राष्ट्र का निर्माण ईंट पत्थर के भवनों से नहीं, रेल की पटरियाँ बिछाने से नहीं, बल्कि सशक्त, सुसंस्कृत युवा पीढ़ी तैयार करने से होगा
अहमदाबाद. गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने गुजरात विद्यापीठ में विकसित भारत में शिक्षा की भूमिका विषय पर आयोजित कर्णावती ज्ञानकुंभ के उद्घाटन सत्र में कहा कि अंग्रेज चले गए लेकिन अंग्रेज़ीयत आज भी हमारे अंदर पैर जमा कर बैठी है, तो आप समझ सकते हैं कि शिक्षा कितना प्रभाव डाल सकती है. मैं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास और उसके पूर्व अध्यक्ष स्व. दीनानाथ बत्रा जी को धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने भारत केंद्रित शिक्षा नीति पर कार्य करना प्रारंभ किया और आप जैसे शिक्षाविदों की बड़ी टोली बनायी. राष्ट्र का निर्माण ईंट पत्थर के भवनों से नहीं, रेल की पटरियाँ बिछाने से नहीं, बल्कि सशक्त, सुसंस्कृत युवा पीढ़ी तैयार करने से होगा.
उन्होंने कहा कि भारत में अनिवार्य गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था थी. 6 वर्ष की आयु के बाद बालक को माता-पिता घर में नहीं रख सकते थे. उसे गुरुकुल या पाठशाला में भेजना अनिवार्य था. पूरे विश्व में आदिकाल से संपूर्ण विधाओं का केंद्र भारत था, इसीलिए यह देश विश्व गुरु कहलाता था. प्रधानमंत्री ने भारत के भविष्य के निर्माण का संकल्प लेकर राष्ट्र केंद्रित शिक्षा नीति को प्रस्तुत किया है. शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास अपने स्थापना काल से इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए कृत संकल्पित है. देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा के सिद्धांत पर कार्य कर रहा है.
राज्यपाल जी ने कहा कि भारतीय ऋषि-मुनियों और संतों ने पर्यावरण की अलग से चिंता नहीं की. उन्होंने गुरुकुलों की स्थापना पर्वतमालाओं, नदियों, वृक्षों, वनस्पतियों और जंगलों के बीच की. भारत में शिक्षा के केंद्र प्रकृति की गोद में हुआ करते थे. शुद्ध पर्यावरण और वातावरण के बीच मन, बुद्धि और चित्त से परिष्कृत शिष्य का निर्माण गुरुकुलों में हुआ करता था. शिक्षा संस्कार दे, यह चिंता गुरु की हुआ करती थी. संस्कार युक्त युवा पीढ़ी से ही राष्ट्र का निर्माण संभव है. अंग्रेजों ने हमारी शिक्षा पद्धति को नष्ट करने के लिए उसमें बदलाव किया.
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि न्यास शिक्षा में बदलाव के लिए अनेकों सफल प्रयोग करता रहा है. देश भर के शिक्षक, शिक्षाविद और शिक्षा संस्थानों को संगठित करने के लिए ज्ञानोत्सव का आयोजन 2018 से प्रारंभ किया. देश में बौद्धिक प्रतिभा की कमी नहीं, उन्हें एक साथ चलने के प्रयास हम कर रहे हैं. प्राचीन कुंभ मेलों में ऋषि-मुनि, साधु-संत देश और समाज की समस्याओं के समाधान हेतु चिंतन करते थे. कुंभ में आने का निमंत्रण नहीं होता ऐसा ही मानकर ज्ञान महाकुंभ में भी शिक्षाविद् जुटेंगे, इसके प्रयास किया जा रहे हैं.
स्वागत वक्तव्य गुजरात विद्यापीठ के कुलगुरु डॉ. हर्षद पटेल ने दिया. संचालन हितांश ने किया. ज्ञान महाकुंभ के संयोजक संजय स्वामी, गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भाग्येश झा, गुजरात प्रान्त संयोजक हरेश बारोट मंच पर उपस्थित थे.