इंदौर. आज सुबह जब शाखा के बाद विश्वनाथ बस्ती जावरा में श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर अयोध्या के लिए समर्पण राशि के विषय में मोहल्ले के घरों में संपर्क कर रहे थे. हिन्दू समाज के बंधु भगिनी बड़ी श्रद्धा और भक्ति भाव से कुछ न कुछ समर्पण कर रहे थे. कोई 10 रुपये देता, कोई हजारों की राशि देता. जिसका जैसा भाव उसका वैसा समर्पण…..
तभी एक छोटी सी बालिका लगभग उम्र 12 या 13 वर्ष की होगी. अपने दो छोटे भाईयों के साथ लेकर हाथ में एक काला कमंडल लिए उसके अंदर तेल और तेल में स्थापित शनि महाराज…. बड़े ही कर्मठ भाव से हमारे बाजू वाले घर के दरवाजे पर खड़ी थी, उसके घर ने उसको दिया और हम जिस घर के सामने थे, उसने हमें दिया वो बच्ची हम लोगों को देखकर क्या सोच रही होगी पता नहीं, पर हम लोगों में से कई लोग ये अवश्य सोच रहे थे कि आज शनिवार है और शानि महाराज सामने हैं तो कुछ न कुछ देकर थोड़ा पुण्य कमा लेंगे…..कि तभी उस बच्ची ने मेरे साथी कार्यकर्ता से पूछा कि आप लोग किसके लिए पैसा मांग रहे हैं, जैसे ही उसे श्रीराम मंदिर निर्माण की बात बताई, तो उसने उत्साह भरी आवाज में बहुत ही धीमे स्वर में कहा – क्या मैं भी राम मंदिर के लिए कुछ दे सकती हूँ? और अपने कंपकंपाते हाथों को तेल से भरे कमंडल में डालकर सारे पैसे मुट्ठी में भर लिए और उनका तेल निचोड़कर कार्यकर्ता के हाथ पर रख दिये और बड़ी आत्मीयता से बोली – मेरे मोहल्ले के बच्चों ने साल भर की बचत की अपनी गुल्लक तोड़कर राम मंदिर के लिए दे दी तो क्या मैं इतना भी नहीं कर सकती? सभी कार्यकर्ताओं का हृदय गदगद हो गया. वहां खड़े सभी स्वयंसेवको के कंठ भर आए. धन्य है … प्रभु की माया. जन-जन में राम, कण–कण में राम.
मेरा मन अभी भी यही सोच रहा है कि हम दोनों ही मांगने वाले थे. मैं उसको कुछ देने की सोचता रह गया, पर दे न पाया और उसके पास जो कुछ था वह श्रीराम मंदिर के लिये देकर चली गयी. उस छोटी बच्ची ने दृष्टि भी दी कि जब मांगने वाला बिन मांगे समाज को देने लगे तो समझो, ये देश राम राज्य की ओर बढ़ रहा है…