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सांघिक गीत के माध्यम से समरसता उत्पन्न होती है – डॉ. मोहन भागवत जी

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नागपुर, 09 अक्तूबर.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि सांघिक गीत के माध्यम से समरसता उत्पन्न होती है. सुर से सुर मिलाकर गाने से एकात्मता की भावना बढ़ती है. संगीत, गायन और गीत हर इंसान में होता है. इसे बाहर लाना यह समय की मांग है. इंसान के पास दिल है, वह धड़कता है, उससे लय आती है. इंसान की आवाज में उतार-चढ़ाव होता है. मन की भावनाएँ स्वरों को उतार-चढ़ाव देती हैं. भावनाओं को व्यक्त करना स्वरों का काम है. संगीत में इतनी ताकत है कि इसके शब्द दिलो-दिमाग को छू जाते हैं. इसलिए कहा जाता है कि जो संगीत और नाटक नहीं जानता वह इंसान नहीं है. यदि गाना किसी भव्य उद्देश्य के लिए समर्पित है तो सोने पर सुहागा. सरसंघचालक जी ने सांघिक गीत प्रतियोगिता में सहभागी विद्यार्थियों की सराहना की.

सरसंघचालक जी नादब्रह्म संस्था द्वारा आयोजित ‘स्वतंत्रता का स्वराभिषेक’ देशभक्ति एवं संस्कार गीत प्रतियोगिता के पुरस्कार वितरण समारोह में संबोधित कर रहे थे. इस दौरान मंच पर उद्यमी सत्यनारायण नुवाल, मुंबई के ठाकुर कॉलेज के ट्रस्टी ठाकुर रमेश सिंह, नासिक के मांगल्यम प्रतिष्ठान के कार्यकारी अध्यक्ष सुधीर पाठक तथा नादब्रह्म नागपुर के अध्यक्ष पद्माकर धानोरकर उपस्थित थे.

स्वातंत्र्यवीर सावरकर की कविता ‘अनेक फुले फुलती’ का उद्धरण देते हुए डॉ. मोहन जी भागवत ने कहा कि हमारे भीतर का कोई भी गुण, कोई भी कला अगर हम उसे अच्छे काम में समर्पित करें तो वह सार्थक होती है. वह आपके जीवन को शुद्ध, पवित्र, उज्ज्वल बनाता है. सांघिक गीत गाना यह आपस में मिलनसार होने की कला है और इससे हमें जीवन में लाभ मिलता है.

उद्यमी सत्यनारायण नुवाल ने कहा कि नादब्रह्म का कार्य बहुत अनोखा और सराहनीय है. कार्यक्रम की प्रस्तावना सुधीर वारकर ने रखी. सुधीर पाठक ने देशभक्ति गीतों की एक पुस्तिका प्रकाशित करने और हर प्रांत में ऐसी प्रतियोगिताएं आयोजित करने की घोषणा की. कार्यक्रम का संचालन श्वेता शेलगांवकर ने किया.

‘स्वतंत्रता का स्वराभिषेक’ देशभक्ति एवं संस्कार सांघिक गीत प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार (21,000 नकद), द्वितीय पुरस्कार (15,000 नकद), तृतीय पुरस्कार (11 हजार नकद) प्रदान किया गया.

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