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कोलकाता। दंगाई कट्टरपंथी भीड़ ने मुर्शिदाबाद में रूह कंपा देना वाला खूनी खेल खेला। यहां 20 फीसदी हिन्दुओं के खिलाफ एकजुट हमले, लूटपाट और आगजनी की घटनाओं ने न केवल कई घरों को खाक कर दिया, बल्कि कई मासूम जिंदगियों को भी गुस्से और बदले की आग में झोंक दिया।
सबसे रूह कंपाने वाली कहानी सप्तमी मंडल की है। वह प्रसव पीड़ा से उबर भी नहीं पाई थी कि उसे अपने नवजात शिशु को लेकर जान बचाने के लिए नदी पार करनी पड़ी। सात दिन पहले मां बनी सप्तमी को इतना भी वक्त नहीं मिला कि वो अपने नवजात की देखभाल ठीक से कर पाती। सप्तमी को बच्चे को दुनिया में आए महज सात दिन हुए थे। उसके घर में इसके आने की खुशी मनाई जा रही थी। किलकारी से इसके घर का कोना-कोना गूंज रहा था। अचानक शोर-गुल, तोड़-फोड़, लूट-पाट की आवाज में बच्चे की किलकारी दब गई। जब हिंसा का नंगा नाच शुरू हुआ और दंगाई भीड़ ने घरों पर हमला बोला, तो मां ने अपने कंधे पर नवजात को रखा और भगवान पर भरोसा कर रात के अंधेरे में नदी के रास्ते अनजाने सफर पर निकल पड़ी। बाद में यह मासूम भी अपनी मां के साथ अपने ही देश में शरणार्थी बना रहा।
सप्तमी की आंखों में आज भी उस रात का खौफ ताजा है। हिन्दुस्थान समाचार की रिपोर्ट के अनुसार, उसने बताया – “शनिवार (12 अप्रैल) को हमारे पड़ोसी के घर को आग के हवाले कर दिया गया। हमारे घर पर पत्थर फेंके गए। मेरे माता-पिता और मैं घर के भीतर छिप गए। नवजात की तबीयत बिगड़ने लगी। पड़ोस के बाद हमारे घरों पर हमले शुरू हुए थे। तभी बीएसएफ आ गई और हम भाग निकले। अगर बीएसएफ पांच मिनट की देरी से भी आई होती तो हमारी जान नहीं बचती। हमारी आबरू भी लूटने वाली थी”।
धुलियान की रहने वाली सप्तमी ने बताया कि प्रसव पीड़ा से उबर भी नहीं पाई थी कि भागना पड़ा। उसने कहा, “अगर बीएसएफ को आने में पांच मिनट की और देर होती, तो हमारे गांव की कई जिंदगियां खत्म हो जाने वाली थी। दंगाई पूरी तरह से हमारे घर को घेर चुके थे। मैंने अपने बच्चे को कंधे पर रखा और जैसे-तैसे नदी पार करके मालदा पहुंची। वहीं एक गांव ने हमें शरण दी। एक घर में हमने रात गुजारी, जहां हमें खाना और कपड़े दिए गए। अगले दिन हम परलालपुर हाई स्कूल में शरणार्थी बन गए”।
“हम अपनी ही जमीन पर शरणार्थी बन गए हैं…”
सप्तमी की मां महेश्वरी मंडल ने बताया कि अंधेरे में नाव लेकर नदी पार की गई। “दूसरे किनारे पर एक गांव था, वहां एक हिन्दू परिवार ने हमें सहारा दिया। लेकिन अब हम दूसरों की दया पर हैं। हमारा सब कुछ वहीं छूट गया।” तुलोरानी मंडल, प्रतिमा मंडल, नमिता मंडल, मौसमी जैसी कई महिलाएं भी इस हिंसा की शिकार हुई हैं, जो कई दिनों तक स्कूलों में शरणार्थी रही हैं। महिलाओं की मांग है कि उनके गांवों में स्थायी बीएसएफ कैंप बने ताकि वे अपने घरों को लौट सकें।
प्रशासन ने किया राहत का दावा, लेकिन भरोसा नहीं
हिन्दुस्थान समाचार की रिपोर्ट के अनुसार, ब्लॉक विकास अधिकारी सुकांत सिकदर ने बताया कि प्रशासन की ओर से खाने-पीने, बच्चों के लिए दूध, महिलाओं के लिए आवश्यक सामान और तिरपाल का इंतजाम किया गया है। हालांकि राहत शिविर में रह रहे लोगों ने ठीक उल्टा दावा किया। उन्होंने पुलिस अधिकारियों पर स्कूल के अंदर बंधक बनाकर रखने, धमकाने और बेहद ही खराब गुणवत्ता का खाना देने का आरोप लगाया। यहां तक कि परिवार तक से नहीं मिलने दिया गया। उन्हें जैसे-तैसे धमका कर वापस मुर्शिदाबाद भेज दिया गया, जहां दंगाई भीड़ उनके लिए संगीन की तरह खड़ी है। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि मीडिया राहत शिविर में पहुंच रही है और अन्य लोगों को वास्तविक स्थिति का अंदाजा न लग सके। लेकिन, जिनका सब कुछ लुट चुका है, उनके लिए यह राहत भी अधूरी है। सप्तमी जैसे अन्य परिवार अब भी इस डर में जी रहे हैं कि अगर दोबारा हमला हुआ, तो कौन बचाएगा?
हिन्दुस्थान समाचार