहाना. इस बार बहाना प्रोटोकाल का बनाया गया. बतौर उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी जब आखिरी दिन गिन रहे थे, तो राष्ट्रीय प्रतीकों के खिलाफ और मुखर हो गए. मद्रास हाई कोर्ट का फैसला वंदे मातरम को लेकर आया तो हामिद अंसारी का कहना था – अदालतें समाज का हिस्‍सा हैं. अदालतें जो कहती हैं वह कई बार समाज के माहौल का प्रतिबिंब होता है. मैं इसे असुरक्षा की भावना कहूंगा… दिन-रात अपना राष्‍ट्रवाद दिखाने की बात फिजूल है… मैं एक भारतीय हूं और इतना काफी है.

जब देश में वामपंथी गैंग और कथित सेक्युलर लॉबी ने मुसलमानों में भय का शोर मचाना शुरू किया, तो हामिद अंसारी को तो मानो मौका मिल गया. जो आदमी मुसलमान होकर भी देश के दूसरे सर्वोच्च पद पर था, उसकी क्या राय थी, जरा गौर कीजिए. अंसारी ने कहा – देश के मुस्लिमों में बेचैनी का अहसास और असुरक्षा की भावना है. मैं देश के अलग-अलग इलाकों से ये सुनता हूं. मैंने बेंगलुरु में यही बात सुनी. मैंने देश के अन्य हिस्सों में भी यह बात सुनी. मैं इस बारे में उत्तर भारत में ज्यादा सुनता हूं. बेचैनी का अहसास है और असुरक्षा की भावना घर कर रही है. हामिद अंसारी ने खासतौर पर उत्तर प्रदेश का जिक्र किया. बताते चलें कि हामिद अंसारी उत्तर प्रदेश के माफिया मुख्तार अंसारी के करीबी रिश्तेदार हैं. वह मुख्तार, जो योगी सरकार के डर से पंजाब की जेल में बेड रेस्ट पर है. 2018 में एएमयू में जिन्ना का पोस्टर लगाने को लेकर विवाद हुआ. अंसारी जिन्ना का पोस्टर लगाने के पक्ष में खड़े हो गए. शरिया अदालतों के बारे में भी हामिद अंसारी ने इन्हें सामाजिक प्रथाएं बताते हुए जायज करार दिया. उनकी राय थी कि हमारे कानून में है कि हर समुदाय के अपने नियम हो सकते हैं. भारत में पर्सनल लॉ, शादी, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार पर लागू होता है. हर समुदाय को अपने निजी कानूनों से संचालित होने का अधिकार है.

रॉ के अधिकारियों ने हामिद अंसारी के खिलाफ जांच की मांग की थी

06 जुलाई, 2019 को भारत की मुख्य खुफिया एजेंसी रॉ के पूर्व प्रमुखों सहित कई अधिकारियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखकर मांग की थी कि ईरान में राजदूत के रूप में तैनाती के दौरान हामिद अंसारी की भारत विरोधी करतूतों की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए. इस पत्र में बहुत संगीन आरोप हामिद अंसारी पर लगाए गए. पत्र के अनुसार अंसारी 1990 से 1992 के दौरान ईरान में भारत के राजदूत थे. आरोप है कि हामिद अंसारी ईरान की खुफिया एजेंसी को रॉ के अधिकारियों की गतिविधियों की जानकारी देते थे. ईरान की खुफिया एजेंसी ने जब भारतीय दूतावास में कार्यरत संदीप कपूर नाम के एक अधिकारी को पकड़ लिया था. 3 दिन बाद संदीप कपूर को मरणासन्न हालत में एक सुनसान संकरी सड़क पर फेंक दिया गया था. संदीप कपूर के अपहरण के बाद तीन दिन तक हामिद अंसारी खामोश रहे. ईरान सरकार से संपर्क का कोई प्रयास नहीं किया, न ही इस घटना पर कोई विरोध दर्ज कराया. कुछ दिनों बाद ही ईरानी खुफिया एजेंसी ने भारतीय दूतावास में कार्यरत एक अन्य रॉ अधिकारी डीबी माथुर का अपहरण कर लिया था. 2 दिनों तक उनका भी कोई पता नहीं चला था. इस बार भी हामिद अंसारी चुप्पी साधे रहे. उसकी चुप्पी के ख़िलाफ़ डीबी माथुर की पत्नी सहित दूतावास में कार्यरत अधिकारियों कर्मचारियों की पत्नियों के 30 सदस्यीय दल ने जब हामिद अंसारी से मिलने की कोशिश की थी तो उन्होंने उनसे मिलकर उनकी बात सुनने तक से भी मना कर दिया था. डीबी माथुर की पत्नी जबरदस्ती दरवाजा खोलकर हामिद अंसारी के कमरे में घुस गईं थीं.

दूतावास के अधिकारियों-कर्मचारियों ने सीधे दिल्ली सम्पर्क किया. इसकी जानकारी विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को दी गई. वाजपेयी ने इस मसले पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंहराव से संपर्क साधा. सीधे नई दिल्ली ने हस्तक्षेप किया, तो डीबी माथुर की रिहाई सम्भव हो सकी थी. इसके बाद हामिद अंसारी ने ईरान में रॉ का दफ़्तर ही बन्द कर देने का सुझाव भारत भेजा था.

उल्लेखनीय है कि यह पूरा घटनाक्रम उस समय वरिष्ठ रॉ अधिकारी रहे आरके यादव ने अपनी पुस्तक ‘Mission RAW’ में भी विस्तार से लिखा है.

साभार – पाञ्चजन्य

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