राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्पित स्वयंसेवक कैसा होना चाहिए, इसके लिए श्रद्धेय प्रभाकर एस. केलकर जी जैसे स्वयंसेवकों का जीवन देखना चाहिए.
जीये भी समाज के लिए और देवलोक प्रस्थान के बाद देह भी सौंप गए समाज के लिए.
बीते दिन भोपाल में प्रभाकर केलकर जी का निधन हुआ. परिवार ने उनकी देह भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, भोपाल (AIIMS Bhopal) को सौंपी है. जब वे रीवा के विज्ञान महाविद्यालय में रसायन शास्त्र के प्राध्यापक थे, तब ही उन्होंने देहदान का संकल्प कर लिया था.
सोचता हूँ कि संघ पर कुछ लोग प्रतिगामी/कूपमंडूक/ पुरातनपंथी होने के आरोप लगाते हैं, लेकिन व्यवहार में मुझे संघ के स्वयंसेवक अत्यधिक प्रगतिशील सोच के ही मिले.
बहरहाल, श्रद्धेय प्रभाकर जी का स्वभाव बहुत आत्मीय था. स्वयंसेवकों के सुख-दुःख की चिंता अभिभावक की तरह करते. 80 वर्ष की उम्र में भी नियमित संघ स्थान पर आते रहे. पिछले वर्ष उन्हें गुरु पूजन के कार्यक्रम में मिला. चलने में असुविधा थी, परंतु गुरु पूजन का उत्सव स्वयंसेवक कैसे छोड़ सकता है? इसलिए वे आए.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत कहते हैं – “संघ ऐसे लोगों से चलता है, जो होते हैं, लेकिन दिखते नहीं”. स्वर्गीय प्रभाकर एस. केलकर ऐसे ही स्वयंसेवक थे. कार्य करते हुए उनका सम्पूर्ण जीवन समर्पित रहा.
विनम्र श्रद्धांजलि…