वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक और वक्फ बोर्ड की मनमानियों के बीच अब कर्नाटक उच्च न्यायालय ने वक्फ की असीमित शक्तियों पर प्रश्न उठाया है। उच्च न्यायालय ने वक्फ बोर्ड द्वारा मुस्लिमों को निकाह और तलाक सर्टिफिकेट जारी करने पर सवाल उठाया।
कर्नाटक वक्फ बोर्ड को पिछले साल कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने अधिकार दे दिया था कि वक्फ बोर्ड मुस्लिमों को निकाह और तलाक के सरकारी प्रमाण पत्र जारी कर सकता है। सरकार के निर्णय को चुनौती देते हुए आलम पाशा नाम के व्यक्ति ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। याची ने सवाल किया था कि आखिर किस आधार पर वक्फ बोर्ड सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त प्रमाण पत्र जारी कर सकता है।
इसी मामले पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया और एमआई अरुण की खंडपीठ ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाया। उच्च न्यायालय ने मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए सिद्धारमैया सरकार को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि मामले में जबाव दाखिल करने के लिए अब अधिक समय नहीं दे सकते। न्यायालय ने प्रदेश सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 19 फरवरी तक का समय दिया है।
इससे पहले सरकार ने न्यायालय में तर्क दिया था कि उसने काजी एक्ट 1988 के तहत आदेश जारी किया था। विशेष यह कि 2013 में ही इस एक्ट को वापस ले लिया गया था। लेकिन अब सरकार कह रही है कि उसने आदेश मुस्लिम दंपत्तियों की सुविधा को लेकर जारी किया था। हालांकि, अब सरकार की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं।