मध्यप्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा सागर जिले में एक मिशनरी स्कूल के औचक निरीक्षण के दौरान पाए गए भ्रूण की सच्चाई सामने आ गई है. जिस भ्रूण को लेकर स्कूल स्टाफ आयोग सदस्यों को यह कहकर गुमराह करना चाह रहा था कि ये प्लास्टिक का है, फोरेंसिक रिपोर्ट में उसके असली मानव भ्रूण होने की पुष्टि हुई है.
दरअसल, बीना स्थित ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित निर्मल ज्योति कान्वेंट स्कूल की जीव विज्ञान प्रयोगशाला के एक जार में राज्य बाल आयोग की सदस्या डॉ. निवेदिता शर्मा ने मानव भ्रूण बरामद किया था, वे अपने सहयोगी सदस्य के साथ एक शिकायत के आधार पर जांच करने विद्यालय में पहुंची थीं. उन्होंने तत्काल पुलिस को जानकारी देकर मामले की जांच करने के लिए कहा था.
इसके बाद पुलिस ने बीते सोमवार (10 अप्रैल, 2023) को भ्रूण जाँच के लिए सागर स्थित एफएसएल को भेज दिया था. जिसकी फोरेंसिक रिपोर्ट 13 अप्रैल गुरुवार को आ गई है. मामले में बीना पुलिस थाना प्रभारी कमल निगवाल ने बताया कि आयोग से मिले प्रतिवेदन के आधार पर संपूर्ण प्रकरण की गहराई से जांच चल रही है. पुलिस ने मानव भ्रूण की सत्यता को जांचने के लिए फोरेंसिक प्रयोगशाला में भेजा था, यहां से रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. यानी कि यह असली मानव भ्रूण ही है.
इस पूरे मामले पर गौर करें तो प्रकरण छह अप्रैल का है. जब मध्य प्रदेश राज्य बाल संरक्षण आयोग की दो सदस्यीय टीम एक शिकायत पर औचक निरिक्षण करने ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित निर्मल ज्योति कान्वेंट स्कूल पहुंची थी. कागजों में सब कुछ अच्छा रखने वाले इस विद्यालय की जब फिजिकल जांच होने लगी तो एक के बाद एक अनेक ग़लतियाँ सामने आईं. जिसमें सबसे बड़ा कानून का उल्लंघन यह कि वर्षों पुराना फीटस स्कूल की जीवविज्ञान प्रयोग शाला में रखा हुआ था.
स्कूल प्रबंधन को नहीं पता कहां से आया मानव भ्रूण
भ्रूण कहां से और कब लैब में आया, इसको लेकर स्कूल प्रबंधन कोई जवाब नहीं दे सका. वहां जांच में दौरान साथ रहीं प्राचार्या सिस्टर ग्रेस भी कुछ नहीं बता पाईं, बल्कि उनका कहना बार-बार यही था कि वे कुछ समय पहले ही यहां पदस्थ हुई हैं. ऐसे में उनका दावा था कि यह मानव भ्रूण पहले से ही यहां रखा हुआ है. जब विद्यालय में इस बारे में पूछताछ चल ही रही थी ,तभी कुछ स्कूल सदस्यों ने यह दावा किया कि ये भ्रूण प्लास्टिक का है.
लेकिन आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने जोर देकर पूछा कि वैसे तो अन्य जीवों की जैविक प्रजातियां फॉर्मेलिन की कमी से सूख रहे हैं और सड़ रहे हैं, उनको ठीक से प्रिजर्व करने के लिए आपके पास पर्याप्त फॉर्मेलिन, स्प्रिट, ग्लिसरीन और कार्बोलिक एसिड का मिश्रण नहीं, दूसरी ओर इस जार में जरूरत से ज्यादा फॉर्मेलिन भरा हुआ है, ऐसा क्यों किया गया है तो स्कूल प्रबंधन इसका कोई भी जवाब नहीं दे सका.
इस संबंध में डॉ. निवेदिता शर्मा का कहना है कि जब हम स्कूल की जीवविज्ञान प्रयोगशाला में गए तो यह देखकर स्तब्ध रह गए कि 12वीं तक की पढ़ाई कर रहे बच्चों को हम क्या दिखा रहे हैं. जबकि यह उनके कोर्स का हिस्सा ही नहीं.
फिर सबसे बड़ी बात यह है कि यह फीटस स्कूल में आया कहां से? किसका भ्रूण है, वास्तव में जांच का विषय है. कानूनी तौर पर भी आप किसी मानव भ्रूण को इस तरह से किसी विद्यालय की प्रयोगशाला में नहीं रख सकते हैं. जबकि यहां जैसा कि अन्य शिक्षिका ने बताया वर्षों से यह फीटस रखा हुआ है.
डॉ. निवेदिता ने कहा कि हम इस विषय में गहन जांच करने के लिए शासन को लिखेंगे. उन्होंने बताया कि स्कूल परिसर में कई खामियां पाई गईं जैसे कि गेस्ट रूम बना हुआ है, जो अंदर नहीं होना चाहिए. आयोग के सदस्यों और अधिकारियों को उस गेस्ट रूम में जाने तक नहीं दिया गया.
स्टाफ का पुलिस वेरिफिकेशन नहीं मिला. जमीन का डायवर्ज़न अन्य व्यवसाय के लिए कराया जाना पाया गया जो नियम विरुद्ध है. फीस को लेकर बच्चों पर लगातार स्कूल प्रबंधन दबाब बनाता है जो पूरी तरह से गलत है.
प्रयोगशाला में जीवों के पुराने नमूने रखे हुए हैं, जो सड़ गए हैं. केमिकल से इन्हें सही ढंग से संरक्षित नहीं किया गया. यह सीधे बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है. ऐसे में बच्चों पर वायरस की चपेट में आने का खतरा सदा बना रहता है.
राज्य बाल आयोगके दूसरे सदस्य ओंकार सिंह ने कहा कि बीना में स्थित स्कूल के खिलाफ उसके छात्रों की कुछ लंबित शिकायतों को लेकर आयोग का दो सदस्यीय दल छह अप्रैल को स्कूल का औचक निरीक्षण करने पहुंचा था. फीस नहीं भरने पर निर्मल ज्योति कान्वेंट स्कूल की प्राचार्य द्वारा एक छात्र को स्कूल से निष्कासित कर दिया गया था. जिसकी शिकायत फरवरी में छात्र के पिता ने मध्य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग से की थी. इसलिए हम लोग सामान्य जांच के लिए ही विद्यालय पहुंचे थे. वहां जाकर जब विद्यालय की जांच की गई तो एक नहीं अनेक कमियां आयोग को मिलीं.
स्कूल परिसर में रहती हैं नन, बड़े बच्चों तक के शौचालय ऊपर से खुले हुए
परिसर में एक भवन है, जिसके संबंध में प्राचार्य ने बताया कि वहां नन रहती हैं और जब सदस्यों ने अंदर जाने की बात कही, तो महिला सदस्य और महिला अधिकारियों को भी अंदर जाने से मना कर दिया गया. स्कूल में बच्चों की संख्या के अनुसार शौचालय नहीं हैं. एक बड़े हॉल को दो भागों में बांटकर लड़का और लड़कियों के शौचालय बनाए गए हैं, जो ऊपर से खुले हुए हैं.
इसके साथ ही मिशनरी विद्यालय में निरीक्षण के दौरान स्टाफ और बस चालकों के वेरिफिकेशन की जानकारी मांगी, तो प्रबंधन नहीं दे सका. गरीब बच्चों के लिए स्कूल में कोई फंड नहीं मिला, जबकि बीआरसीसी के अनुसार 25 लाख रुपये फंड होना चाहिए.